उपन्यास ‘लाइन पार’ अंग्रेजी उपन्यास Rumble in a Village का हिंदी अनुवाद है। इसके लेखक हैं Luc Leruth और Jean Drèze। इस उपन्यास का कथाकार अनिल सिंह जमींदार परिवार से आता है। उपन्यास में अनिल सिंह को इस बात का एहसास होता है कि कैसे उसके जमींदार पूर्वज गांव के दलितों और मजदूरों का शोषण करते आए थे। उपन्यास की शुरुआत साल 1984 में होती हैं जहां अनिल के चाचा की हत्या हो जाती है। लंदन में बैठे अनिल को जब सूचना मिलती है कि उसके चाचा की हत्या हो गई है तो वह सच्चाई का पता लगाने के लिए अपने गांव लौटने का फैसला करते हैं।
गांव आकर अनिल को पता चलता है कि उसके चाचा की हत्या के आरोप में एक दलित महिला को गिरफ्तार किया गया है। हालांकि सब कहीं न कहीं जानते हैं कि असली हत्यारा कोई और ही है। असली हत्यारे की पहचान करने में अनिल जुट जाते हैं। इस दौरान अनिल का गांव के परिवेश से, वहां की व्यवस्था से परिचय होता है। गांव में सत्ता के समीकरण, ऊंच नीच के भेद से अनिल परिचित होते हैं।
पालनपुर गांव में मुख्य रूप से तीन जातियां रहती हैं पहली चमार, दूसरे खेती करने वाले मुराव और तीसरे जमींदार परिवार के लोग यानी कि ठाकुर जाति के लोग। जिससे अनिल सिंह आते हैं। उपन्यास में अनिल सिंह की खेती- बाड़ी की किताबी समझ असल हकीकत मालूम चलने पर दूर होती है।
इस उपन्यास का परिवेश पालनपुर गांव का है जो कि दुनिया से इतना कटा हुआ, अपने में कैद इलाका है कि वहां रेल के आने से गांव वाले डर जाते हैं। गांव में रेलवे का विकास कहानी के साथ चलता रहता है। उपन्यास दलितों की स्थिति पर खासतौर पर रोशनी डालता है कि कैसे गांव के समाज में वे बहिष्कृत हैं। सामाजिक कार्यक्रमों से उनको दूर रखा जाता है। यह उपन्यास एक माध्यम है दलितों की स्थिति पर टिप्पणी करने का। लेखक अनिल सिंह के किरदार को गांव के दलितों से इसलिए परिचित कराते हैं। जिससे कि उनका उद्देश्य सार्थक हो सके।
यह उपन्यास सरकारी खामियों को भी बताता है कि कैसे अंग्रेजों के जाने के बाद सरकारों ने गांव के लोगों को समझा नहीं। सरकार का उन के प्रति रवैया उदासीन ही रहा।
लेखक गांव में सरकारी कामकाज के बारे में विस्तार से बताते हैं। उपन्यास में सरकारी मदद के लिए गांव के लोगों को लाल फीताशाही से गुजरना पड़ता है।
इस उपन्यास के लेखक अर्थशास्त्र की गहरी समझ रखते हैं इसलिए आपको ये किताब पढ़ते हुए लगेगा कि ग्रामीण भारत के अर्थतंत्र को परत दर परत लेखक खोल रहे हैं।
लेखकों ने कई जगह तंज भी किया है जैसे कि गांव की गरीबी बिना गांव को जाने दूर नहीं होगी। इस उपन्यास में अनिल सिंह के बहाने खेती किसानी के बारे में अधिक जानने को मिलता है। अनिल के चाचा की हत्या कहानी कहने का एक आधार इस उपन्यास में है। उपन्यास पढ़कर पाठकों को ग्रामीण भारत की जातिव्यवस्था , सत्ता के ताने बाने और प्रशासनिक खामियों का पता चलता है।
किताब के बारे में
उपन्यास – लाइन पार
पेज संख्या-342
मूल्य- 450 रु.
प्रकाशक- राजकमल प्रकाशन