अनिल दवे के निधन की खबर ज्यों ही किसी भाजपा नेता ने मुझे फोन पर दी, मैं सन्न रह गया। इधर अनिल जी का स्वास्थ्य ढीला ही रहता था लेकिन वे इतनी जल्दी हम लोगों के बीच से चले जाएंगे, इसकी कभी कल्पना भी नहीं थी। अनिल से मेरा परिचय उस समय का है, जब वे इंदौर में पढ़ते थे। जब भी मैं गर्मियों की छुट्टियों में इंदौर जाता था, अनिल दवे और उनके कई साथी अक्सर घर पर मिलने आ जाया करते थे। मुझे अनिल बहुत अच्छे लगते थे, क्योंकि पढ़ने-लिखने में उनकी गहरी रुचि थी। सुंदर तो वे थे ही। उनमें संघ के स्वयंसेवकों की सादगी और विनम्रता भी भरपूर थी। वे बड़नगर के थे।
हम इंदौर के बड़नगर में ‘नगर’ शब्द जुड़ा हुआ है लेकिन अब से 50-60 साल पहले हम इंदौरी लोग उसे गांव ही कहते थे। बड़नगर था तो छोटा शहर लेकिन लोग वहां के बहुत जागरुक थे। 1960 के आस-पास की बात है। कुछ समाजवादियों ने बड़नगर में हिंदी आंदोलन के विषय में मेरा भाषण रखा। मुझे अभी भी याद है कि वह भाषण अनिलजी के पैतृक घर के पास ही हुआ था। भाषण के बाद कुछ स्वयंसेवक मुझे भोजन के लिए अति सम्मानित दवे परिवार में ही ले गए थे।
अनिल दवे जब बड़े हुए तो उन्होंने कई पुस्तकें लिखीं। शिवाजी पर लिखी अपनी पुस्तक का विमोचन वे मुझसे करवाना चाहते थे लेकिन मैं विदेश में था। एक बार सोलह संस्कारों पर लिखी अपनी पुस्तक भी भेंट करने आए थे। पुस्तक काफी अच्छी थी। मैंने कुछ संशोधन सुझाए तो उन्होंने कहा अगले संस्करण में करवा दूंगा। अनिल जी ने विवाह नहीं किया लेकिन स्वभाव से वे बहुत प्रेमी थे।
एक बार भोपाल में मेरा भाषण हुआ तो मैंने देखा कि श्रोताओं की सबसे अगली पंक्ति में पूर्व सरसंघचालक सुदर्शनजी और उनके साथ अनिल जी बैठे हुए हैं। मंत्री बनने पर मैंने अनिल जी से झारखंड के एक जैन मंदिर को ढहाने से बचाने के लिए कहा। उन्होंने मुझे तीन बार फोन करके सारी कार्रवाई से अवगत करवाया। पर्यावरण मंत्री के तौर पर वे जबरदस्त काम कर रहे थे, क्योंकि उनके लिए वह पद नहीं, मिशन था।
उन्होंने अपनी वसीयत में पेड़ लगाने की बात कहकर यह सिद्ध कर दिया है कि वे कितने अनासक्त साधु पुरुष थे। कीचड़ में वे कमल थे। भाजपा के महामंत्री कैलाश विजयवर्गीय ने इंदौर में एक पितृ-पर्वत बनवाया है। वहां लोग अपने दिवंगतों की स्मृति में पेड़ लगवाते हैं। वहां मेरे अभिन्न मित्र स्व. रज्जू सांघी और जयंत महाजन (सुमित्राजी के पति), दोनों की स्मृति में पेड़ लगे हैं। मैंने अपना पेड़ उन दोनों मित्रों के बीच अभी से लगा दिया है। अब एक पेड़ अनिल भाई की स्मृति में भी लगाना है। यही उनको हार्दिक श्रद्धांजलि होगी।
डा. वेद प्रताप वैदिक
Courtesy: http://www.enctimes.com