दिल्ली के गाजीपुर लैंडफिल साइट की ऊंचाई कुछ दिनों में कुतुबमीनार की ऊंचाई तक पहुंच सकती है। गाजीपुर लैंडफिल साइट की ऊंचाई 65 मीटर पहुंच चुकी है। कुतुबमीनार की ऊंचाई 73 मीटर है। यानी गाजीपुर लैंडफिल साइट कुतुबमीनार की बराबरी करने से अब बस 8 मीटर दूर है। इन सबके बावजूद यहां कूड़ा फेंकने का सिलसिला जारी है। करीब 70 एकड़ में फैले गाजीपुर लैंडफिल साइट पर कूड़ा जमा होने का सिलसिला 1984 में शुरू हुआ था। जो अब तक जारी है। इसकी ऊंचाई 65 मीटर पहुंच चुकी है। चारों तरफ की जगह सीमित हो चुकी है। बावजूद इसके लगभग 2800 मीट्रिक टन कूड़ा रोजाना यहां लाया जाता है। जिससे इसकी ऊंचाई लगातार बढ़ती जा रही है।
साल भर पहले ही कूड़े के पहाड़ का एक बड़ा टुकड़ा टूट कर सड़क पर जा गिरा था, जिसमें दो लोगों की जान चली गई थी। अब उस सड़क पर यातायात रोक दिया गया है लेकिन यहां कूड़े की ऊंचाई रोज थोड़ी-थोड़ी बढ़ रही है। दिल्ली में कूड़े के ऐसे स्मारक गाजीपुर के अलावा ओखला और भलस्वा में भी हैं। लेकिन अपनी ऊंचाई के कारण गाजीपुर सबसे ऊपर है। पिछले साल के हादसे के बाद कुछ दिन गाजीपुर में कूड़ा डालना रोका गया लेकिन कोई और विकल्प ना मिलने की वजह से रोक हटा दी गई। कूड़े का ढेर हवा और पानी यानी पूरे वातावरण में जहर घोल रहे है। जब ये लैंडफिल साइट बनाए गए थे तब ये आबादी से दूर थे लेकिन अब इसके मुहाने तक लोगों के घर बन गए हैं। स्थानीय निवासियों की मुश्किलों की कल्पना भी नहीं की जा सकती।
पूर्वी दिल्ली नगर निगम में नेता विपक्ष कुलदीप कुमार ने बताया है कि गाजीपुर लैंडफिल साइट से आसपास के लोगों को कैंसर तक कि समस्या हो रही है लेकिन कोई हल नहीं ढूंढा जा रहा। इस मुद्दे पर पूर्वी दिल्ली नगर निगम के मेयर बिपिन बिहारी का कहना है कि रोजाना आने वाले कूड़े के आधे हिस्से से तो बिजली ही बना ली जाती है। सब ठीक रहा तो 6 महीने में यहां कूड़ा फेंका जाना बंद हो जाएगा। दिल्ली कांग्रेस के अध्यक्ष अजय माकन का कहना है कि गाजीपुर तो एक प्रतीक है। इसकी वजह ये है कि दिल्ली में सॉलिड वेस्ट मैनेजमेंट पूरी तरह ठप है। कूड़ा जहां से उठता है वहीं से छंटनी जरूरी है। लेकिन दोनों सरकार झगड़ा करने के अलावा कुछ नहीं करती।