Book Review: भारत का इतिहास केवल युद्धों और राजवंशों का लेखा-जोखा नहीं है, बल्कि यह असंख्य वीर-वीरांगनाओं, राष्ट्रभक्तों और सनातन संस्कृति के रक्षकों की गाथा है। प्रो. गोविंद सिंह राठौड़ की यह पुस्तक ‘भारत की महान् राष्ट्रीय विभूतियां’ इसी गौरवशाली इतिहास को उजागर करती है, जिसमें 25 से अधिक महान व्यक्तित्वों की जीवन यात्राएं प्रस्तुत की गई हैं।
यह ग्रंथ न केवल शोधपूर्ण है, बल्कि यह भावनात्मक रूप से भी पाठकों को झकझोरता है, विशेषकर जब लेखक पोरस, चंद्रगुप्त मौर्य, समुद्रगुप्त, विक्रमादित्य, महाराणा प्रताप, छत्रपति शिवाजी, गोगाजी चौहान, राव जोधा, रानी पद्मिनी और दुर्गादास राठौड़ जैसे नायक और नायिकाओं की महागाथाओं का वर्णन करते हैं।
पुस्तक में वैसी सभी वीर गाथाएं प्रेरणादायक हैं लेकिन कुछ महान विभूतियों के जीवन का संघर्ष और देशप्रेम झकझोर देने वाला है। इस पुस्तक की दो गाथाएं, ‘अपराजेय महाराज पोरस’ और ‘महारानी पद्मिनी’ मुझे बहुत प्रेरणादायक लगीं।
पुस्तक के पहले अध्याय में सिकंदर के खिलाफ वीरता के साथ युद्ध करने वाले पौरव राज्य के महाराज पुरु (पोरस) के व्यक्तित्व, पराक्रम और देशभक्ति का उल्लेख किया गया है। लेखक ने बीच-बीच में इतिहासकारों और विशेषज्ञों कथनों का भी जिक्र किया है। लेखक ने बताया है कि झेलम नदी के तटों पर शुरू हुआ युद्ध, जिसमें सिकंदर जब पोरस से जीत ना सका तो उसने महाराज से मित्रता कर ली। इस प्रकार पोरस की यह विजय कहलाई।
इसके अलावा, अपने पुत्र के युद्ध में वीरगति प्राप्त होने के बावजूद, पोरस का शत्रु (सिकंदर) के निःशस्त्र और असहाय होने पर उस पर वार न करना, क्षात्रधर्म और वीरता का अत्यंत मार्मिक उदाहरण है, जो लेखक ने अत्यंत प्रभावशाली ढंग से वर्णित किया है। इसके साथ ही पोरस और सिकंदर के बीच संवाद को भी पुस्तक में अंकित किया गया है – सिकंदर के निमंत्रण पर जब पोरस उससे मिलने गया तो विश्व जीतने की चाह रखने वाले सिकंदर ने पोरस से पूछा, ‘आपके साथ किस तरह का व्यवहार किया जाए?’ इस पर पोरस ने निर्भयता और आत्मविश्वास से जवाब दिया, “जिस तरह का व्यवहार एक राजा दूसरे राजा के साथ करता है।” पोरस का यह जवाब सुनकर सिकंदर उसकी वीरता से अत्यंत प्रभावित हुआ। पोरस को इतिहासकारों ने अपराजेय राजा के साथ-साथ पुरुषोत्तम और अद्वितीय देशभक्त भी बताया है।
प्रो. (डॉ.) गोविंद सिंह राठौड़ की पुस्तक में महारानी पद्मिनी, राजकुमारी चारूमती और हाड़ी रानी जैसी वीरांगनाओं की गाथाएं अत्यंत प्रेरणादायक ढंग से वर्णित हैं। विशेष रूप से चित्तौड़ की महारानी पद्मिनी की कथा, जिन्होंने अपने ममेरे भाई गोरा और भतीजे बादल की सहायता से चतुराई और कूटनीति के माध्यम से महाराज रतनसिंह को शत्रु की कैद से मुक्त कराया, नारी शक्ति के अद्भुत साहस और विवेक का प्रतीक है।
रानी पद्मिनी केवल सौंदर्य की मिसाल नहीं थीं, बल्कि आत्मबलिदान और अस्मिता की रक्षा का प्रतीक भी बनीं। अलाउद्दीन खिलजी के समर्पण प्रस्ताव को ठुकराकर उन्होंने अपने सम्मान के लिए जौहर की ज्वाला को अपनाया। ज़रा कल्पना कीजिए—एक जलती हुई लौ जब हमारी त्वचा को छूती है तो हम दर्द से तुरंत पीछे हट जाते हैं, ऐसे में रानी पद्मिनी ने अलाउद्दीन की इच्छाओं का शिकार बनने की बजाय आत्मसम्मान के लिए अपने प्राणों की आहुति दी। उनका यह निर्णय नारी साहस और स्वाभिमान की पराकाष्ठा को दर्शाता है।
प्रो. (डॉ.) गोविंद सिंह राठौड़ द्वारा रचित यह कृति निस्संदेह ऐतिहासिक गाथाओं का एक ऐसा दस्तावेज़ है, जिसमें राष्ट्र के गौरवशाली अतीत को अत्यंत प्रामाणिक शोध और ऐतिहासिक संदर्भों के आधार पर प्रस्तुत किया गया है। पुस्तक का सबसे प्रभावशाली पहलू इसकी राष्ट्रवादी दृष्टिकोण से की गई पुनर्पाठ की शैली है, जो न केवल इतिहास को सजीव बनाती है बल्कि पाठकों को गर्व और आत्मचेतना से भी भर देती है। विशेष रूप से वीरांगनाओं को जो महत्व दिया गया है — जैसे रानी पद्मिनी, हाड़ी रानी और राजकुमारी चारूमती — वह आज की पीढ़ी के लिए प्रेरणा का स्रोत बनता है। इन चरित्रों के माध्यम से लेखक ने नारी शक्ति, आत्मबलिदान और सम्मान की रक्षा जैसे मूल्यों को प्रमुखता से उजागर किया है।
हालांकि, कुछ स्थानों पर भावनात्मक रंग लेखन में अधिक हावी होता है, जिससे आलोचनात्मक इतिहासकारों को तथ्यात्मक चुनौती महसूस हो सकती है। लेकिन आम पाठक के लिए यह शैली भावनात्मक जुड़ाव की दृष्टि से अत्यंत प्रभावी है। इसलिए, पुस्तक अपने उद्देश्य — ऐतिहासिक वीर-वीरांगनाओं को आधुनिक चेतना में स्थान दिलाना — में सफल प्रतीत होती है।
पुस्तक के प्रमुख पात्र:
पुस्तक में निम्न महान व्यक्तित्वों की जीवन गाथाएँ संकलित हैं:
- महाराजा पोरस
- सम्राट् चंद्रगुप्त मौर्य
- चक्रवर्ती सम्राट् समुद्रगुप्त
- सम्राट् विक्रमादित्य
- सम्राट् स्कंदगुप्त
- महाराजा दाहरसेन
- बापा रावल
- प्रतिहार नागभट्ट प्रथम
- सम्राट मिहिर भोज (प्रथम)
- गोगाजी चौहान
- भारतेश्वर सम्राट पृथ्वीराज चौहान
- हठी हमीर रणथंभौर
- महारानी पद्मिनी
- महाराज कान्हड़दे एवं वीरमदे
- महरावल दूदा
- राव जोधा
- राव सातल
- मेड़ताधीश राव दूदा (दुर्जनशाल)
- हिंदुपति महाराणा सांगा
- राजमाता कर्मवती व पन्ना धाय
- मेड़ताधीश जयमल मेड़तिया
- महाराणा प्रताप
- छत्रपति शिवाजी
- राजकुमारी चारूमती, हाड़ी रानी
- दुर्गादास राठौड़
यह पुस्तक छात्रों, इतिहास प्रेमियों, प्रतियोगी परीक्षा की तैयारी कर रहे युवाओं, शिक्षकों, तथा भारतीय संस्कृति से जुड़ाव रखने वाले पाठकों के लिए अत्यंत उपयुक्त साबित हो सकती है।
‘भारत की महान् राष्ट्रीय विभूतियां’ केवल अतीत की गाथा नहीं, बल्कि यह वर्तमान पीढ़ी के लिए एक प्रेरणास्रोत है। यह पुस्तक बताती है कि भारत का इतिहास केवल आक्रांताओं का नहीं, बल्कि वीरों और देश के लिए आत्मबलिदान करने वाली विभूतियों का रहा है।
लेखक: प्रो. (डॉ.) गोविंद सिंह राठौड़
प्रकाशक: प्रभात प्रकाशन
प्रकाशन वर्ष: 2025
पृष्ठ संख्या: 168
शैली: ऐतिहासिक-सांस्कृतिक जीवनी, राष्ट्रवादी साहित्य
मूल्य: 300 रुपये (पेपरबैक)