
Pegasus Case: सुप्रीम कोर्ट में गुरुवार को पेगासस मामले में सुनवाई हुई है। टेक्निकल कमेटी द्वारा कोर्ट में रिपोर्ट सौंपी गई। इस रिपोर्ट में 29 मोबाइल फोन दिए गए, जिसमें से 5 में मैलवेयर पाया गया है। हालांकि, ये कहा नहीं जा सकता कि जासूसी की गई है।
CJI एनवी रमना ने कहा कि पेगासस मामले में बनी जस्टिस रवींद्रन की रिपोर्ट को गुप्त रखने की जरूरत नहीं है। इस पर वकील कपिल सिब्बल ने आपत्ति जताते हुए कहा कि हम नहीं चाहते कि अदालत पूरी रिपोर्ट दे क्योंकि गोपनीयता को लेकर चिंताएं हैं। मेरे मुवक्किलों ने अपने फोन दिए हैं, अगर उनमें मैलवेयर था तो हमें सूचित किया जाना चाहिए।

कमेटी ने कोर्ट से सिफारिश की है कि रिपोर्ट का विवरण सार्वजनिक डोमेन में प्रकाशित नहीं किया जाना चाहिए। ये सूचना अपराधियों को कानून प्रवर्तन तंत्र को बायपास करने की अनुमति दे सकती है। इसके साथ ही ऑपरेटिंग सिस्टम के बारे में अधिक जानकारी से और नए मैलवेयर बन सकते हैं। नया मैलवेयर बनाने के लिए सामग्री का दुरुपयोग किया जा सकता है।
Pegasus Case: साइबर सिक्योरिटी को मजबूत करने की सलाह
रिपोर्ट के मुताबिक, 29 मोबाइल फोन में 5 मैलवेयर पाया गया है, लेकिन इससे साबित नहीं होता कि पेगासस स्पाइवेयर है। सीजेआई ने रिपोर्ट पढ़कर 6 पहलू बताए। समिति की सिफारिश है कि कानून में बदलाव कर उसे सख्त बनाएं। साइबर सिक्योरिटी को मजबूत करें। इसके साथ ही सीजेआई ने कहा कि रिपोर्ट सार्वजनिक नहीं की जाएगी। रिपोर्ट में सुझाव दिया गया है कि लोगों को गैरकानूनी सर्विलांस के खिलाफ अपनी समस्या उठाने के लिए ग्रीवांस मैकेनिज्म होना चाहिए।

पेगासस मामले की सुनवाई CJI एनवी रमना, जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस हिमा कोहली की बेंच ने सुनवाई की। इसी पीठ ने टेक्निकल कमेटी गठित की थी। इस कमेटी ने कई टेक्निकल मुद्दों पर जांच की है। जांच के दौरान कमेटी ने 29 अपकरणों और कुछ गवाहों की जांच पड़ताल और पूछताछ की बात कही है।
Pegasus Case: क्या है पेगासस और उससे जुड़ा मामला
पेगासस एक जासूसी सॉफ्टवेयर का नाम है। इस वजह से इसे स्पाईवेयर भी कहा जाता है। इसे इजरायली सॉफ्टवेयर कंपनी NSO Group ने बनाया है। पेगासस एक ऐसा सॉफ्टवेयर है जो टारगेट के फोन में जाकर डेटा लेकर इसे सेंटर तक पहुंचाता है। इस सॉफ्टवेयर के फोन के जाते ही फोन सर्विलांस डिवाइस के तौर पर काम करने लगता है। इससे एंड्रॉयड और आईओएस दोनों को टारगेट किया जा सकता है।

एक रिपोर्ट में दावा किया गया था कि 2019 में भारत में कम से कम 1400 लोगों के निजी मोबाइल या सिस्टम की जासूसी हुई थी। कहा गया कि इसमें 40 मशहूर पत्रकार, विपक्ष के 3 बड़े नेता, संवैधानिक पद पर आसीन एक बड़े अधिकारी, केंद्र सरकार के दो मंत्री, सुरक्षा एजेंसियों के कई बड़े अफसर, दिग्गज उद्योगपति भी शामिल हैं। इस पर काफी हंगामा हुआ और मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंच गया।
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