भारतीय भाषा परिषद का हर साल चार भारतीय भाषाओं को दिए जाने वाले ‘कर्तृत्व समग्र सम्मान’ और ‘युवा पुरस्कार’ की घोषणा कर दी गई है। ‘कर्तृत्व समग्र सम्मान’ के लिए हिंदी में वरिष्ठ लेखक भगवानदास मोरवाल, पंजाबी भाषा में जसवीर भुल्लर, मलयालम में एम. मुकुंदन और संस्कृत में राधावल्लभ त्रिपाठी को चुना गया है। युवा पुरुस्कार के लिए आरिफ रजा (कन्नड़), संदीप शिवाजीराव जगदाले (मराठी), गुंजन श्री (मैथिली) और जसिंता केरकेट्टा (हिंदी) का चयन किया गया है।
भारतीय भाषा परिषद की अध्यक्ष डॉ. कुसुम खेमानी और निदेशक शंभुनाथ ने पुरस्कारों की घोषणा करते हुए कहा कि कर्तृत्व समग्र सम्मान विजेता को 1 लाख की राशि और युवा पुरस्कार प्राप्त करने वाले लेखक को 51 हजार रुपये की राशि प्रदान की जाती है और ये पुरस्कार 20 अप्रैल को प्रदान किए जाएंगे।
आपको बता दें, भारतीय भाषा परिषद की स्थापना 1975 में हुई थी। कर्तृत्व समग्र सम्मान की शुरुआत 1980 में की गई थी और बाद में इससे युवा पुरस्कार भी जुड़े। भारतीय भाषा परिषद भारतीय भाषाओं और साहित्य के विकास और प्रोत्साहन के लिए कार्य कर रही देश की प्रतिनिधि सांस्कृतिक संस्था है। भारत की सभी राष्ट्रीय भाषाओं के अब तक सौ से अधिक वरिष्ठ और युवा साहित्यकार पुरस्कृत किए जा चुके हैं। परिषद भारतीय भाषाओं के बीच सेतुबंधन के लिए अपने सभागार में राष्ट्रीय स्तर के सेमिनारों के आयोजन के अलावा ‘वागर्थ’ मासिक का भी प्रकाशन करती है। इसने महानगर कोलकाता के सांस्कृतिक गौरव और हिंदी की राष्ट्रीय भूमिका के तौर पर अपनी सारस्वत परंपराओं को अक्षुण्ण रखा है।
भगवानदास मोरवाल
भगवानदास मोरवाल हरियाणा के मेवात क्षेत्र के नूंह जिले के नगीना में जन्मे अपनी अदम्य व जिजिविषापूर्ण कथा-यात्रा में एक अलग पहचान बनाई है। काला पहाड़, बाबल तेरा देस में, रेत, नरक मसीहा, हलाला, सुर बंजारन, वंचना, शकुंतिका, ख़ानज़ादा, मोक्षवन और कांस जैसे महत्त्वपूर्ण उपन्यासों के माध्यम से मोरवाल न केवल हिंदी कथा-साहित्य को समृद्ध किया है। भगवानदास मोरवाल हिंदी की औपन्यासिक रचनाशीलता के सर्वोत्तम प्रतिनिधियों में से एक हैं। भगवानदास मोरवाल अपने ऐतिहासिक उपन्यासों के लिए हिंदी साहित्य में विशेष स्थान रखते हैं। भूमंडलीकरण के भयाक्रांत करते कोलाहल के मध्य उन्होंने स्थानीयता एवं निजता का निनाद चिह्नित किया है। इनकी रचनाएँ परम्परा, विकास, लोकतन्त्र, लोकशील एवं जन जिजीविषा को वाणी प्रदान करती हैं। मोरवाल उन वैचारिक आग्रहों और सामाजिक हठों का अतिक्रमण करने वाले लेखक हैं जो धर्म तथा समाज के संबंधों को वैज्ञानिक संयम के साथ परखने नहीं देते। पाठकों व आलोचकों में भगवानदास मोरवाल की आत्मीय स्वीकृति इस तथ्य को रेखांकित करती है। आपकी कुछ रचनाओं और कृतियों का अनेक भारतीय भाषाओं में अनुवाद भी हुआ है।