दिल्ली हाईकोर्ट ने केजरीवाल सरकार को तगड़ा झटका दिया है। हाई कोर्ट ने दिल्ली सरकार की मरीजों के इलाज संबंधी अधिसूचना को खारिज कर दिया है। अधिसूचना खारिज होने के बाद अब पहले की तरह कोई भी दिल्ली के गुरु तेग बहादुर अस्पताल में इलाज करा सकेगा। दिल्ली सरकार ने एक अधिसूचना लागू कर दिल्ली के अस्पतालों में 80 फीसदी तक इलाज की सेवाएं केवल दिल्लीवासियों के लिए आरक्षित कर दी थी। इसके साथ ही दिल्ली के अस्पतालों में 80 फीसदी के तहत इलाज कराने के लिए मतदाता पहचान पत्र अनिवार्य कर दिया गया था। दिल्ली सरकार की इस अधिसूचना को एक एनजीओं ने हाईकोर्ट में चुनौती दी थी। याचिका पर सुनवाई करते हुए हाई कोर्ट ने अब इस अधिसूचना को खारिज कर दिया है। इससे एनसीआर के करोड़ों लोगों को बड़ी राहत मिलेगी।
गुरु तेग बहादुर अस्पताल में दिल्ली के बाहर के मरीजों पर दिल्लीवासियों को प्राथमिकता देने के फैसले के खिलाफ दायर याचिका पर हाई कोर्ट ने आठ अक्टूबर को ही सुनवाई पूरी कर ली थी। इसके बाद हाई कोर्ट ने फैसले को सुरक्षित रख लिया था। अब शुक्रवार सुबह हाई कोर्ट ने अपना फैसला सुनाया है। याचिकाकर्ता व अधिवक्ता अशोक अग्रवाल ने कहा था कि 70 फीसद गरीब मरीज ही इलाज के लिए सरकारी अस्पताल में जाते हैं। अगर सरकारी अस्पताल गरीबों को इलाज नहीं देंगे तो वे कहां जाएंगे? उन्होंने कहा कि संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत हर व्यक्ति को देश के किसी भी राज्य में आने-जाने व सुविधाएं लेने का अधिकार है। जीटीबी अस्पताल में बाहरी मरीजों के इलाज पर रोक संबंधी दिल्ली सरकार का आदेश लोगों के संवैधानिक अधिकार का उल्लंघन है।
दिल्ली सरकार की तरफ से स्टैंडिंग काउंसल राहुल मेहरा ने दलील दी थी कि दिल्ली के बाहर के मरीजों के सरकारी अस्पताल में आने से संख्या ज्यादा होती है। फिर डॉक्टरों से मारपीट होती है। केंद्र सरकार पर्याप्त मात्रा में आर्थिक मदद नहीं कर रही है। उन्होंने दलील दी कि दिल्लीवासियों को बेहतर स्वास्थ्य सुविधा मुहैया कराने के लिए यह पायलट प्रोजेक्ट तैयार किया गया है।
बता दें कि गैर सरकारी संगठन सोशल ज्यूरिस्ट की जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए हाई कोर्ट ने कड़ा रुख अपनाया था। इसके बाद दिल्ली सरकार ने मुख्य न्यायमूर्ति राजेंद्र मेनन व न्यायमूर्ति वीके राव की पीठ को आश्वस्त किया था कि किसी भी मरीज को आपातकाल और जांच की सुविधा देने से इनकार नहीं किया जा सकता।