साधु संतों के भेष में मंत्र का जाप कर रहे ये लोग कोई संस्कृत के प्रख्यात विद्वान नहीं हैं… ये कोई संस्कृत के ज्ञाता नहीं हैं… जो कुछ आप सुन रहे हैं … समझ रहे हैं ये सब सिर्फ कुछ दिनों की मेहनत से मुमकिन हुआ है.. ये एक पहल का नतीजा है जो भटके हुए लोगों को इंसान बना दिया… ये वो लोग हैं जो अपने गुनाहों की सजा जेल में काट रहे हैं.. आपको ये सुनकर आश्चर्य जरुर होगा लेकिन आप चौकिए नहीं…आदमी जब बदलना चाहे तो वो कभी भी बदल सकता है…
ये नजारा है जबलपुर के नेताजी सुभाष चंद्र बोस सेंट्रल जेल का.. जहां बंदियों को शास्त्र की शिक्षा दी जा रही है… सजा खत्म होने से पहले इन्हें पुरोहित की शिक्षा दी जा रही है ताकि जेल से छूटने के बाद ये लोग अपना रोजी रोटी कमा सके…अपना गुजारा कर सके… मेहनत की दो रोटी खा सके…इसलिए इन लोगों को शास्त्रों का ज्ञान दिया जा रहा है…
जेल में बंद इन कैदियों को शास्त्रों और पूजन विधि का ज्ञान दिया जा रहा है। 6 महीने की ट्रेनिंग के कार्यक्रम के दौरान बंदियों को जेल में ही शास्त्रों, गणेश पूजन, आरती, विवाह कराने, सत्यनारायण कथा सुनाने और भागवत का पाठ करने जैसी शिक्षाएं दी जा रही हैं.. खास बात ये है कि बंदियों को शास्त्रों का ज्ञान देने वाले लोग भी बंदी ही हैं लेकिन यह पंडित जेल आने से पहले पुरोहित का काम ही किया करते थे लिहाजा अब ये अपने ज्ञान को बंदियों में भी बांट रहे हैं…
जेल प्रशासन की इस योजना के तहत पहले 30-30 बंदियों को शास्त्रों की शिक्षा के लिए चुना गया है…पास होने वाले बंदी पुरोहित बन सकेंगे…इस योजना में इस बात का भी ध्यान रखा गया है कि प्रशिक्षण देने के लिए केवल हत्या मामले में आजीवन कैद की सजा काट रहे बंदियों को ही चुना गया है…अधिकारियों का कहना है इस योजना का मकसद केवल बंदियों को शास्त्रों का ज्ञान देना ही नहीं है बल्कि इसके जरिए उनकी नकारात्मक ऊर्जा को खत्म करना है ताकि जब वो अपनी सजा पूरी कर जेल से बाहर निकले तो समाज में सम्मानजनक जीवन जी सके…
समाज से भटके हुए इन लोगों को राह पर लाने के लिए जेल प्रशासन की ये पहल वाकई सराहनीय है..हत्या के आरोप में सजा काट रहे इन कैदियों के मन से नकारात्क ऊर्जा को खत्म करने की कोशिश की जा रही है…ताकि इन कैदियों के मन में आस्था, धर्म, प्रेम और आध्यात्म का भाव भरा जा सके…
—ब्यूरो रिपोर्ट एपीएन