अमर शहीद Ashfaqulla Khan को देश याद कर रहा है। काकोरी कांड के अमर बलिदानी शहीद अशफाकुल्ला खां का आज जन्म दिन है। एक मुस्लिम होते हुए भी अशफाक क्रांतिकारी राम प्रसाद बिस्मिल (Ram Prasad Bismil) जैसे कट्टर आर्यसमाजी के पक्के दोस्त थे। बिस्मिल और अशफाक को काकोरी कांड में एक साथ फांसी दी गई थी।
अशफाकुल्ला खां ने जब काकोरी में अंग्रेजों का खजाना लूटा था तब उस समय उनकी उम्र महज 25 साल की थी। इतिहास में इस घटना को ‘काकोरी कांड’ से जाना जाता है। शहीद अशफाकुल्ला खां को कवि कुमार विश्वास ने याद करते हुए ट्वीट किया है।
कुमार विश्वास ने सोशल मीडिया पेज पर क्या लिखा
कुमार विश्वास ने अपने सोशल मीडिया पेज पर लिखा, ”एक मुकम्मल ईमान मुसलमान अमर शहीद अशफाकउल्लाह खान को जन्मदिन पर सलाम ! पंडित रामप्रसाद बिस्मिल के इस छोटे भाई जैसे जाबांज साथी को अपनी ज़िंदगी की आखरी रात तक बस इस बात का गिला रहा कि मादर ए वतन पर कुर्बान होने के लिए मैं एक ही बार पैदा हो सका ! अल्लाह से ज़न्नत के बदले हिन्द पर फ़िदा होने के लिए दूसरा जन्म मांगने की ख्वाहिश रखने वाले इस सितारे को सौ-सौ सलाम ! स्वर्गीय अग्निवेश शुक्ल की अप्रतिम कविता का एक अंश हिंदुस्तान के इस प्यारे बेटे को सादर समर्पित…”
“जाऊँगा खाली हाथ मगर ये दर्द साथ ही जायेगा,
जाने किस दिन हिन्दोस्तान आज़ाद वतन कहलायेगा?
बिस्मिल हिन्दू हैं कहते हैं “फिर आऊँगा,फिर आऊँगा,
फिर आकर के ऐ भारतमाँ तुझको आज़ाद कराऊँगा”.
जी करता है मैं भी कह दूँ पर मजहब से बंध जाता हूँ,
मैं मुसलमान हूँ पुनर्जन्म की बात नहीं कर पाता हूँ;
हाँ ख़ुदा अगर मिल गया कहीं अपनी झोली फैला दूँगा,
और जन्नत के बदले उससे एक पुनर्जन्म ही माँगूंगा…!”
अंग्रेजों ने अशफाकुल्ला खां को ‘काकोरी कांड’ का मुख्य अपराधी माना और 19 दिसंबर 1927 को फैजाबाद जेल में फांसी दे दी। काकोरी कांड में अशफाकुल्ला खां के साथ राम प्रसाद बिस्मिल, रोशन सिंह और राजेंद्र नाथ लाहिड़ी को भी फांसी हुई थी। वहीं सचिंद्रनाथ सान्याल और एक अन्य क्रांतिकारी को अंडमान की जेल में कालापानी की सजा सुनाई गई थी।
परिवार में कोई भी नहीं था क्रांतिकारी
उत्तर प्रदेश में शाहजहांपुर जिले में 22 अक्टूबर 1900 को एक पठान परिवार में पैदा हुए अशफाक के घर में सभी लोग सरकारी नौकरी में थे और क्रांति या आजादी की लड़ाई से इस परिवार का दूर-दूर तक कोई नाता नहीं था। लेकिन अशफाक के बगावती तेवर उन्हें बंगाल के क्रांतिकारियों के नजदीक ले गये।
अशफाकुल्ला खां के साथ रामप्रसाद बिस्मिल और चन्द्रशेखर आजाद ने 8 अगस्त, 1925 को एक अहम बैठक की। इस बैठक में 9 अगस्त, 1925 को सहारनपुर-लखनऊ पैसेंजर ट्रेन काकोरी स्टेशन पर आने वाली ट्रेन को लूटने की योजना बनाई गई। उस ट्रेन में अंग्रेजों का सरकारी खजाना जाया करता था।
9 अगस्त, 1925 को अशफाकुल्ला खां, रामप्रसाद बिस्मिल, चन्द्रशेखर आज़ाद, राजेन्द्रनाथ लाहिड़ी, ठाकुर रोशन सिंह, सचिन्द्र बख्शी, केशव चक्रवर्ती, बनवारी लाल, मुकुन्द लाल और मन्मथ नाथ गुप्त ने अपनी योजना को अंजाम देते हुए लखनऊ के नजदीक ‘काकोरी’ में ट्रेन से ले जाए जा रहे सरकारी खजाने को लूट लिया। जिसके बाद इस घटना को काकोरी कांड के नाम से जाना गया है।
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