जानिए क्या है देश में पहले बार जारी होने वाले Green Bond के बारे में जिनके जरिए सरकार लेगी हरित परियोजनाओं के लिए पैसा

ग्रीन बॉन्ड दरअसल, वे बॉन्ड होते हैं जिनका उपयोग सरकार ऐसी परियोजनाओं में करती है जिसका पर्यावरण पर सकारात्मक असर पड़ता है. 2007 में सबसे पहले इस तरह के बॉन्ड यूरोपीय निवेश बैंक और विश्व बैंक ने लॉन्च किए थे.

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Green Bond

बजट 2022-23 को पेश करते हुए किये गए वायदे को पूरा करते हुए 9 नवंबर को केंद्रीय वित्त और कॉर्पोरेट मामलों के मंत्री निर्मला सीतारमण ने भारत के पहले सॉवरेन ग्रीन बॉन्ड (Sovereign Green Bond) फ्रेमवर्क को मंजूरी दे दी है. मंत्रालय ने बताया कि देश में हरित परियोजनाओं (Green Projects) के लिये संसाधन जुटाने के लिए सॉवरेन ग्रीन बॉन्ड जारी किये जाएंगे.

सॉवरेन ग्रीन बॉन्ड फ्रेमवर्क

केंद्र सरकार ने बताया कि इस मंजूरी से पेरिस समझौते (Paris Agreement) के तहत अपनाए गए अपने राष्ट्रीय स्तर पर निर्धारित योगदान (Nationally Determined Contribution – NDC) के लक्ष्यों के प्रति भारत की प्रतिबद्धता और भी अधिक मजबूत होगी, और इसके साथ ही इससे पात्र हरित परियोजनाओं में वैश्विक एवं घरेलू निवेश को आकर्षित करने में मदद मिलेगी.

वित्त मंत्रालय की ओर से जारी किए गए नए ग्रीन बॉन्ड मसौदे के मुताबिक केंद्र सरकार 16,000 करोड़ रुपये की ग्रीन बॉन्ड पेशकश के माध्यम से इस साल 9 व्यापक श्रेणियों में परियोजनाओं और पहल का वित्तपोषण करेगी.

वित्त मंत्रालय द्वारा जारी किए गए एक प्रेस नोट में बताया गया कि “यह फ्रेमवर्क, 2021 में ग्लासगो में COP26 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के विजन “पंचामृत” के तहत भारत की प्रतिबद्धताओं के अनुसार है.“

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क्या है ग्रीन बॉन्ड?

ग्रीन बॉन्ड दरअसल, वे बॉन्ड होते हैं जिनका उपयोग सरकार ऐसी परियोजनाओं में करती है जिसका पर्यावरण पर सकारात्मक असर पड़ता है. 2007 में सबसे पहले इस तरह के बॉन्ड यूरोपीय निवेश बैंक और विश्व बैंक ने लॉन्च किए थे. वर्ष 2007 में इस बाजार की स्थापना के बाद से अंतर्राष्ट्रीय हरित बॉन्ड बाजार में 1 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर से अधिक का निवेश हुआ है.

9 श्रेणी में परियोजनाओं के लिए मिलेगा पैसा

ग्रीन बॉन्ड को 9 व्यापक श्रेणियों में बांटा गया है जिनमें अक्षय ऊर्जा, ऊर्जा कुशलता, स्वच्छ परिवहन, जलवायु परिवर्तन के अनुकूलन, टिकाऊ जल एवं कचरा प्रबंधन, प्रदूषण रोकथाम एवं नियंत्रण, ग्रीन बिल्डिंग्स, प्राकृतिक संसाधनों व जमीन के इस्तेमाल का टिकाऊ प्रबंधन और स्थलीय एवं जलीय जैव विविधता संरक्षण आदि शामिल है.

इन परियोजनाओं में अक्षय ऊर्जा, ऊर्जा सक्षम भवनों, सार्वजनिक परिवहन का विद्युतीकरण, जलवायु के अनुकूल बुनियादी ढांचे, ऑर्गेनिक फार्मिंग, भूमि और समुद्री जैव विविधता परियोजनाओं के लिए बाढ़ एवं जलवायु को लेकर अग्रिम चेतावनी व्यवस्था शामिल होगी.

मसौदे में कहा गया है, पात्र परियोजनाओं के बारे में मुख्य आर्थिक सलाहकार (Chief Economic Advisor) की अध्यक्षता में बनी ग्रीन फाइनैंस वर्किंग कमेटी (Green Finance Working Committee) करेगी.

GFWC में परियोजना को लागू करने में पर्यावरण मंत्रालय, नीति आयोग और वित्त मंत्रालय के बजट डिवीजन और इन्फ्रास्ट्रक्चर फाइनैंस सचिवालय के सदस्य शामिल होंगे. जीएफडब्ल्यूसी की बैठक साल में कम से कम दो बार होगी, जो परियोजनाओं का मूल्यांकन एवं उनका चयन करेगी. सॉवरेन ग्रीन बॉन्ड जारी करने पर महत्वपूर्ण निर्णयों को मान्य करने की भी जिम्मेदारी ग्रीन फाइनेंस वर्किंग कमेटी को ही दी गई है.

नॉर्वे की सिसरो को भारत के ग्रीन बॉन्ड ढांचे का मूल्यांकन करने के लिए चुना गया है. सिसरो ने गुड स्कोर (Good Score) के साथ भारत के ग्रीन बॉन्ड फ्रेमवर्क को ‘मीडियम ग्रीन’ (Medium Green) रेटिंग दी है. ‘मीडियम ग्रीन’ रेटिंग उन परियोजनाओं और समाधानों को दी जाती है जो छोटे समय में बड़े लक्ष्यों को पूरा करने की क्षमता रखते हों.

सॉवरेन ग्रीन बॉन्ड

सॉवरेन ग्रीन बॉन्ड केंद्र सरकार की ओर से भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा जारी की गई सरकारी प्रतिभूतियां हैं. निवेशकों को ग्रीन बॉन्ड में निवेश के लिए प्रोत्साहित करने के लिए सरकार इन बॉन्डस में निवेश पर टैक्स छूट का प्रावधान कर सकती है.

जैसे और नियमित बॉन्डों में होता है ऐसे ही इसका धन भी भारत की संचित निधि (Consolidated Fund of India) में जाएगा, उसके बाद उसे पात्र हरित परियोजनाओं के लिए दिया जाएगा. रिपोर्ट में कहा गया है, ‘इस मकसद से धन मुहैया कराने के लिए आवंटन और लेखांकन पारदर्शी और अलग बनाए गए खाते से होगा, जिसका संचालन वित्त मंत्रालय करेगा.

ग्रीन बॉन्ड की घोषणा वर्ष 2070 तक भारत की शुद्ध-शून्य कार्बन उत्सर्जन प्राप्त करने की की प्रतिबद्धता के अनुसार है.

क्या है भारत की स्थिति

गहराते जलवायु संकट से निपटने के लिए वैश्विक पूंजी जुटाने के क्षेत्र में कार्यरत एक अंतर्राष्ट्रीय संगठन ‘क्लाइमेट बॉण्ड्स इनिशिएटिव’ के अनुसार, भारतीय संस्थानों ने 18 बिलियन डॉलर (लगभग 1.44 लाख करोड़) से अधिक के ग्रीन बॉन्ड जारी किये हैं.

ग्रीन बॉन्ड के लिए क्या है सॉवरेन गारंटी का अर्थ?

सॉवरेन ग्रीन बॉन्डस को जारी करना केंद्र सरकार के ग्लोबल वार्मिंग से निपटने के लिए किए जा रहे सबसे बड़े प्रयासों के रुप मे देखा जा रहा है. सॉवरेन गारंटी ग्रीन बॉन्डस में घरेलू बाजार के साथ-साथ संस्थागत निवेशकों को भी निवेश के लिए बढ़ावा देगी. सीधे शब्दों में समझे तो सॉवरेन गारंटी का अर्थ ये होता है कि किसी भी द्वारा खरीदे गए इन बॉन्डस पर सरकार द्वारा एक निश्चित ब्याज दिया जाता है, साथ ही समय से पैसा भी चुकाया जाता है.

क्या है वैश्विक स्थिति?

पर्यावरण, सामाजिक और शासन (Environmental, Social and Governance- ESG) फंड यानी ईएसजी फंड जो लगभग 3 ट्रिलियन डॉलर (240 लाख करोड़) का है, जिसमें यूरोप की लगभग आधी हिस्सेदारी है. एक अनुमान है कि वर्ष 2025 तक प्रबंधन के तहत कुल वैश्विक परिसंपत्ति का लगभग एक-तिहाई भाग ESG परिसंपत्ति का होगा.

लंदन स्थित ‘क्लाइमेट बॉण्ड्स इनिशिएटिव’ के अनुसार, वर्ष 2020 के अंत तक 24 देशों ने कुल मिलाकर 111 बिलियन डॉलर के संप्रभु ग्रीन, सोशल और सस्टेनेबिलिटी बॉन्ड जारी किये थे.

विश्व ऊर्जा आउटलुक रिपोर्ट 2021 का अनुमान है कि उभरती / विकासशील अर्थव्यवस्थाओं (Emerging and Developing countries) में नेट जीरो तक पहुंचने के लिये अतिरिक्त 4 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर का 70 फीसदी खर्च करने की आवश्यकता है, सॉवरेन बॉन्ड जारी करने से इतनी बड़ी मात्रा में पूंजी की जो जरूरत है उसके प्रवाह को शुरू करने में मदद मिल सकती है.

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