मानसून में पहाड़ी नदियां। गदेरे और नाले उफान पर हैं। ऐसे में पौड़ी जिले के कोटद्वार तहसील में रहने वाले कई इलाके के लोगों की सांसें अटकी हुई हैं। दरअसल, रिवर चेनलाइजिंग के नाम पर खनन माफिया ने अधिकारियों की मिलीभगत से सुखरौ। खोह। तेली स्रोत जैसी नदियों में अंधाधुंध खुदाई की है। .बाढ़ से बचाव के लिए बनाई गई दीवारों की जड़ें तक खोद डाली है। जिससे लोगों को बाढ़ का खतरा सताने लगा है। रिवर चेनलाइजिंग नीति 2016 के तहत पौड़ी में जिला प्रशासन ने सुखरौ। खोह और तेली स्रोत नदियों में खनन की अनुमति दी थी। मकसद ये था कि नदी। नालों और गदेरों में जमा मिट्टी और बजरी बालू को हटाया जा सके। ताकि बाढ़ का पानी बिना कहीं रुके सीधे आगे निकल जाए।
जिला प्रशासन ने एक से डेढ़ मीटर तक खुदाई की अनुमति दी थी। लेकिन खनन माफिया ने सरकारी अधिकारियों की मिलीभगत से पांच मीटर तक खुदाई कर दी। और वो भी एक समान नहीं। .जगह-जगह गड्ढे बना दिए गए। आस-पास के क्षेत्रों से बाढ़ से बचाने के लिए बनाई गई सुरक्षा दीवारों की जड़ें तक खोद डाली है। ऐसे में बाढ़ का खतरा मंडराने लगा है। 30 जून को खनन अधिकारी ने मौका मुआयना कर खनन को मानकों के विपरीत बताया था। उनका कहना है कि ड्रोन से वीडियोग्राफी कराई गई है। उसके आधार पर कार्रवाई की जाएगी।
वहीं जिला प्रशासन मानकों के विपरीत खनन की बात से इनकार कर रहा है। जिलाधिकारी का कहना है कि खनन ठेकेदार ने निर्धारित रॉयल्टी के अनुरूप खनन नहीं होने की बात बताई है। अगर कहीं कुछ गलत हुआ होगा तो उसकी जांच कराई जाएगी। वहीं सामाजिक कार्यकर्ता मुजीव नैथानी का कहना है कि अधिकारी काम नहीं करना चाहते है। काम करते भी हैं तो बिना दबाव के नहीं । तेली स्रोत गदेरे में बेतरतीब खनन की शिकायतें बहुत पहले से मिल रही थीं। APN ने अवैध खनन को प्रमुखता से दिखाया भी था। अधिकारियों का इस ओर ध्यान भी दिलाया था। लेकिन अधिकारी धृतराष्ट्र बने चुप्पी साधे बैठे रहे। अब जब खतरा सिर पर मंडरा रहा है तो जांच और कार्रवाई की बात कह रहे हैं। लेकिन सवाल उठता है कि अगर बाढ़ से नुकसान होता है तो उसकी जिम्मेदारी किसके सिर होगी।
-दीपक कुमार मिश्र