केंद्रीय प्रशासनिक न्यायाधिकरण (कैट) ने मैग्सेसे पुरस्कार विजेता आईएफएस अधिकारी संजीव चतुर्वेदी की वार्षिक गोपनीय रिपोर्ट (एसीआर) लिखने की जिद पर अड़े केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री जेपी नड्डा के आदेश पर रोक लगा दी है। इसके अलावा कैट ने अपने आदेश में एम्स के निदेशक और नड्डा के विरुद्ध अवमानना की कारवाई करने की संजीव चतुर्वेदी की मांग भी मान ली है। इस आदेश के बाद  केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री मुश्किल में पड़ सकते हैं। अवमानना का आरोप सिद्ध होने पर सजा का प्रावधान भी है।

इस मामले की शुरुआत जेपी नड्डा के केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री बनने के साथ हुई। दिसंबर 2014  में उनके एम्स का अध्यक्ष बनने की अधिसूचना जारी हुई। अध्यक्ष बनने के बाद नड्डा ने मई 2015 में संजीव की एसीआर लिखने का आदेश जारी कर दिया। जबकि नियमों के अनुसार किसी भी वरिष्ठ अधिकारी द्वारा अधीनस्थ अधिकारी की एसीआर लिखने का आदेश तभी दिया जा सकता है जब वह एक साथ कम से कम 90 दिन तक लगातार काम कर चुके हैं। नड्डा के आदेश में यह शर्त पूरी नहीं हुई थी क्योंकि चतुर्वेदी इस 90 दिन की अवधि में 28 दिन की छुट्टी पर रह चुके थे।

इस आदेश का विरोध करते हुए संजीव ने कैट में केस दायर किया था, जिसके बाद  कैट ने पिछले साल तीन फरवरी को 106 पन्ने के अपने फैसले में इस आदेश को गलत करार दिया था। यह आदेश 90 दिनों के नियम को आधार बनाकर दिया गया था। इस आदेश के बाद केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय एक साल तक चुप्पी साधे रहा लेकिन दुबारा 21 जनवरी को फिर से नड्डा ने संजीव की एसीआर लिखने का आदेश जारी कर दिया। दिलचस्प यह है कि यह आदेश फिर से उसी समय के एसीआर लिखने के लिए जारी किया गया जिसे कैट रद्द कर चूका था

JP Nadda

स्वास्थ मंत्रालय द्वारा पुनः आदेश जारी होने के बाद संजीव ने भी कैट में नया केस दाख़िल किया। जिसकी सुनवाई करते हुए कैट ने इन आदेशों पर तत्काल रोक लगा दी। साथ ही कैबिनेट सचिव, केंद्रीय स्वास्थ्य सचिव, स्वास्थ मंत्री जेपी नड्डा और एम्स निदेशक को नोटिस जारी करके चार सप्ताह में जवाब दाखिल करने को कहा है। इस बार सुनवाई करते हुए कैट ने संजीव को जेपी नड्डा, एम्स निदेशक और एम्स के उपनिदेशक के विरुद्ध पिछले तीन फरवरी 16 के आदेश की अवमानना का केस दायर करने की भी अनुमति दे दी है।

गौरतलब है कि संजीव और नड्डा में तल्खी की शुरुआत पहले ही हो गई थी। यह तल्खी तब शुरू हुई थी जब संजीव चतुर्वेदी एम्स में भ्रस्टाचार से जुड़े मामलों को उजागर करने में लगे थे। जे पी नड्डा उस समय सांसद थे संजीव की जाँच में उनका नाम भी सामने आया थे।

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