शादी हर औरत के जीवन का सबसे खूबसूरत पहलु होता है, जिसके बाद किसी भी महिला की जिंदगी में सब कुछ बदल जाता है। यहां तक की शादी के बाद औरत का अपने धर्म से भी वास्ता खत्म हो जाता है। लेकिन अब सुप्रीम कोर्ट ने इस फैसले को गलत ठहराया है। सुप्रीम कोर्ट का मानना है, कि शादी के बाद ये जरूरी नहीं है कि पत्नी का पति के धर्म के अनुसार धर्म परिवर्तन किया जाए। एससी ने अनुसार कानून की किसी भी किताब में ऐसा नहीं लिखा है कि अगर महिला दूसरे धर्म के आदमी से शादी करे, तो उसे अपने पति के धर्म को अपनाना पड़े। ये पत्नी का निजी फैसला है कि वो किस धर्म को प्राथमिकता देना चाहती है।
क्या है मामला
इस फैसले के जरिए सुप्रीम कोर्ट ने गुजरात हाई कोर्ट के उस फैसले को चुनौती दी है, जिसमें कहा गया है कि शादी होते ही पत्नी का अपने पति के धर्म के अनुसार धर्म परिवर्तन करना अनिवार्य हो जाता है।
बता दे कि पारसी मूल की गुलरुख एमगुप्ता नामक महिला ने हिंदू शख्स से शादी की थी। ये मामला कोर्ट में तब आया, जब महिला अपने अभिभावक के अंतिम संस्कार में शामिल होना चाहती थीं, लेकिन वलसाड पारसी बोर्ड ने इसकी अनुमति नहीं दी थी। हालांकि पारसी महिला ने शादी के बाद अपना धर्म परिवर्तन नहीं किया है, लेकिन वलसाड पारसी बोर्ड पारसी मूल की महिला को अपने अभिवावक के अंतिम संस्कार में शामिल होने की अनुमति नहीं दे रहा है।
क्या कहता है पारसी धर्म
पारसी धर्म के अनुसार यदि कोई पारसी मूल की महिला हिन्दू धर्म के व्यक्ति से शादी करती है, तो उस महिला को समुदाय से निष्कासित कर दिया जाता है। जिसके बाद वह महिला अपने पिता के अंतिम संस्कार में शरीक होने का हक खो देती है।
क्या है सुप्रीम कोर्ट की राय
सुप्रीम कोर्ट का इस बारे में कहना है कि सिर्फ शादी के आधार पर किसी भी महिला को उसके मानवीय अधिकारों से दूर नहीं नहीं किया जा सकता है। दो लोगों का शादी करना निजी फैसला है और शादी करने के बाद दोनों अपनी धार्मिक पहचान को बरकरार रख सकते हैं।
इस मामलें की अगली सुनवाई 14 दिसंबर को होगी, जिसमें वलसाड पारसी बोर्ड को ये निश्चित करके बताना है कि याची को पिता के अंतिम संस्कार में हिस्सा लेने की इजाजत दी जा सकती है या नहीं।