संत कन्हैया प्रभुनंद गिरि को अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद ने पहले दलित महामंडलेश्वर की उपाधि दी है। कन्हैया प्रभु ने कुंभ के पहले दिन शाही स्नान के दौरान संगम में डुबकी लगाई। बता दें कि कन्हैया प्रभुनंद को पिछले साल परंपरा के अनुसार जूना अखाड़े में शामिल किया गया।
उन्होंने कहा, ‘मैं चाहता हूं कि मेरे समुदाय के वे सभी सदस्य जिन्होंने असमानता के चलते इस्लाम, ईसाई और बौद्ध धर्म अपना लिया था, वे वापस सनातन धर्म से जुड़ जाएं। मैं उन्हें दिखाना चाहता हूं कि कैसे जूना अखाड़े ने मुझे खुद में शामिल कर लिया है।’ कन्हैया प्रभुनंद ने कहा कि उन्होंने अपने पूरे जीवन में जो जातिगत अपमान और शोषण का सामना किया है वह उनके लिए एक गोली के दर्द से भी कहीं अधिक है।
उन्होंने कहा कि मैं एक धार्मिक नेता हूं और इस जातिगत मानसिकता के खिलाफ लड़ता रहूंगा।’ उन्होंने बताया कि दसवीं के बाद वह संस्कृत पढ़ना चाहते हैं लेकिन अनुसूचित जाति से होने की वजह से उन्हें इजाजत नहीं मिली।
उन्होंने कहा, ‘नेताओं और मीडिया को दलित शब्द का इस्तेमाल नहीं करना चाहिए। हमें संविधान द्वारा दिए गए नाम एससी, एसटी या ओबीसी बुलाना चाहिए। हम एकलव्य और कर्ण हैं, अशोक और चंद्रगुप्त मौर्य हैं। हमने खुद को साबित किया है लेकिन फिर भी बहिष्कृत माने जाते हैं। मैं इस मानसिकता को बदलना चाहता हूं।’