‘इन्हें उपेक्षा नहीं, हौसला दीजिए’, गाजियाबाद में कुष्ठ रोगियों के लिए अंतस सेवा फाउंडेशन की खास पहल, काव्य गोष्ठी का हुआ आयोजन

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नवजीवन कुष्ठ आश्रम में कवियों और सामाजिक कार्यकर्ताओं ने मिलकर मनाया संवेदना का उत्सव
गाजियाबाद में कुष्ठ रोगियों के लिए अंतस सेवा फाउंडेशन का विशेष आयोजन

अंतस सेवा फाउंडेशन ने पथगामिनी के सहयोग से नवजीवन कुष्ठ आश्रम में शनिवार (28 जून) को एक प्रेरणादायक और मानवीय पहल की। कार्यक्रम का उद्देश्य कुष्ठ रोगियों के मनोबल को बढ़ाना, उन्हें समाज के प्रति आशावान बनाना और उनकी ज़रूरतों को सम्मानपूर्वक पूरा करना था। इस अवसर पर आयोजित काव्य गोष्ठी और सेवा कार्यक्रम ने न केवल शब्दों में संवेदना भरी, बल्कि उन्हें सशक्तिकरण का अनुभव भी कराया।

“शब्द तभी सार्थक हैं जब अंतिम व्यक्ति तक पहुंचें” – स्मिता श्रीवास्तव

कार्यक्रम की शुरुआत अंतस सेवा फाउंडेशन की सचिव स्मिता श्रीवास्तव के प्रेरक विचारों से हुई। उन्होंने कहा, “शब्दों की सार्थकता तभी है जब वे समाज की अंतिम पंक्ति में खड़े व्यक्ति के जीवन में अर्थ भर सकें। कुष्ठ रोगी आज भी समाज के सबसे उपेक्षित वर्ग में हैं। हमें उनकी गरिमा की पुनर्स्थापना करनी है।”

कविता, सेवा और सम्मान का संगम

गोष्ठी की अध्यक्षता वरिष्ठ कवि राम अवतार बैरवा ने की और मंच संचालन दीपक नील पद्म ने किया। इस कार्यक्रम में मंजर गोरखपुरी और असलम राशिद जैसे नामचीन शायरों ने अपनी रचनाओं के माध्यम से समाज के हाशिये पर खड़े लोगों को स्वर देने का प्रयास किया।

सुकृति श्रीवास्तव, प्रवीण कुमार, कविता सिंह ने भी भावपूर्ण कविताएं प्रस्तुत कीं। वहीं, योगाचार्य धर्मवीर सिंह ने उपस्थित लोगों को योग और स्वास्थ्य संबंधी सुझाव दिए।

“हर इंसान गरिमापूर्ण जीवन का हकदार है” – मिहिर मिश्रा

कार्यक्रम के उद्देश्य को लेकर अंतस सेवा फाउंडेशन के मिहिर मिश्रा ने कहा, “हमारा प्रयास है कि कुष्ठ रोगियों को सिर्फ दया नहीं, सम्मान और अवसर भी दिया जाए। यह कार्यक्रम उनके हौसले को नई उड़ान देगा।”

सामाजिक सम्मान की दिशा में एक कदम

पथगामिनी संस्था की प्रमुख मंजुला श्रीवास्तव ने भी इस आयोजन में सहभागिता निभाई और इसे समाज के लिए एक सकारात्मक और जरूरी हस्तक्षेप बताया। यह आयोजन न केवल साहित्यिक स्तर पर संवेदना की मिसाल बना, बल्कि एक उपेक्षित वर्ग के प्रति समाज की सोच बदलने की कोशिश भी साबित हुआ।

अंतस सेवा फाउंडेशन और पथगामिनी द्वारा किया गया यह प्रयास केवल एक आयोजन नहीं, बल्कि एक ऐसा संदेश है जो कहता है कि कुष्ठ रोगी भी इस समाज का समान और सम्मानित हिस्सा हैं। काव्य, सेवा और संवाद के इस संगम ने यह साबित कर दिया कि संवेदना, जब कर्म से जुड़ती है, तो परिवर्तन की शुरुआत होती है।