समलैंगिक जोड़ों को विवाह मान्यता देने की मांग के मामले पर गुरुवार को भी सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हुई। मामले की सुनवाई कर रही CJI की अध्यक्षता वाली संविधान पीठ के सामने केंद्र सरकार की तरफ से कहा गया कि याचिकाकर्ता का मौलिक तर्क सेक्सुअल ओरिएंटेशन को चुनना सही है।
CJI ने सुनवाई के दौरान कहा, ”नहीं उनका कहना है कि उन्हें सेक्सुअल ओरिएंटेशन का अधिकार दिया जाए। उनका कहना है यह पसंद का नहीं बल्कि एक विशेषता है।” SG ने कहा कि इस मुद्दे पर दो मत है, एक तो यह कि इसे हासिल भी किया जा सकता है और दूसरा यह एक स्वाभाविक चरित्र है। ऐसे में आप 5 साल बाद की स्थिति की कल्पना करें। उन्होंने कहा ऐसे रिश्ते जो अनुचित माने गए हैं उन रिश्तों को मान्यता देने की मांग करते हुए कहे कि वह अपने निजी अधिकार क्षेत्र मे ऐसा कर रहा है। ऐसे में इसे यह कहकर चुनौती नहीं दी जा सकती कि इसे कैसे प्रतिबंधित किया जा सकता है? इसका कोई हल है? जिस पर CJI ने कहा कि यह तो भविष्य मे होने वाले पर का तर्क है।
उन्होंने कहा विवाह के सभी पहलुओं में सेक्सुअल ओरिएंटेशन और स्वायत्तता का प्रयोग नहीं किया जा सकता है। यह तर्क नहीं दिया जा सकता है कि सेक्सुअल ओरिएंटेशन इतना मजबूत है कि अनुचित की भी अनुमति दी जाए। सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार से पूछा है कि केंद्र सरकार यह बताए कि अगर समलैंगिक जोड़ों को शादी की कानूनी मान्यता दिए बिना उनको कौन से लाभ सरकार दे सकती है।
सुप्रीम कोर्ट ने 3 मई तक केंद्र सरकार को इस बारे में जवाब देने को कहा है। अब सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ 3 मई को इस मामले पर अगली सुनवाई करेगी। आज मामले की सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया कि स्पेशल मैरिज एक्ट के तहत 30 दिनों के नोटिस देने के मामले पर हम सुनवाई नहीं करेंगे। इस मामले को किसी और पीठ के पास भेजा जाएगा जो इस मामले पर सुनवाई करेगी।
कोर्ट ने कहा कि यह मामला सामाजिक हो सकता है लेकिन संवैधानिक नहीं हो सकता है। कोर्ट ने कहा कि मामला सिर्फ समलैंगिकों पर लागू नहीं होता बल्कि विषमलिंगियों पर भी लागू होता है। SG तुषार मेहता ने दलील देते हुए कहा कि मान लीजिए कि समलैंगिक जोड़े में से किसी एक पार्टनर की मृत्य हो जाए तो पारिवारिक संपत्ति के उत्तराधिकार पर पत्नी यानी घर की बहू का अधिकार होगा। लेकिन ये रिश्ता कौन कैसे तय करेगा?
SG ने कहा कि याचिकाकर्ताओं द्वारा अपने अनुरूप विशेष विवाह अधिनियम को आपने मुताबिक फिर से बनाना चाहते हैं। क्या किसी अधिनियमन को इस तरह से पढ़ा जाएगा कि वह एक तरह से विषमलैंगिकों पर और दूसरी तरह से समान लिंग पर लागू हो? इसकी व्याख्या नहीं हो सकती है।
जस्टिस भट्ट ने SG का समर्थन करते हुए कहा कि मेरा भी मतलब यही था कि क्या अधिनियम की व्याख्या को यह दो तरफा या तीन-तरफा किया जाना संभव है? SG ने कहा कि ऐसी स्थिति में तब कोई बहुविवाह के अधिकार का दावा करेगा।