Anand Mohan Released: गैंगस्टर से राजनेता बने आनंद मोहन सिंह को गुरुवार सुबह बिहार की सहरसा जेल से रिहा कर दिया गया। आनंद मोहन 1994 में गोपालगंज के तत्कालीन जिलाधिकारी जी कृष्णैया की हत्या के मामले में आजीवन कारावास की सजा काट रहा था। आनंद मोहन की रिहाई जेल मैनुअल के नियमों में संशोधन के बाद हुआ है। इसके अनुसार, 14 साल या 20 साल जेल की सजा काट चुके 27 कैदियों को रिहा करने का आदेश दिया गया था। जिले के वीर कुंवर सिंह चौक पर पूर्व सांसद आनंद मोहन के स्वागत में पोस्टर लगाए गए हैं। गैंगस्टर से नेता बने आनंद मोहन पहले अपने विधायक बेटे चेतन आनंद की सगाई समारोह में शामिल होने के लिए 15 दिन की पैरोल पर आए थे।
बता दें कि नीतीश सरकार को हर मुद्दे पर घेरने वाली बीजेपी आनंद मोहन की रिहाई पर चुप्पी साधे हुए है। सियासी गलियारों में इसे वोट क की राजनीति बताई जा रही है। सियासी जानकारों का कहना है कि बीजेपी कहीं न कहीं इस बात से डर रही है कि अगर आनंद मोहन की रिहाई पर सवाल उठाया गया तो राजपूत वोटर 2024 के चुनाव से पहले नाराज हो सकते हैं। दरअसल,आनंद मोहन की राजपूतों में अच्छी पकड़ है। आनंद मोहन की रिहाई से महागठबंधन को काफी फायदा होने की संभावना है। हालांकि, इससे इतर आनंद मोहन की रिहाई को लेकर राज्य में राजनीति तेज हो गई है। इक्का दुक्का बीजेपी नेताओं का बयान भी आया है। लेकिन इन नेताओं के बयान का कोई तिया पाचा नहीं है। आइये जानते हैं कि आनंद मोहन की रिहाई को लेकर किस बीजेपी नेता ने क्या कहा?

बीजेपी नेता सुशील कुमार मोदी ने क्या कहा?
“आनंद मोहन की रिहाई का हम विरोध नहीं करते हैं, लेकिन उनके साथ जिन 27 लोगों को छोड़ा जा रहा है, उसमें सभी बड़े अपराधी हैं। नीतीश सरकार वैसे व्यक्ति को छोड़ने के लिए कानून में संशोधन कर रहे हैं, जो एक दलित अधिकारी की हत्या के बाद जेल में सजा काट रहा था। ऐसे में तो कोई भी किसी सरकारी सेवक की हत्या कर देगा और 10-12 साल के बाद छूट कर आ जाएगा। जिन लोगों को छोड़ा जा रहा है, वे सरकारी सेवक की हत्या के दोषी हैं। उन्हें आरक्षण का लाभ न देने का नीतीश की सरकार ने 2016 में कानून बनाया था। अब अपने बनाए कानून में ही नीतीश कुमार संशोधन किए।”
गिरिराज सिंह का बयान
“आनंद मोहन की रिहाई से किसी को कोई आपत्ति नहीं है लेकिन आनंद मोहन के आड़ में इस सरकार ने जो काम किया है, उसे समाज कभी माफ नहीं करेगा।”
असदुद्दीन ओवैसी ने कहा?
” 5 दिसंबर 1994 को एक दलित आईएएस की हत्या की गई, जब वह महज 37 साल का था। उन्होंने कहा कि आखिर अब कौन सा आईएएस अधिकारी बिहार में जान जोखिम में डालेगा। कृष्णैया ने मजदूरी कर पढ़ाई की थी। उन्होंने कहा कि वह कृष्णैया के परिवार के साथ हैं और ये भी उम्मीद करते हैं कि एक बार फिर इस मामले को लेकर सोचा जाएगा।”
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