42 वर्षीय हरीश चंद तिवारी ने एक ऐतिहासिक कामयाबी हासिल की है। हरीश तिवारी ने सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दाखिल की थी कि मोबाइल फोन टॉवर के इलेक्ट्रोमैग्नेटिक रेडिएशन से उन्हें कैंसर हुआ है। सुप्रीम कोर्ट ने इस आधार पर मोबाइल टॉवर को बंद करने का आदेश दिया है। देश के अंदर ऐसा पहली बार होने जा रहा है, जब एक व्यक्ति की शिकायत पर मोबाइल टावर बंद किया जाएगा। इस उपलब्धि के लिए हरीश चंद तिवारी का नाम इतिहास में दर्ज हो जाएगा।
याचिकाकर्ता हरीश तिवारी ग्वालियर में प्रकाश शर्मा नाम के शख्स के घर पर काम करते हैं। हरीश तिवारी ने साल 2016 में वकील निवेदिता शर्मा की मदद से सुप्रीम कोर्ट में अपील की थी। हरीश ने याचिका में कहा था कि जहां वह काम करते हैं, उसके पड़ोस के घर की छत पर अवैध रूप से साल 2002 में बीएसएनएल का मोबाइल टावर लगाया गया था। वह पिछले 14 साल से उस टावर के हानिकारक रेडिएशन का शिकार बना रहे हैं। हरीश का कहना है कि जहां वह काम करते हैं, वहां से पड़ोसी का घर महज 50 मीटर की दूरी पर है।
ऐसे में लगातार और लंबे समय तक रेडिएशन के संपर्क में रहने की वजह से उन्हें ‘हॉजकिन्स लिम्फोमा’ नामक कैंसर हो गया है। जस्टिस रंजन गोगोई और नवीन सिन्हा की बेंच ने बीएसएनएल को सख्त देते हुए कहा है कि सात दिनों के अंदर उक्त टॉवर को बंद कर दिया जाए।
मोबाइल टावर रेडिएशन के खिलाफ काम करने वाले कार्यकर्ताओं का आरोप है कि इनसे गौरैया, कौवे और मधुमक्खियां विलुप्त हो रही हैं। हालांकि, सेल्युलर ऑपरेटर्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया और भारत सरकार ने इन आरोपों का खंडन किया है। उन्होंने कहा है कि इस तरह के डर का कोई आधार नहीं हैं क्योंकि किसी भी वैज्ञानिक अध्ययन ने इसकी पुष्टि नहीं की है।
डिपार्टमेंट ऑफ टेलिकॉम ने अक्तूबर, 2016 में सुप्रीम कोर्ट में एक हलफनामा दाखिल किया था। इस हलफनामे में कहा गया है कि देश में 12 लाख से अधिक मोबाइल टॉवर लगे हैं। विभाग ने 3.30 लाख मोबाइल टॉवरों का परीक्षण किया, जिनमें से केवल 212 टॉवरों से रेडिएशन तय सीमा से अधिक पायी गयी। इन पर 10 लाख रुपए का जुर्माना लगाया गया है। डिपार्टमेंट ऑफ टेलिकॉम के मुताबिक अब तक सेल्युलर ऑपरेटर्स से जुर्माने के तौर पर 10 करोड़ रुपये इकट्ठे किए जा चुके हैं।