Same Sex Marriage: समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता देने वाली संविधान पीठ की सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई जारी है। इस मामले में केंद्र सरकार ने कहा कि इस मामले में सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को सुना जाना चाहिए। इस पर याचिकाकर्ता के वकील मुकुल रोहतगी ने विरोध करते हुए कहा कि केंद्रीय कानून को चुनौती दी गई है। इस मामले में राज्यों को नोटिस करना जरुरी नहीं है। इस पर सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार की दलील को खारिज कर दिया है।
समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता देने वाली याचिका पर सुनवाई जारी है। इस मामले में केंद्र सरकार की ओर से एक और हलफनामा कोर्ट में दाखिल किया गया है। कोर्ट में दाखिल इस हलफनामें में केंद्र ने यह जानकारी दी कि केंद्र ने इस मामले में राज्यों के साथ परामर्श प्रक्रिया शुरू कर दी गई है। इस मामले में आगे बढने और निर्णय लेने से पहले केंद्र को राज्यों से परामर्श लेने के लिए कोर्ट से समय मांगा है। केंद्र ने सभी राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों को मामले में पक्षकार बनाने की मांग करते हुए कहा है कि यह मुद्दा राज्यों के विधायी क्षेत्र के भीतर आता है लिहाज़ा उनको सुना जाना चाहिए।
Same Sex Marriage: केंद्र सरकार ने दाखिल किया हलफनामा
Same Sex Marriage: केंद्र सरकार ने अपने हलफनामे में कहा है कि विवाह और तलाक, शिशु और अवयस्क, दत्तक ग्रहण, वसीयत, उत्तराधिकार और संयुक्त परिवार के मामले संविधान से पहले पर्सनल लॉ के अधीन थे। ये सभी आंतरिक रूप से परस्पर जुड़ा हुए है और किसी एक में किसी भी परिवर्तन का अनिवार्य रूप से दूसरे पर व्यापक प्रभाव पड़ेगा। केंद्र सरकार ने हलफनामे में कहा था कि जब तक केंद्र सरकार राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के साथ विचार-विमर्श कर रही है तब तक इस मामले पर सुनवाई ना की जाए साथ ही इसमें राज्य और केंद्र शासित प्रदेशों को पक्षकार बनाया जाए।
CJI की अध्यक्षता वाली 5 जजों की संविधान पीठ ने फिलहाल समलैंगिक जोड़ों को शादी की मान्यता देने के मामले में केंद्र सरकार के द्वारा दाखिल हलफनामा को नामंजूर कर दिया। फिलहाल सुप्रीम कोर्ट में मामले की सुनवाई जारी रहेगी।
Same Sex Marriage: संसद नहीं जा सकते तो अदालत का दरवाजा खटखटाया
Same Sex Marriage: समलैंगिक जोड़े को शादी की मान्यता देने की मांग के मामले पर याचिकाकर्ताओं की ओर से वकील मुकुल रोहतगी ने कहा अगर भारत को आगे बढ़ना है तो इस मामले में कोर्ट को पहल करनी होगी। उन्होंने कहा कि कभी-कभी कानून नेतृत्व करता है लेकिन कभी समाज भी नेतृत्व करता है। यहां मौलिक अधिकारों का मसला है आप मौलिक अधिकार के अंतिम रक्षक है। उन्होंने य़ह भी कहा कि सुधार भी एक सतत प्रक्रिया है।
हालाकि यहां अलग से किसी नियम या नए सिद्धांत की बात नहीं कर रहा हूं। साथ ही कोर्ट में कहा गया कि हम संसद नहीं जा सकता लेकिन हम यहां अदालत का दरवाजा खटखटा सकते है। हमे भी कोर्ट आने का अधिकार है और अगर यह अदालत कहती है कि हम कुछ नहीं कर सकते तो वह अपने संवैधानिक कर्तव्य से चूक जाएगी। उन्होंने किसी स्तर पर एक व्यक्ति का मौलिक अधिकार प्रभावित होता है तो उसे कोर्ट जाने का अधिकार है। इसलिए अपने अधिकारों की मांग के लिए हम आपके सामने है। फिलहाल अभिषेक मनु सिंघवी अपनी दलील रख रहे है।
सिंघवी ने कहा कि सबसे महत्वपूर्ण इस वर्ग का भेदभावपूर्ण बहिष्कार केवल सेक्स और यौन रुझान पर है। इसके अलावा समलैंगिक जोड़ों के लिए सन्तान के मामले पर दलील देते हुए कहा उनके लिए भी ऑप्शन है।जिसके वजह से परिवार की दलील पूरी हो जाती है। उन्होंने कहा विवाह की वैधता विवाह की उपस्थिति या संभावना पर निर्भर नहीं करती है। इस पर CJI ने कहा कि आपका कहना है कि राज्य किसी व्यक्ति के साथ उस विशेषता के आधार पर भेदभाव नहीं कर सकता है जिस पर किसी व्यक्ति का कोई नियंत्रण नहीं है।
सिंघवी ने कहा बिल्कुल अगर मेरा रुझान अलग हो तो मुझे मेरे अधिकार से वंचित नहीं कर सकते। सिंघवी ने मंदिरों में प्रवेश से लेकर विकलांगता के मुद्दों तक सभी प्रकार के भेदभावों पर सुप्रीम कोर्ट के द्वारा किए गए हस्तक्षेप और उनके फैसलों का हवाला भी दिया। CJI ने कहा कि य़ह अपनी अभिव्यक्तियों में शहरी इलाकों से लोग ज्यादा है क्योंकि शहरी क्षेत्रों में अधिक लोग इसमे शामिल हैं हालांकि सरकार की ओर से कोई आंकड़ा नहीं है कि उसमे शहरी या गांव के है।
वही जस्टिस रविंद्र भट्ट ने कहा कि कुछ चीजें हैं जो बिना किसी बाधा के की जा सकती हैं। आपको पहचानना होगा और हमें बताना होगा। इसपर वकील मेनका गुरुस्वामी ने कहा कि जब यह अदालत इस मामले मैं वैधता पर निर्णय दे देगी तो इन चिंताओं पर भी लगाम लग जाएगा क्योंकि तब समलैंगिक जोड़ों को बैंक और बीमा कंपनियों आदि के लिए शादी के सर्टिफिकेट की समस्या नहीं होगी।
वही वकील केवी विश्वनाथन ने कहा कि मेरी मुवक्किल ट्रांसजेंडर हैं। उनके परिवार ने उनको त्याग दिया गया था। उन्होंने अपने जीवन यापन के लिए भीख तक मांगी है और आज वह केपीएमजी में निदेशक हैं। उनके लिए एक शहरी अभिजात्य वर्ग का होने की बात को झूठा करता है। फ़िलहाल वह एक्ट के तहत सरकार द्वारा नामित ट्रांसजेंडर काउंसिल की सदस्य हैं। आज समलैंगिक जोड़ों को शादी की मान्यता देने की मांग वाली याचिकाओं पर संविधान पीठ में कल भी सुनवाई जारी रहेगी।
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