बहन जी यानि मायावती की चिंता बीते शनिवार से कुछ ज्यादा ही बढ़ गई है। ऐसा होना स्वाभाविक भी है क्योंकि उत्तर प्रदेश की राजनीति में सबसे बड़ी पार्टियों में से एक बीएसपी को 2017 के विधानसभा चुनाव में मात्र 19 सीटें ही मिल पाई। इससे पहले भी 2014 के लोकसभा चुनाव में मोदी की आंधी के सामने मायावती की पार्टी एक भी सीट नहीं जीत पाई थी। 2012 में विधानसभा चुनाव में भी मायावती जनता के सामने अपनी कुछ खास छाप नहीं छोड़ पाई। एक के बाद एक लगातार हो रही हार से मायावती इस कदर बौखला गई कि चुनाव आयोग की निस्पक्षता पर सवाल ही उठा दिए और EVM में ही खराबी होने का आरोप लगा दिया। खैर, चुनाव आयोग ने इस आरोप को सिरे से खारिज कर दिया।
बहुजन हिताय, बहुजन सुखाय के नारे को लेकर लड़ने वाली बसपा सुप्रीमो मायावती का अब राज्य सभा सदस्य बनना तक मुश्किल लग रहा है। अब मायावती अपनी पार्टी की हार की समीक्षा करेंगी कि आखिर क्यों उनकी पार्टी को एक के बाद एक बड़ी हार का सामना करना पड़ रहा है? इस बार के चुनाव में मायावती ने अपने पुराने वोट बैंक यानि मुस्लिमों और दलितों को खुश करने के लिए लगभग 50 प्रतिशत सीटों पर टिकट मुस्लिम और दलित उम्मीदवार को ही दिया था। मायावती के इस जातिवाद फॉर्मूले का जनता पर बिल्कुल भी असर नहीं पड़ा। अब मायावती को सोचना होगा कि अब जनता विकास के मुद्दे पर वोट देती है ना कि जाति के मुद्दे पर। मायावती को यह भी सोचना होगा कि 2007 से 2012 में बहुमत वाली बसपा सरकार में उन्होंने जो किया उसका खामियाज़ा उन्हें अब तक भुगतना पड़ रहा है।
फिलहाल, मायावती के सामने दो बड़ी चुनौतियां हैं। पहला राज्य सभा का सदस्य बनना और दूसरा भाजपा का विजय रथ रोकना। हालांकि यूपी की दूसरी बड़ी पार्टी सपा का भी हाल कुछ ऐसा ही है। भाजपा को रोकने के लिए सपा ने कांग्रेस के साथ तो हाथ मिलाया पर उसका जनता पर कोई प्रभाव नहीं पड़ा।
जहां एक तरफ मायावती के राज्यसभा सदस्य बनने में काफी अड़चने आ रही हैं तो वहीं दूसरी तरफ अखिलेश यादव के पास राजनीति में बने रहने के लिए राज्यसभा सदस्य बनना ही एकमात्र विकल्प बचता है। अभी अखिलेश विधान परिषद के सदस्य हैं लेकिन राज्यसभा का सदस्य बनने के लिए उन्हें 2018 तक का इंतजार करना होगा। ऐसे में अब 2019 में भाजपा को रोकने के लिए सपा-बसपा और कांग्रेस का संयुक्त गठबंधन भी देखने को मिल सकता है। इस गठबंधन से मायावती के राज्यसभा सदस्य बनने का रास्ता भी साफ हो जाएगा। लेकिन मायावती सदस्य बनने के लिए सपा का साथ लेती हैं या नहीं यह देखना बहुत ही दिलचस्प होगा।