धर्मनिरपेक्षता और समाजवाद पर फिर छिड़ी बहस, उपराष्ट्रपति ने बताया ‘संविधान से खिलवाड़’

0
7
धर्मनिरपेक्षता और समाजवाद पर फिर छिड़ी बहस
धर्मनिरपेक्षता और समाजवाद पर फिर छिड़ी बहस

संविधान की प्रस्तावना से जुड़े आरएसएस महासचिव दत्तात्रेय होसबोले के हालिया बयान के बाद अब उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने भी इस मुद्दे पर अपनी मुखर राय रखी है। शनिवार, 28 जून 2025 को उपराष्ट्रपति निवास में आयोजित एक कार्यक्रम में उन्होंने संविधान, आपातकाल और प्रस्तावना से जुड़े विषयों पर विस्तार से बात की। यह कार्यक्रम आपातकाल के 50 वर्ष पूरे होने के अवसर पर आयोजित किया गया था।

उपराष्ट्रपति ने स्पष्ट रूप से कहा कि 1976 में आपातकाल के दौरान संविधान की प्रस्तावना में जो ‘समाजवादी’ और ‘धर्मनिरपेक्ष’ जैसे शब्द जोड़े गए थे, उन्होंने भारत की मूल आत्मा के साथ अन्याय किया। उन्होंने इन शब्दों को “नासूर” की संज्ञा दी और कहा कि उस समय देश में आपातकाल लागू था, और ऐसे समय में संविधान जैसे पवित्र दस्तावेज़ में बदलाव करना लोकतांत्रिक मर्यादाओं का उल्लंघन था।

धनखड़ ने कहा, “प्रस्तावना किसी भी संविधान की आत्मा होती है। उस आत्मा को जबरन बदला गया। यह कोई साधारण त्रुटि नहीं थी, बल्कि गंभीर नैतिक चूक थी। जिस चीज को अडिग और अटल रहना चाहिए था, उसे परिस्थितियों के अधीन बदल दिया गया, और वह भी तब, जब लोकतंत्र खतरे में था।”

डॉ. भीमराव अंबेडकर का उल्लेख करते हुए उपराष्ट्रपति ने कहा कि बाबा साहब भारतीय संविधान की प्रेरणा हैं। उन्होंने यह भी जोड़ा कि ‘समाजवादी’ और ‘धर्मनिरपेक्ष’ जैसे शब्द बाद में संविधान का हिस्सा बने, लेकिन जिस प्रक्रिया से उन्हें जोड़ा गया, उस पर हमेशा सवाल उठते रहेंगे।

धनखड़ ने युवाओं से अपील की कि वे संविधान की मूल भावना को समझें और उसका आदर करें। उन्होंने कहा कि आपातकाल भारतीय लोकतंत्र के इतिहास का सबसे काला दौर था, जिससे आज की पीढ़ी को सीख लेनी चाहिए।

इस बयान के साथ ही उपराष्ट्रपति ने न केवल प्रस्तावना में बदलाव की प्रक्रिया पर सवाल उठाए, बल्कि यह भी स्पष्ट कर दिया कि संविधान में किसी भी प्रकार का हस्तक्षेप सोच-समझकर और लोकतांत्रिक प्रक्रिया के तहत होना चाहिए — न कि सत्ता के दबाव में।