केंद्र और झारखंड सरकार भले ही सूबे में शिक्षा व्यवस्था को बेहतर करने के लाख दावे करें लेकिन जमीनी हकीकत इन सभी दावों की पोल खोलती नजर आ रही है। केंद्र की मोदी सरकार गांव-गांव तक शिक्षा पहुंचाने की बात करती है। मगर ये सारे दावे खोखले साबित हो रहे हैं। बात करें झारखंड के लातेहार के सुदूर हेरहंज प्रखंड के नक्सल प्रभावित गांव सेरेंदाग का उत्क्रमित मिडिल स्कूल की तो इसकी तस्वीर सरकार का वादों से एक दम उलट है। स्कूल के तीन कमरों में पहली कक्षा से लेकर आठवीं तक की पढ़ाई होती है। पहले इस स्कूल में 6 कमरे हुआ करते थे। लेकिन तीन कमरों को माओवादियों ने स्कूल में पुलिस कैंप होने का आरोप लगा कर साल 2015 में विस्फोट कर उड़ा दिया था।
वहीं बात करें बच्चों को शिक्षा देने वाले शिक्षकों की तो स्कूल में पहली क्लास से 8वीं तक के बच्चों को पढ़ाने के लिए सिर्फ दो शिक्षक हैं। जिसमें से एक प्रिंसिपल हैं जो मीटिंग में व्यस्त रहते हैं और स्कूल में पढ़ाने का सारा जिम्मा महज एक संविदा शिक्षक के कंधो पर है। स्कूल में पढ़ाई की ऐसी व्यवस्था को लेकर परिजन परेशान हैं। उन्हें अपने बच्चों के भविष्य की चिंता सता रही है। परिजनों ने सरकार के बेहतर शिक्षा व्यवस्थाओं के दावों को नकारा है।
झारखंड सरकार लगातार माओवादियों पर नकेल कसने और शिक्षा व्यवस्था को बेहतर बनाने के दावे करती है। लेकिन इसकी जमीनी हकीकत कुछ और है। प्रशासन की अनदेखी की वजह से सेरेंदाग के बच्चों का भविष्य अंधकार में धकेला जा रहा है।