हिदी सिनेमा जगत में ‘शॉटगन’ और ‘बिहारी बाबू’ नाम से पुकारे जाने वाले Shatrughan Sinha किसी परिचय के मोहताज नहीं हैं। अपनी दमदार आवाज और अनूठी अदा से सबको ‘खामोश’ करने वाले शत्रुघ्न सिन्हा आज 76 साल के हो गये।
बिहारी बाबू का जन्म बिहार की राजधानी पटना के कदमकुआं इलाके में 9 दिसंबर 1946 को हुआ था। इनके पिता का नाम डॉक्टर भुवनेश्वर प्रसाद सिन्हा था और मां का नाम श्यामा देवी सिन्हा था। शत्रु बाबू के पिता को रामायण से बहुत लगाव था, जिसके कारण उन्होंने अपने चारों बच्चों का नाम राम, लखन, भरत और शत्रुघ्न रखा था। आज हम रामायण के उन्हीं नामराशि किरदारों में से शत्रुघ्न सिन्हा की बात करेंगे।

शत्रुघ्न सिन्हा अपने परिवार में चारों भाइयों में सबसे छोटे हैं। शत्रुघ्न सिन्हा ने पटना के प्रतिष्ठित साइंस कॉलेज से पढ़ाई की। पढ़ाई के दौरान उनके पिता चाहते थे कि अन्य भाईयों की तरह शत्रुघ्न भी डॉक्टर या इंजीनियर बने, लेकिन किस्मत को तो कुछ और ही मंजूर था।
शत्रुघ्न सिन्हा आगे की पढ़ाई के लिए पटना से दूर आ पहुंचे पुणे की भारतीय फिल्म एवं टीवी संस्थान में। यहां उनके बैचमेट में जया बच्चन और रजा मुराद कई दिग्गज शामिल रहे। फिल्म की शिक्षा लेने के बाद शत्रु पहुंचे माया नगरी मुंबई, लेकिन कटे होंठ के कारण शत्रुघ्न को हर जगह से ना हो जाती।

बिहारी बाबू अपने कटे होंठ की प्लास्टिक सर्जरी कराने के बारे में सोचने लगे। तभी एक दिन उनकी मुलाकात सदाबहार अभिनेता देवानंद से हुई। शत्रु ने यह बात देवानंद को बताई तो उन्होंने सलाह दी कि प्लास्टिक सर्जरी एकदम मत कराना।
लंबे संघर्ष के बाद आखिरकार शत्रुघ्न सिन्हा को फिल्मों में पहला ब्रेक दिया मोहन सहगल ने साल 1969 में। फिल्म का नाम था ‘साजन’। इस फिल्म के हीरो थे मनोज कुमार और हिरोइन थीं आशा पारेख। शत्रुघ्न सिन्हा को फिल्मों में असल सफलता मिली साल 1970 में और फिल्म का नाम था ‘खिलौना’। फिल्म ‘खिलौना’ के निर्माता थे आंध्र प्रदेश के जानेमाने प्रोड्यूसर एलवी प्रसाद और इसमें मुख्य किरदार निभाया था संजीव कुमार, मुमताज, जितेंद्र और शत्रुघ्न सिन्हा ने।

इसके बाद साल 1976 में शॉटगन की एक और सुपर-डुपर हिट फिल्म आई, जिसका नाम था ‘कालीचरण’। बेहतरीन अदाकारी के लिए शत्रुघ्न सिन्हा को चार बार प्रतिष्ठित फिल्मफेयर अवॉर्ड के लिए नामित किया गया।
शत्रुघ्न सिन्हा को पहली बार साल 1971 में फिल्म ‘पारस’ के लिए फिल्मफेयर का सर्वश्रेष्ठ सपोर्टिंग एक्टर का अवॉर्ड मिला। इसके बाद 1974 में फिल्म ‘दोस्त’ के लिए और साल 1979 में फिल्म ‘काला-पत्थर’ के लिए और साल 1980 में शत्रुघ्न सिन्हा को फिल्म ‘दोस्ताना’ के लिए फिल्मफेयर का बेस्ट एक्टर अवॉर्ड दिया गया।

जानदार अभिनय प्रतिभा के धनी शत्रु ने फिल्मों में विलेन से लेकर हीरो तक भाई, बेटा, बाप, गुंडा, ब्लैकमेलर, दोस्त, दुश्मन यहां तक कि डाकू तक के किरदारों को अपनी अदाकारी से सिनेमा के पर्दे पर जीवंत किया। शत्रुघ्न सिन्हा ने अपने दौर से लगभग सभी बड़े कलाकारों और फिल्मकारों के साथ काम किया।
रेखा, हेमा मालिनी, स्मिता पाटिल और रीना रॉय के साथ शत्रुघ्न सिन्हा की जोड़ी को दर्शकों ने काफी पसंद किया। वहीं अगर अन्य हीरो की बात करें तो सदी के महानायक अमिताभ बच्चन, विनोद खन्ना, धर्मेंद्र, जीतेंद्र और संजीव कुमार के साथ शत्रु के फिल्मी कैमेस्ट्री को दर्शकों ने बहुत सराहा।

शत्रुघ्न सिन्हा जब फिल्मों में अपनी सफलता के किस्से गढ़ रहे थे, उसी दौरान उनके और अभिनेत्री रीना रॉय के बीच कथिततौर पर अफेयर भी हो गया। लेकिन कहते हैं कि उनका यह अफेयर ज्यादा दिनों तक नहीं चला। उसके बाद शत्रुघ्न का नाम पूनम चंडीरमानी के साथ जोड़ा जाने लगा। पूनम उनके साथ पुणे की फिल्म इंस्टीट्यूट में पढ़ा करती थीं।
पूनम भी शत्रुघ्न सिन्हा की तरह एक फिल्म स्टार बनना चाहती थीं। उन्होंने मुंबई में आयोजित एक सौंदर्य प्रतियोगिता जीतकर फिल्म का कॉन्ट्रेक्ट प्राप्त किया और उसके बाद कोमल के नाम से उन्होंने एक्टिंग भी शुरू की। वह उस दौर की चंद फिल्मों में आईं, लेकिन एक दिन अचानक कोमल ने साल 1980 में शत्रुघ्न सिन्हा से शादी कर ली और फिल्मों को अलविदा कह दिया।

शत्रुघ्न सिन्हा और पूनम के शादी का एक बड़ा ही दिलचस्प किस्सा है। कहा जाता है कि जब शत्रु के बड़े भाई राम सिन्हा पूनम के घर गए, शत्रु से उनकी शादी की बात करने तो पूनम की मां भड़क गई।
उन्होंने कहा, ‘मेरी बेटी पूनम गोरी है और वो लड़का, चेहरे पर कटे का निशान और फिल्मों में चोर-डाकुओं की एक्टिंग करता है। उससे मैं अपनी बेटी की शादी नहीं करूंगी’। बहुत मनाने के बाद आखिरकार पूनम की मां इस शादी के लिए राजी हुईं, तब जाकर किसी तरह दोनों की शादी हुई।

शत्रुघ्न सिन्हा मझे हुए फिल्म अभिनेता होने के साथ-साथ राजनीति के भी दिग्गज खिलाड़ी हैं। बकौल शत्रुघ्न सिन्हा साल 1974 में वह पहली बार वह लोकनायक जयप्रकाश नारायण के सम्पर्क में आए। उनका कहना है कि वह जयप्रकाश के व्यक्तित्व से प्रभावित होकर राजनीति में आ गए।
80 के दशक में शत्रुघ्न सिन्हा ने लाल कृष्ण आडवाणी के कहने पर भाजपा की सदस्यता ली और भाजपा के चुनावी रैलियों में स्टार प्रचारक के तौर पर उतरने लगे। साल 1992 में नयी दिल्ली लोकसभा की सीट से शत्रुघ्न सिन्हा ने पहली बार चुनाव लड़ा। यह चुनाव कई मामलों में ऐतिहासिक था।

इससे पहले भाजपा के कद्दावर नेता लालकृष्ण आडवाणी ने इसी सीट पर अपने समय के सुपरस्टार एवं कांग्रेस के धाकड़ प्रत्याशी राजेश खन्ना को परास्त किया था किंतु चुनाव जीतने के बाद आडवाणी ने नयी दिल्ली की सीट छोड़ दी क्योंकि वह गांधीनगर लोकसभा सीट से भी निर्वाचित हुए थे।
इसके बाद नयी दिल्ली लोकसभा के लिए हुए उप-चुनाव में राजेश खन्ना फिर से कांग्रेस के प्रत्याशी बने वहीं शत्रुघ्न सिन्हा को भाजपा ने राजेश खन्ना के खिलाफ चुनाव मैदान में उतार दिया। लेकिन शत्रु को राजेश खन्ना के हाथों करारी हार का सामना करना पड़ा। इस चुनाव ने राजेश खन्ना और शत्रुघ्न सिन्हा के बीच ऐसी दरार पैदा कर दी कि आजीवन दोनों के बीच बातचीत नहीं हुई। राजेश खन्ना ने शत्रुघ्न सिन्हा को कभी माफ नहीं किया।

शत्रुघ्न सिन्हा साल 2009 और फिर साल 2014 में लगातार दो बार लोकसभा का चुनाव जीत चुके हैं। इससे पहले शत्रुघ्न सिन्हा बिहार से राज्यसभा के बीजेपी कोटे से सांसद रहे। पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहार वाजपेयी शत्रुघ्न सिन्हा को बहुत मानते थे।
पूर्व प्रधानमंत्री वाजपेयी ने साल 2002 में शत्रुघ्न सिन्हा को अपनी सरकार में स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्री बनाया था। बाद में 2003 में उनका मंत्रालय बदलकर उन्हें जहाजरानी मंत्री बनाया गया।

साल 2014 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के हाथों में सत्ता आने के बाद लालकृष्ण आडवाणी के खेमे के कहे जाने वाले शत्रुघ्न सिन्हा भाजपा में हाशिए पर चले गए।

साल 2019 के लोकसभा चुनाव में भाजपा ने बिहारी बाबू को टिकट नहीं दिया, जिससे नाराज होकर शत्रुघ्न सिन्हा ने भाजपा छोड़कर कांग्रेस का दामन थाम लिया है।
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