निशिकांत दुबे विवाद के बीच उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने दोहराया – ‘संसद सर्वोच्च, उससे ऊपर कोई नहीं’

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निशिकांत दुबे विवाद के बीच उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने दोहराया
निशिकांत दुबे विवाद के बीच उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने दोहराया

भारत के उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने एक बार फिर न्यायपालिका की सीमाओं को लेकर विचार रखते हुए कहा कि संविधान के ढांचे के भीतर संसद ही सर्वोच्च संस्था है। दिल्ली यूनिवर्सिटी में आयोजित एक कार्यक्रम में बोलते हुए उन्होंने कहा कि संविधान का स्वरूप और दिशा तय करने का अधिकार सिर्फ और सिर्फ चुने हुए जनप्रतिनिधियों के पास है।

संविधान की व्याख्या पर सुप्रीम कोर्ट को घेरा

धनखड़ ने अपने संबोधन में सुप्रीम कोर्ट के दो ऐतिहासिक फैसलों का हवाला देते हुए कहा कि पहले अदालत ने संविधान की प्रस्तावना को उसका हिस्सा नहीं माना था (गोलकनाथ मामले में), और बाद में इसे संविधान का अंग करार दिया (केशवानंद भारती केस)। उन्होंने इन फैसलों पर सवाल उठाते हुए कहा कि इस तरह के विरोधाभास संविधान की मूल भावना को उलझाते हैं।

लोकतंत्र में संवाद जरूरी, चुप्पी खतरनाक: उपराष्ट्रपति

उपराष्ट्रपति ने लोकतंत्र में खुली बातचीत और सक्रिय भागीदारी की आवश्यकता को रेखांकित किया। उन्होंने कहा, “अगर विचारशील लोग मौन रहेंगे, तो लोकतंत्र कमजोर हो जाएगा।” उन्होंने यह भी कहा कि सभी संवैधानिक पदाधिकारियों को संविधान की मर्यादा में रहकर ही बयान देने चाहिए। साथ ही उन्होंने देश में शांति और अनुशासन बनाए रखने की आवश्यकता पर ज़ोर देते हुए कहा कि अगर हालात बिगड़ते हैं, तो कड़े कदम उठाने से भी पीछे नहीं हटना चाहिए।

धनखड़ पहले भी रख चुके हैं ऐसा दृष्टिकोण

यह पहली बार नहीं है जब उपराष्ट्रपति ने संसद की सर्वोच्चता को लेकर इस तरह की बात कही है। पूर्व में भी उन्होंने कहा था कि लोकतंत्र में सांसद सबसे ऊपर होते हैं और संविधान की दिशा तय करने में उनका ही अंतिम अधिकार है। उनके इन बयानों पर विरोध भी हुआ है। वरिष्ठ वकील और राज्यसभा सांसद कपिल सिब्बल ने उनकी टिप्पणी को न्यायपालिका के सम्मान को ठेस पहुंचाने वाला बताया था। उन्होंने कहा था कि ऐसा बयान न्यायपालिका की स्वतंत्रता को कमजोर करता है, जो लोकतंत्र के लिए चिंताजनक है।