जावेद अख्तर की नई किताब ‘सीपियां’,पढ़ें पुस्तक समीक्षा

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सीपियां

जाने माने गीतकार,पटकथा लेखक और शायर जावेद अख्तर की हाल में एक नई किताब आई है जिसका नाम है सीपियां। इस किताब का प्रकाशन राजकमल प्रकाशन ने किया है। इस किताब में जावेद अख्तर ने कबीर, तुलसी, वृंद, रहीम और बिहारी आदि कवियों के दोहों का संकलन किया है। भारतीय काव्य परंपरा में दोहा एक अत्यंत लोकप्रिय और प्रभावशाली छंद है। यह अपनी संक्षिप्तता, सरलता और सारगर्भिता के लिए प्रसिद्ध है। दोहा मात्र दो पंक्तियों में गूढ़ से गूढ़ बात कहने की क्षमता रखता है। यह छंद हिंदी साहित्य के भक्ति, नीति और प्रेम काव्य में अत्यंत प्रभावशाली भूमिका निभाता रहा है।

दोहे की संक्षिप्तता ही इसकी सबसे बड़ी विशेषता है, जिससे यह कहावत और लोकोक्तियों की तरह स्मरणीय बन जाता है।

उदाहरण:

“बड़ा हुआ तो क्या हुआ, जैसे पेड़ खजूर।
पंथी को छाया नहीं, फल लागे अति दूर।।”

इस दोहे में संत कबीर ने बड़े होने की निरर्थकता को व्यंग्यात्मक शैली में प्रस्तुत किया है जब वह दूसरों के लिए उपयोगी न हो।

हिंदी साहित्य में कई संतों और कवियों ने दोहों को माध्यम बनाकर समाज को नैतिकता, धर्म, प्रेम और भक्ति की शिक्षा दी। संत कबीर, रहीम, तुलसीदास प्रमुख दोहाकारों में गिने जाते हैं।

कबीर के दोहे सामाजिक कटाक्ष, आत्म-चिंतन और अध्यात्मिक गहराई से भरपूर होते हैं।
रहीम के दोहे नीति, व्यवहार और मानव संबंधों पर प्रकाश डालते हैं।

उदाहरण (रहीम):

“रहिमन धागा प्रेम का, मत तोड़ो चटकाय।
टूटे से फिर ना जुड़े, जुड़े गांठ पड़ जाय।।”

दोहों की विषयवस्तु अत्यंत व्यापक है — धर्म, नीति, भक्ति, प्रेम, सामाजिक व्यंग्य, जीवन-दर्शन आदि। दोहे न केवल साहित्यिक कृतियाँ हैं, बल्कि ये जन-मानस के मार्गदर्शक भी हैं। गाँव की चौपालों से लेकर विद्यालयों तक, दोहों का प्रयोग शिक्षा और संवाद के माध्यम के रूप में होता रहा है।

आज के युग में भी दोहे उतने ही प्रासंगिक हैं जितने अपने समय में थे। ये हमें जीवन के मूल्यों की याद दिलाते हैं और सही राह पर चलने की प्रेरणा देते हैं। दोहा न केवल एक छंद मात्र है, बल्कि वह भारतीय सांस्कृतिक और नैतिक मूल्यों का संवाहक भी है। यह छंद हमें कम शब्दों में गहन बात कहना सिखाता है। इसके माध्यम से समाज में व्याप्त कुरीतियों पर चोट की जा सकती है और लोगों को आत्मचिंतन हेतु प्रेरित किया जा सकता है। इसलिए दोहों का अध्ययन और प्रयोग साहित्यिक दृष्टि से ही नहीं, जीवन की दृष्टि से भी अत्यंत उपयोगी है।

इस किताब में जावेद अख़्तर ने ऐसे ही कुछ दोहों को चुनकर उनके भीतर छिपे सत्य को आम बोलचाल की भाषा में हर किसी के लिए सुलभ कर दिया है। जो बातें इनसे निकलकर आई हैं वे आज भी उतनी ही सच हैं, आज भी उतनी ही उपयोगी हैं, जितनी उस समय थीं, और आगे भी उतनी ही सार्थक रहेंगी। जावेद अख़्तर हमारी आज की रोज़मर्रा ज़िन्दगी से उन्हें जोड़ते हैं और बताते हैं कि कैसे उन पर अमल करके, उनसे मिलनेवाली सीख को अपनाकर हम ख़ुद को बेहतर इनसान और अपनी दुनिया को एक बेहतर समाज बना सकते हैं।