दिल्ली हाईकोर्ट ने बच्चों को नशे के लिए आसनी से मिलने वाले व्हाइटनर और थिनर को नशीले पदार्थों में शामिल करने का निर्देश दिया है। हाईकोर्ट ने पुलिस से कहा है कि वो जुवेनाइल जस्टिस (केयर एंड प्रोटेक्शन) एक्ट, 2015 की धारा 77 को लागू करे। इसके तहत नशीले द्रव की व्यापक तौर पर व्याख्या की गई है और इसमें व्हाइटनर और थिनर को भी शामिल किया गया है।
दिल्ली हाई कोर्ट के जस्टिस विपिन सांघी और जस्टिस पीएस तेजी की पीठ ने कहा कि हमे लगता है कि बच्चों को ये जानकारी नहीं रहती है कि वह जिस चीज को उपयोग कर रहे हैं उसके पीने से उन्हें नुकसान होगा। प्रथम दृष्टया इस तरह की वस्तुओं को जुवेनाइल जस्टिस अधिनियम की धारा 77 के तहत नशीला पदार्थ माना जाए।
कोर्ट में दिल्ली सरकार के स्थायी वकील राहुल मेहरा ने कहा कि नशीले द्रव की व्यापक व्याख्या की जरूरत है और इसमें परंपरागत तौर पर नशे के लिए इस्तेमाल होने वाले पेय के अलावा उन द्रव्यों को भी शामिल किया जाना चाहिए जो पेय पदार्थ नहीं हैं लेकिन उनसे नशा होता है। सुनवाई के दौरान कोर्ट को यह भी जानकारी दी गई कि दिल्ली सरकार ने जुलाई 2017 को एक सूचना जारी कर कहा था कि करेक्शन व्हाइटनर, थिनर और वल्केनाइज्ड सोल्यूशन का इस्तेमाल करने वाली चीजों पर अनिवार्य रूप से यह चेतावनी लिखी जाए कि इसके सूंघने से सेहत पर क्या असर होता है।
राहुल मेहरा ने कहा कि मुख्य सचिव से कहा गया कि वह इस बारे में एक निर्देश जारी करें कि 18 साल से कम उम्र के बच्चों को ऐसा चीजों की बिक्री तभी की जाए जब उनके अभिभावक उनके साथ हों। इस बीच दिल्ली पुलिस ने भी दिल्ली में नशीलें पदार्थों की बढ़ती समस्या से निपटने के लिए क्या कदम अब तक उठाए हैं इसके बारे में कोर्ट में एक रिपोर्ट पेश की। मामले की अगली सुनवाई अब 7 मार्च को होगी।