बिहार में चुपचाप NRC लागू ? मतदाता सूची संशोधन पर सियासी संग्राम, तेजस्वी-ओवैसी का चुनाव आयोग पर हमला

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Bihar Elections Voter List 2025: बिहार में आगामी विधानसभा चुनाव से पहले मतदाता सूची के पुनरीक्षण को लेकर सियासी पारा चढ़ चुका है। जहां भारतीय निर्वाचन आयोग (EC) ने दावा किया है कि मतदाता पात्रता की पुष्टि के लिए गहन पुनरीक्षण का कार्य सफलतापूर्वक शुरू हो गया है, वहीं विपक्षी दल इसे वोटर लिस्ट से छेड़छाड़ और एनआरसी (NRC) जैसे कदम के रूप में देख रहे हैं।

98 हजार बीएलओ तैनात, चुनाव आयोग का दावा

चुनाव आयोग के अनुसार, मतदाता सूची की शुद्धता सुनिश्चित करने के लिए 98,498 बीएलओ (बूथ लेवल ऑफिसर) तैनात किए गए हैं। साथ ही, सभी मान्यता प्राप्त राष्ट्रीय और क्षेत्रीय दलों ने अब तक 1,54,977 बूथ लेवल एजेंट्स (बीएलए) की नियुक्ति की है। आयोग ने स्पष्ट किया कि पार्टियां चाहें तो और बीएलए नियुक्त कर सकती हैं।

महागठबंधन का आरोप- वोटर लिस्ट से 8 करोड़ नाम हटाने की साजिश

आरजेडी नेता तेजस्वी यादव ने शुक्रवार को महागठबंधन की संयुक्त प्रेस कॉन्फ्रेंस में बड़ा आरोप लगाते हुए कहा कि बिहार में 8 करोड़ लोगों के नाम मतदाता सूची से हटाने की साजिश रची जा रही है। उन्होंने दावा किया कि महाराष्ट्र की तर्ज पर बिहार में भी फर्जी नाम जोड़ने और असली मतदाताओं को सूची से बाहर करने का “खेल” चल रहा है।

तेजस्वी ने कहा, “इस बार बिहार में पिछड़ों, दलितों और अल्पसंख्यकों के वोटर लिस्ट से नाम हटाने की प्रक्रिया चुपचाप शुरू कर दी गई है। INDIA गठबंधन इसका कड़ा विरोध करता है।” उन्होंने इसके लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को भी जिम्मेदार ठहराया।

ओवैसी का आरोप- बिहार में चुपचाप लागू हो रहा NRC

इस मुद्दे पर एआईएमआईएम प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी ने भी कड़ी प्रतिक्रिया दी। उन्होंने सोशल मीडिया पोस्ट के जरिए आरोप लगाया कि “चुनाव आयोग बिहार में गुप्त तरीके से एनआरसी (NRC) लागू कर रहा है।” ओवैसी ने इस कार्रवाई को संविधान और अल्पसंख्यकों के अधिकारों के खिलाफ बताया।

बिहार में मतदाता सूची के पुनरीक्षण को लेकर विपक्ष ने जिस तरह से चुनाव आयोग और केंद्र सरकार पर गंभीर आरोप लगाए हैं, उससे यह साफ है कि यह मसला चुनाव पूर्व बड़ा राजनीतिक मुद्दा बन सकता है। एक तरफ जहां आयोग इसे सामान्य प्रक्रिया और पारदर्शी प्रयास बता रहा है, वहीं विपक्ष इसे सामाजिक और राजनीतिक षड्यंत्र का हिस्सा मान रहा है। आगामी चुनावों में यह मुद्दा मतदाता ध्रुवीकरण और वोट बैंक राजनीति को गहराई से प्रभावित कर सकता है।