बिहार के सिवान में आज भी जब कोई तेजाब हत्याकांड को याद करता है तो उनके मुख से शब्दों से ज्यादा आंखों से आंसू निकलते हैं। बिहार के इस चर्चित हत्याकांड ने पूरे बिहार को हिला दिया था। आज इसी हत्याकांड की भयानकता ही है कि पटना हाईकोर्ट ने शहाबुद्दीन की याचिका को खारिज करते हुए सीवान की अदालत के उस फैसले को बरकरार रखा है जिसमें शहाबुद्दीन को उम्रकैद की सजा सुनाई गई है। इस मामले में बाहुबली और राजद के पूर्व सांसद शहाबुद्दीन फिलहाल दिल्ली की तिहाड़ जेल में बंद हैं और अब उनकी उम्रकैद की सजा बरकरार रहेगी।
इससे पहले सीवान की अदालत के दिए गए फैसले के विरोध में शहाबुद्दीन के वकील ने एक याचिका पटना हाईकोर्ट में दाखिल की थी। हाईकोर्ट ने फैसले को सुरक्षित रखते हुए 30 जून 2017 को ही फैसला सुरक्षित रख लिया था। अब बुधवार को पटना हाईकोर्ट ने शहाबुद्दीन की सजा को बरकरार रखते हुए फैसले को उचित ठहराया। सीवान कोर्ट ने इस बर्बरता वाले हत्याकांड में शहाबुद्दीन समेत मुन्ना मियां, राजकुमार साह और शेख असलम को भी उम्रकैद की सजा सुनाई थी।
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बता दें कि यह घटना एक ऐसे व्यापारी की कहानी है जिसको भगवान ने सब कुछ दिया लेकिन भगवान के बनाए इंसानी राक्षसों ने उससे सब कुछ छीन लिया। ये घटना 2004 की है, जब व्यापारी चंदा बाबू अपने व्यापार का विस्तार करना चाहते थे। इन दिनों वो अपनी पत्नी,चार बेटों और बेटी के साथ रहा करते थे। विस्तार के दौरान एक बगल में पड़ने वाली दुकान पर विवाद हो गया।
इस दुकान को लेकर विवाद इतना बढ़ा कि बात सिवान के बाहुबली शहाबुद्दीन तक जा पहुंची। शहाबुद्दीन और उनके गुंडों ने चंदा बाबू से कहा कि अगर दुकान लेनी है तो 2 लाख की रंगदारी देनी होगी। चंदा बाबू और उनका परिवार ने आपसी विचार विमर्श से फैसला किया कि वो शहाबुद्दीन और उसके गुंडों से नहीं डरेंगे। उन्होंने फैसला किया कि न ही दुकान देंगे और न ही दो लाख की रंगदारी। ऐसे में शहाबुद्दीन जैसे बाहुबली की मान-मर्यादा पर बन आई क्योंकि एक आम परिवार, जो मेहनत से कमाता खाता था, उसके वर्षो के बनाए गए साम्राज्य को चुनौती दे रहा था।
शहाबुद्दीन यह बर्दाश्त नहीं कर पाया। आखिरकार रंगदारी के लिए 16 अगस्त 2004 को उसके गुंडे चंदा बाबू के दुकान पहुंचे। उस दौरान बड़ा बेटा राजीव दुकान पर बैठा था। गुंडे आए और 2 लाख की डिमांड करने लगे। राजीव ने इसपर विरोध जताया तो गुंडे उसे बुरी तरह मारने पीटने लगे।
छोटा भाई सतीश वहां मौजूद था। भाई को मार खाता देख वो अपने होश खो बैठा और बेबसी की हालत में उसे कुछ नहीं सूझा। उसने आवेश में आकर दुकान में पड़ा टॉयलेट धोने वाला तेजाब गुंडो पर उड़ेल दिया। तेजाब के कुछ छीटें गुंडो पर पड़े और कुछ छींटे राजीव पर पड़े। यह देख गुंडे आग बबूला हो गए। उन्होंने राजीव को छोड़ सतीश को पकड़ा और गाड़ी में बैठा लिया। राजीव मौका पाकर फरार हो गया। लेकिन उन लोगों ने एक अन्य भाई गिरीश को भी उठा लिया जिसको इस कांड के बारे में कुछ भी पता नहीं था। बाद में राजीव भी मिल गया।
उसके बाद जो हुआ वो बहुत दर्दनाक था। दोनों भाई सतीश और गिरीश को राजीव के सामने तेजाब से नहला दिया गया। दोनों तड़पते रहे और राजीव बस देखता रह गया। बेबसी की य़े हालत शायद राजीव ने अपने जीवन में कभी महसूस नहीं की होगी। दोनों भाईयों के तड़प-तड़प कर मरने के बाद गुंडो ने उनको कांट कर फेंक दिया और राजीव को बंदी बना लिया गया। लेकिन राजीव अगली रात मौका देख कर गुंडो के चंगुल से फरार हो गया।
उधर इन सब से अंजान पिता चंदा बाबू को जब पता चला तो वो छिप-छिप कर रहने लगे। कई बार उनको भी डराया धमकाया गया। शायद गुंडे उनको भी पाते तो उनको भी मार डालते। पूरा परिवार सिवान छोड़ चुका था। पत्नी और बेटियां अपने पुराने घर चली गई थी और चंदा बाबू और राजीव इधर –उधर भटक रहे थे।
चंदा बाबू इस दौरान कई नेताओं और अधिकारियों से भी मिले लेकिन कोई मदद के लिए आगे नहीं आया। उधर पत्नी कलावती देवी ने अज्ञात लोगों के खिलाफ एफआईआर दर्ज करवाई। राजीव और पिता चंदा बाबू भी न्याय की गुहार लगा रहे थे। समय बीता और कोर्ट में मुकदमा चलने लगा। 2011 में राजीव ने कोर्ट में गवाही दी। लेकिन प्रारंभिक कोर्ट से न्याय नहीं मिल सका। मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा, फिर तारीख पर ताऱीख पड़ने लगी। उधर परिवार में सबकुछ ठीक होने लगा था। लेकिन शहाबुद्दीन चुप नहीं बैठा था। राजीव जो एक चश्मदीद गवाह था उस पर उसके लोगों की नजर थी। आखिरकार 2014 में राजीव की भी गोलीमार कर हत्या कर दी गई।
चंदा बाबू और उनकी पत्नी पूरी तरह से टूट चुके थे। तीन बेटों की मौत हो चुकी थी। अब वो सिर्फ इंसाफ के लिए जी रहे थे।
वक्त बीता और सीवान की विशेष अदालत ने चंदा बाबू को इंसाफ की राह दिखाई। अदालत ने शहाबुद्दीन को उम्रकैद की सजा सुनाई। आखिरकार बेटों के बाद कानून उस बूढ़े मां-बाप का सहारा बना और आज शहाबुद्दीन जैसा बाहुबली सलाखों के पीछे है।