सीतापुर के  जिला अस्पताल पर जिम्मेदारी है सीतापुर जिले के करीब 45 लाख की आबादी के स्वास्थ्य की देखभाल की। सरकार की माने तो सीतापुर जिला अस्पताल में इलाज के लिए कई सुविधाओं का विस्तार किया गया है। सरकार के दावों में कितना दम है। क्या वाकई सीतापुर में मरीजों को मुफ्त और मुनासिब इलाज मिल रहा है, ये जानने के लिए एपीएन की टीम जिला अस्पताल पहुंची।

अस्पताल के अंदर दाखिल होने पर हमारी नजर कंप्यूटरीकृत पंजीयन केन्द्र पर पड़ी। यहां कंप्यूटर के जरिए इलाज के लिए पर्ची बनाया जाता है। ओपीडी में जब हम पहुंचे तो यहां मरीजों की भीड़ लगी हुई थी। लोग इलाज के लिए अपनी बारी का इंतजार कर रहे थे। डॉक्टर भी अपने चैंबर में मरीजों का इलाज कर रहे थे। सीतापुर जिला अस्पताल प्रशासन का दावा है कि यहां सभी तरह की इलाज और जांच सुविधाएं मौजूद है। अस्पताल में एक्स-रे और अल्ट्रासाउंड की व्यवस्था तो पहले से ही थी लेकिन अब यहां सी टी स्कैन की सुविधा भी शुरू हो गई है, जो कि पूरी तरह से मुफ्त है । इसके अलावा यहां मुफ्त दवा भी लोगों को दी जाती है तो क्या जिला अस्पताल में लोगों को सभी स्वास्थ्य सुविधाओं का लाभ मिल रहा है ये जानने के लिए हम पेइंग वार्ड में पहुंचे और यहां का जायजा लिया।

अस्पताल में स्वास्थ्य सुविधाओं पर लोगों की मिश्रित प्रतिक्रिया देखने के बाद हम महिला वार्ड पहुंचे। यहां की व्यवस्था देख कर हमें हैरानी हुई। लोगों ने बताया कि कहने को तो यहां मुफ्त डिलिवरी की सुविधा दी जाती है लेकिन यहां डिलिवरी रूम में मौजूद नर्स लोगों से रिश्वत की मांग करती है। हर डिलिवरी के एवज में महिलाओं से पैसे वसूले जाते हैं।

जिला अस्पताल के डिलीवरी रूम में अधोषित तौर पर हर काम के रेट तय है। डिलिवरी करने से लेकर नवजात के नाल काटने तक हर काम के लिए अलग-अलग दर से रुपए लिए जाते है।

दरअसल जिला अस्पताल में बस कहने को गरीबों का मुफ्त इलाज किया जाता है लेकिन हर कदम पर किसी ना किसी बहाने उनसे पैसे वसूले जाते हैं। कभी अस्पताल में दवा उपलब्ध नहीं रहने की बात कह कर मरीजों को बाहर से दवा खरीदने को मजबूर किया जाता है। गरीब मरीज ‘मरता क्या नहीं करता’ वाली स्थिति में रहता  है। जान बचाने के लिए वो बाहर के निजी मेडिकल स्टोर से दवा खरीदता है और फिर उसके एवज में डॉक्टर और दूसरे कर्मचारियों तक कमीशन पहुंच जाता है।

यही हाल जांच का भी है। अस्पताल कर्मचारियों की ज्यादातर कोशिश होती है कि मरीज अपनी जांच उनके बताएं निजी डायग्नोसिस सेंटर से करा ले ताकि उन्हें कमीशन मिल सके। पूरे जिला अस्पताल परिसर में हर वक्त दलाल घूमते रहते है जो परेशान मरीजों को बरगला कर निजी अस्पताल में भर्ती करा देते है। जिला अस्पताल की व्यवस्थाओं से परेशान मरीज भी जान बचाने के लिए प्राइवेट अस्पताल में ही इलाज कराने में भलाई समझता है।

इलाज के अलावा जिला अस्पताल में दूसरी सुविधाओं की बात करे तो यहां हमेशा पानी की किल्लत बनी रहती है, जो कि गर्मी के मौसम में और भी बढ़ जाती है। मरीज और उनके परिजन पानी के लिए इधर-उधर भटकते रहते है। अस्पताल में लगे ज्यादातर नल सूखे पड़े है ऐसे में लाचार मरीज बाहर से बोलतबंद पानी खरीद कर पी रहे है।

सीतापुर जिला अस्पताल के जिम्मे यहां की बड़ी आबादी के स्वास्थ्य की देखभाल की जिम्मेदारी है। सीतापुर शहर ही नहीं दूर ग्रामीण इलाकों से भी यहां मरीज आते है। ग्रामीण इलाकों के स्वास्थ्य केन्द्रों से भी यहां मरीजों को रेफर किया जाता है।ऐसे में यहां हर वक्त मरीजों की भीड़ लगी रहती है लेकिन सभी स्वास्थ्य सुविधाएं नहीं मिलने से मरीज परेशान रहते है। सरकारें भले ही स्वस्थ भारत और स्वस्थ यूपी का नारा बुलंद करती हो। इसक लिए नई-नई योजनाओं का एलान करती हो लेकिन जमीनी सच्चाई तो यहीं है कि अस्पतालों में ये सुविधाएं बेहद कम ही मिल पाती है।यहीं वजह है कि इलाज का दावा करने वाला सीतापुर जिला अस्पताल खुद ही बीमार नजर आता है। अब जरूरत है कि सरकार जल्द से जल्द इसका इलाज कराए

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