Environment News: कुमाऊं क्षेत्र कुदरत का सुंदर उपहार है। यहां के हर कण में प्रकृति का प्रेम झलकता है।फिर बात चाहे कृषि की हो या लोकपर्व की। इनका जुड़ाव भी पर्यावरण संरक्षण से जुड़ा होता है। पहले कृषि ही कुमाऊं के लोगों का प्रमुख व्यवसाय होता था। ऐसे में अनाज की यहां बहुत प्रधानता थी। इसी क्रम में यहां अनाज को महत्व देते हुए और प्रकृति के प्रति आभार प्रकट करने का लोकपर्व है सातों-आठों। भादो का महीना शुरू हो चुका है। भादो माह की पंचमी से शुरू होने वाले इस लोकपर्व को समूचे कुमाऊं में बड़े ही उल्लास के साथ मनाया जाता है।इस पर्व की शुरुआत बिरुड़े यानी साबुत अनाज भिगाकर की जाती है।

Environment News: जानिये बिरूड़ के बारे में
बिरुड़ का अर्थ है 5 या 7 तरह का भीगा हुआ अंकुरित अनाज। भाद्रपद माह की पंचती को एक साफ तांबे के पात्र में इसे भिगाकर रखा जाता है। अनाज में मक्का, गेहूं, चना, गू्रस, चना, मटर आदि को तांबे के बर्तन में डाला जाता है।
बर्तन में अनाज डालने के बाद इसे यहां बने धारे या नौले अर्थात जिस स्थान पर पानी भरा जाता है।शुद्ध पानी से धोया जाता है। उसके बाद इन्हें भिगाने के लिए छोड़ दिया जाता है। बर्तन के चारों तरफ 9 या 11 छोटी आकृतियां बनाई जातीं हैं। इन आकृतियों में दूब लगाकर मंदिर के पास रख दिया जाता है।
Environment News: पोटली में भिगोकर रखते हैं अनाज
कुमाऊं के कुछ स्थानों में एक पोटली में भी 5 या 7 अनाज को फल के साथ बांध दिया जाता है।पोटली को भी तांबे के बर्तन के भीतर भिगोकर रखा जाता है। बिरुड़े से सातों के दिन गौरा की और आठों के दिन बिरुड़ों से महेश की पूजा की जाती है। पूजा में इस्तेमाल किए गए इन बिरुड़ों को आशीष के रूप में सभी के बीच बांटा जाता है। बचे हुए बिरुड़ों को पकाकर प्रसाद के रूप में खाया जाता है।
Environment News: पर्यावरण का आभार जताता है ये पर्व
इस पर्व के माध्यम से कुमाऊं का हर व्यक्ति प्रकृति के प्रति अपनी गहरी आस्था और आभार जताता है।बताता है कि कुदरत का अमूल्य उपहार उसे सदैव मिलता रहे।धरती को हरी-भरी बनाने के मकसद से हर नागरिक अपना कर्तव्य निभाएगा। खेती हो प्राकृतिक झरने, नौले, नदी या पेड़। इसे बचाने के लिए हर आयुवर्ग का इंसान काम करेगा, तभी आने वाली पीढ़ियों को पर्यावरण संरक्षण का संदेश दिया जा सकेगा।
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