बुंदेलखंड का इलाका हमेशा से सूखा प्रभावित रहा है। गर्मी आते ही यहां जल संकट और गहरा जाता है। आजादी के इतने वर्षों बाद आज भी इस इलाके के ग्रामीण क्षेत्रों मे नदी और तालाब के अलावा हैंडपंप ही पानी का मुख्य स्रोत है। ज्यादातर नदी और तलाब का पानी पीने लायक नहीं है। ऐस में हैंडपंप ही इस इलाके के लोगों की जान बचाता है, लेकिन कभी अगर ये हैंडपंप अचानक खराब हो गए तो उनकी मुश्किलें बढ़ जाती है।
इस मुश्किल को कम करने की दिशा में मध्यप्रदेश के छतरपुर जिले में महिलाओं की एक टोली अनोखा अभियान चला रही है। ‘हैंडपंप चाची’ के नाम से मशहूर महिलाओं की यह टोली बूंद-बूंद पानी को तरसते ग्रामीणों के लिए वरदान की तरह है। ये महिलाएं गांवों में घूम-घूम कर मुफ्त में खराब हैंडपंप ठीक करने में जुटी रहती हैं। इनकी ख्याति ऐसी है कि कभी-कभी 50 किलोमीटर दूर के गांव वाले भी हैंडपंप मरम्मत के लिए इन्हें बुलाते हैं।
बुंदेलखंड में जहां गांव की औरतें सामाजिक कारणों से घरों से बाहर कदम रखने से कतराती हैं वहीं ये महिलाएं हाथों में हथौड़ा और रिंज लेकर हैंडपंपों को ठीक करने के लिए गांव-गांव भटकती हैं ताकि गांव वालों को पानी के लिए परेशान न होना पड़े। छतरपुर के झिरियाझोर गांव की ये महिलाएं धूप हो या बारिश कभी नहीं रुकती। जब भी किसी गांव में हैंडपंप खराब होने की खबर मिलती है 15 महिलाओं की यह टोली वहां पहुंचकर अपने काम में जुट जाती है। कई बार तो इन्हें 25 से 50 किलोमीटर दूर तक जाना पड़ता है, लेकिन पिछले 8 सालों में इनके कदम कभी नहीं थके। हैंडपंप की मरम्मत में इन महिलाओं का कोई जवाब नहीं
इस टोली की एक सदस्य परमी बताती हैं, ‘हम नहीं चाहते कि कोई पानी के लिए तड़पे। इसलिए हमें जैसे हीं कोई हैंडपंप मरम्मती के लिए बुलाता है हम अपना काम छोड़कर निकल पड़ते हैं। हमें पैसे का लालच नहीं है, हम लोगों के लिए काम कर रहे हैं और लोग हमारी इज्जत करते हैं, यही बहुत है’।
ये महिलाएं कोई पारिश्रमिक नहीं लेती। गांव वाले इनकी मेहनत के बदले इनके खाने-पीने का इंतजाम जरुर कर देते हैं। अब तो स्थिति यह हो गई है कि पूरे इलाके में जब भी किसी गांव में कोई हैंडपंप खराब होता है लोग इन्हीं महिलाओं को उसे ठीक करने के लिए याद करते हैं।
इन महिलाओं को इस बात का दर्द जरुर है कि सरकार ने कभी इनके काम की अहमियत नहीं समझी। सरकार से इन्हें कभी कोई मदद नहीं मिली।
एक और हैंडपंप चाची पुनिया कहती हैं ‘हम जो भी कर रहे हैं, अपने दम पर कर रहे हैं। हमें कभी कोई सरकारी मदद नहीं मिली। लेकिन हम अपना काम करते रहेंगे। हम सरकारी मदद के इंतजार में दूसरों को प्यासा तो नहीं रख सकते’।
गांववाले भी हैंडपंप खराब होने पर पीएचई विभाग के पास जाने के बजाय इन महिलाओं के पास जाना ज्यादा पसंद करते हैं क्योंकि सरकारी महकमें के लोग हफ्ते भर बाद ही पहुंचते हैं। ये महिलाएं वाकई में एक मिसाल है और पुरुष प्रधान समाज के लिए एक सबक भी तभी तो हैंडपंप चाची इस इलाके में समाज सेवा की प्रतीक बन गई है।