पश्चिम बंगाल की दीदी यानि मुख्यमंत्री ममता बनर्जी और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी में जो 36 का आंकड़ा है, उससे हर कोई वाकिफ है। बनर्जी, मोदी सरकार का विरोध करने के लिए कोई भी मौका हाथ से नहीं जाने देती। इस बार ममता सरकार, केंद्र सरकार के प्रॉजेक्ट्स के नाम बदलने के अभियान पर है।
गौरतलब है कि उन्होंने केंद्र सरकार के बहुत से प्रॉजेक्ट्स को बांग्ला नाम दे दिया है। अब यह वैचारिक मतभेद के बीच मनभेद प्रकट करने वाली बात है कि मोदी से खफा रहने वाली ममता बनर्जी को आगामी लोकसभा चुनाव का डर सताने लगा है। उन्हें डर है कि यूपी में जिस तरह प्रधानमंत्री के नाम से प्रधानमंत्री उज्जवला योजना से मोदी का जादू चला था, कहीं उसका असर बंगाल में भी न हो जाए। योजनाओं के नाम बदलने के पीछे ममता का तर्क है कि अगर पश्चिम बंगाल केंद्र के प्रॉजेक्ट्स के लिए 40 पर्सेंट से अधिक योगदान दे रहा है, तो राज्य के पास प्रॉजेक्ट्स का नाम बांग्ला में रखने का पूरा अधिकार है।
जल्द ही पश्चिम बंगाल सरकार प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना से ‘प्रधानमंत्री’ को हटा देगी। राज्य सरकार ने स्वच्छ भारत मिशन का नाम बदलकर निर्मल बांग्ला और नैशनल रूरल लाइवलीहुड्स मिशन या दीनदयाल उपाध्याय अंत्योदय योजना का नाम आनंदाधारा कर दिया है। इतना ही नहीं प्रधानमंत्री ग्रामोदय योजना को अब पश्चिम बंगाल में ‘बांग्ला गृहा प्रकल्प’ और दीनदयाल उपाध्याय ग्राम ज्योति योजना को ‘सबर घरे आलो’ कहा जाएगा।
ममता का कहना है कि केंद्र सरकार ने बहुत सी केंद्रीय योजनाओं में फंड की अपनी हिस्सेदारी घटा दी है। पहले केंद्र-राज्य की हिस्सेदारी 90:10 थी, फिर राज्य की हिस्सेदारी को चार गुना बढ़ाकर 60:40 कर दिया गया। राज्य प्रॉजेक्ट की कम से कम आधी लागत के लिए भुगतान कर रहा है। इस वजह से प्रधानमंत्री या केंद्र में संबंधित राजनीतिक दलों के नेताओं या विचारकों के नाम पर योजनाएं क्यों चलाई जानी चाहिए।
जग जाहिर है कि ममता बनर्जी और प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी में हमेशा खींचतान रहती है। इससे पहले दीदी कथित तौर पर ‘संघीय ढांचे के उल्लंघन’ के लिए मोदी के खिलाफ शिकायत करती रही हैं। इसके अलावा उन्होंने केंद्र के डीमॉनेटाइजेशन के कदम का भी जमकर विरोध किया था।