150 सालों से कर्नाटक और तमिलनाडु के बीच झगड़े की वजह रहा है कावेरी का पानी, यहां पढ़ें डिटेल में…

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cauvery water dispute
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कावेरी जल विवाद एक बार फिर से तूल पकड़ता नजर आ रहा है। तमिलनाडु में जहां किसान प्रदर्शन कर रहे हैं वहीं इस मुद्दे पर कर्नाटक में भी बंद का आह्वान किया जा रहा है। कावेरी जल विनियमन समिति (सीडब्ल्यूआरसी) की ओर से कर्नाटक को 25 सितंबर से 15 अक्तूबर तक 3000 हजार क्यूसेक पानी छोड़ने को कहा गया है। इस बीच सुप्रीम कोर्ट भी कह चुका है कि वह तय नहीं कर सकता कि किस राज्य को कितना पानी मिले। इससे पहले कावेरी जल प्रबंधन समिति ने इस महीने दिए अपने आदेश में कर्नाटक को अगले 15 दिन तक तमिलनाडु को हर दिन 5,000 क्यूसेक पानी देने का निर्देश दिया था।

तमिलनाडु की दलील है कि कावेरी जल विवाद ट्रिब्यूनल के फैसले को कर्नाटक को मानना चाहिए। वहीं कर्नाटक मांगी जा रही जल राशि छोड़ने से इंकार कर रहा है। कर्नाटक इसके पीछे मानसून की कमी बता रहा है। जो कि सच भी है। इस बीच तमिलनाडु के किसान इस इंतजार में हैं कि कर्नाटक पानी छोड़े क्योंकि उसके पास सिंचाई के लिए सीमित जल बचा है।

आपको बता दें कि दोनों राज्यों के बीच बनी सहमति के मुताबिक कर्नाटक हर साल 1,77,250 मिलियन क्यूबिक फीट पानी तमिलनाडु के लिए छोड़ेगा। जून से सितंबर ये राशि 123.14 टीएमसी (थाउजेंड मिलियन क्यूबिक फीट) होती है। हालांकि इस साल बारिश कम हुई जिस चलते विवाद गहरा गया।

वैसे तो ये विवाद 150 साल पुराना है लेकिन 1892 और 1924 में सहमति बनी थी। 1974 में फिर से मामला गहराया। 1990 में झगड़ा निपटाने को ट्रिब्यूनल बनाया गया और 2007 में फैसला हुआ।

जल को इस तरह बांटा गया-

तमिलनाडु – 404.25 TMC

कर्नाटक – 284.75 TMC

केरल – 30 TMC

पुदुचेरी – 7 TMC

मालूम हो कि इस साल अगस्त के आखिरी तक कर्नाटक में 21% प्रतिशत कम बारिश हुई। कावेरी क्षेत्र में तो 35% प्रतिशत कम हुई। मौसम विभाग का भी कहना है कि इस साल दक्षिण भारत में मानसून कमजोर रहा है। वहीं तमिलनाडु में भी कावेरी क्षेत्र को छोड़ बाकी जगह अच्छी बारिश हुई। सितंबर में भी जो बारिश हुई , वह भरपाई नहीं कर सकी है।