भले भारत और चीन के बीच डोकलाम विवाद सुलझ गया हो पर इस विवाद का असर इस बार के ब्रिक्स सम्मलेन में भी दिख सकता है। चीन की तरफ से संकेत है कि वह इस सम्मेलन में आतंकवाद पर गंभीर बहस होने की राह में रोड़े डालेगा। इसके पीछे उसकी मंशा यह है कि भारत कहीं उसके मित्र राष्ट्र पाकिस्तान की कलई न खोल दे।

गौरतलब है कि डोकलाम तनाव का ब्रिक्स में दिखने का दूसरा संकेत इस बात से मिलता है कि भारत और चीन के बीच शिखर वार्ता को लेकर अभी तक स्थिति स्पष्ट नहीं है वहीं इस मुद्दे पर भारतीय कूटनीतिक की तैयारी यह है कि पीएम नरेंद्र मोदी के भाषण में पाकिस्तान की भूमिका पर चोट करने में कोई कसर नहीं छोड़ी जाए। बता दें कि हाल ही में अमेरिका ने जिस तरह से अपनी अफगान नीति में पाकिस्तान पर नकेल कसना शुरु किया है उससे भारतीय कूटनीतिकारों का हौसला और बढ़ गया है।

हालांकि प्रधानमंत्री मोदी जियामेन में चीन के राष्ट्रपति के साथ द्विपक्षीय बैठक करेंगे या नहीं, इस सवाल पर विदेश मंत्रालय का कहना है कि बहुदेशीय सम्मेलनों के इतर द्विपक्षीय बैठकों की सामान्य परंपरा है। चीन द्वारा ब्रिक्स सम्मेलन में पाक आतंक के मुद्दे पर चर्चा करने का विरोध करने के विषय पर विदेश मंत्रालय ने कहा है कि यह पहले से पता करना संभव नहीं कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ब्रिक्स के सत्रों में क्या बोलेंगे।

वहीं चीनी विदेश मंत्रालय की प्रवक्ता हुआ चूनयिंग ने कहा कि उनके देश को चिंता है कि कहीं मोदी पिछले साल गोवा में आयोजित हुए ब्रिक्स समिट की तरह इस बार भी पाक आतंकियों का मुद्दा न उठा लें। चूनयिंग ने कहा कि पाकिस्तान के आतंकवाद रोधी कदमों को लेकर के भारत की कुछ चिंताएं हैं। लेकिन इनको ब्रिक्स समिट में उठाना कहीं से भी लाजमी नहीं है। चूनयिंग ने कहा कि अगर भारत पाकिस्तान को लेकर के कोई सवाल उठाता है, तो फिर इससे ब्रिक्स समिट की सफलता पर असर पड़ सकता है। ऐसा इसलिए क्योंकि चीन अपने खास सहयोगी पाकिस्तान के पक्ष में बोल सकता है।

बता दें कि फिलहाल पूरे विश्व की निगाहें इस बार के ब्रिक्स समिट पर लगी हुई है। यह समिट 3 सितंबर से चीन के शियामेन में होने वाला है। चीन को आशा है कि सभी देश समिट को सफल बनाने में अपना योगदान देंगे।

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