दिल्ली-NCR से सभी आवारा कुत्तों को हटाने के सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर बवाल

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सुप्रीम कोर्ट के आदेश से दिल्ली-NCR के सभी इलाकों से आवारा कुत्तों को हटाने को लेकर ऑनलाइन गरमागरम बहस छिड़ गई है। सोमवार को शीर्ष अदालत ने दिल्ली सरकार और गुरुग्राम, नोएडा व गाजियाबाद की नगर निकायों को तत्काल प्रभाव से सभी इलाकों से आवारा कुत्तों को हटाकर शेल्टर होम में रखने का निर्देश दिया, यह भी स्पष्ट किया कि इन कुत्तों को दोबारा सड़कों पर नहीं छोड़ा जाएगा। जहां रेज़िडेंट वेलफेयर एसोसिएशनों (RWAs) ने इस आदेश का स्वागत किया, वहीं पशु अधिकार कार्यकर्ताओं का कहना है कि नगर निकायों के पास इतनी बड़ी जिम्मेदारी निभाने के लिए न तो जमीन है और न ही पर्याप्त धन।

आदेश पर प्रतिक्रिया देते हुए एक यूजर ने लिखा, “प्रिय आवारा कुत्ता प्रेमियों, अगर आपको सड़क से कुत्तों को हटाने के सुप्रीम कोर्ट के फैसले से इतनी तकलीफ है, तो कृपया कुछ कुत्तों को अपने घर ले जाएं और उन्हें प्यार भरा घर दें। उनके टीकाकरण, ट्रेनिंग और इलाज पर खर्च करें। सिर्फ घर से बची बासी रोटियां खिलाने से आप पशु प्रेमी नहीं कहलाते।” एक अन्य ने टिप्पणी की, “किसी को भी अपने तीन साल के बच्चे की जान जोखिम में डालने की जरूरत नहीं है, सिर्फ इसलिए कि कोई कहीं आवारा कुत्तों के प्रति दयालु है। बात इतनी ही सरल है।”

एक यूजर ने लिखा, “अगर आपको दिल्ली-NCR में आवारा कुत्तों की स्थिति का अंदाजा नहीं है, तो उनसे पूछें जो नाइट शिफ्ट में काम करते हैं। मैं खुद कुत्ता प्रेमी हूं, लेकिन आवारा कुत्तों की यह समस्या खत्म होनी चाहिए। मैं सुप्रीम कोर्ट के फैसले का समर्थन करता हूं।” वहीं, एक अन्य यूजर ने कहा, “सुप्रीम कोर्ट के आवारा कुत्तों पर फैसले में बुनियादी समस्या यही है: इंसानों का भोजन श्रृंखला में शीर्ष पर होना महज किस्मत है। हम श्रेष्ठता का दावा नहीं कर सकते, और न ही इसकी गारंटी है कि हम हमेशा शीर्ष पर रहेंगे। फिर भी हम अपने विशेषाधिकार का इस्तेमाल अन्य प्रजातियों को खत्म करने के लिए करते हैं। सुप्रीम कोर्ट का यह आदेश न केवल सहानुभूति की कमी दर्शाता है, बल्कि बुनियादी विकासवादी जीवविज्ञान की अनदेखी भी करता है।”

एक अन्य टिप्पणी में लिखा गया, “अगर आपने कभी किसी आवारा कुत्ते से प्यार नहीं किया, तो आपने सबसे पवित्र प्रेम को खो दिया है और यह नुकसान सिर्फ आपका है। यह फैसला सिर्फ कानून नहीं तोड़ता, यह क्रूर है। यह 2023 के एनिमल बर्थ कंट्रोल नियमों का उल्लंघन करता है, पशु कल्याण कानूनों को दरकिनार करता है और हमारे संविधान में निहित कर्तव्यों को कुचलता है। हम अपने आवारा कुत्तों के प्रति इससे बेहतर व्यवहार के ऋणी हैं।”

एक यूजर ने लिखा, “दिल्ली में आवारा कुत्तों पर सुप्रीम कोर्ट का आदेश हर सड़क पर मौजूद हर कुत्ते के लिए मौत का फरमान है — और हम सभी को इसके खिलाफ आवाज उठानी चाहिए।”
एक अन्य ने कहा, “उम्मीद है कि यह काम दया, उचित सुविधाओं और उनके कल्याण पर ध्यान केंद्रित करके किया जाएगा, ताकि हर हिलती पूंछ डर के बजाय सुकून पाए।”

निर्देशों के तहत, दिल्ली-NCR क्षेत्र में नगर निकायों को छह से आठ सप्ताह के भीतर कम से कम 5,000 कुत्तों के लिए शेल्टर की क्षमता बनाने का आदेश दिया गया है। इन सुविधाओं में पर्याप्त स्टाफ होना चाहिए जो नसबंदी और टीकाकरण कर सके, सीसीटीवी निगरानी हो ताकि किसी भी रिहाई को रोका जा सके, और इन्हें भविष्य में बढ़ाने के लिहाज से डिजाइन किया जाए। नगर निकायों को कुत्तों के काटने की घटनाओं की रिपोर्टिंग के लिए हेल्पलाइन शुरू करने का भी निर्देश दिया गया है।

अदालत ने कहा कि नगर निकाय इस काम को कैसे करेंगे, यह वे खुद तय कर सकते हैं, और जरूरत पड़ने पर एक विशेष बल भी बना सकते हैं। अदालत ने चेतावनी दी कि इस प्रक्रिया में बाधा डालने वालों के खिलाफ अवमानना की कार्रवाई की जाएगी।