Param Sundari Review: क्या होता है जब एक महत्वाकांक्षी बिजनेसमैन, कई असफल स्टार्टअप्स के बाद, एक AI मैट्रिमोनियल ऐप के जरिए अपनी सोलमेट तलाशने का फैसला करता है? तुषार जलोटा के निर्देशन में बनी फिल्म ‘परम सुंदरी’ इसी दिलचस्प सवाल को बड़े पर्दे पर पेश करती है।
कहानी दिल्ली के बिजनेसमैन परम (सिद्धार्थ मल्होत्रा) से शुरू होती है, जो इस ऐप में इन्वेस्ट करना चाहता है। फंडिंग के लिए पिता की दी गई चुनौती स्वीकार कर वह ऐप के जरिए अपनी जीवनसंगिनी की तलाश पर निकल पड़ता है।
ऐप का एल्गोरिद्म उसे पहुंचा देता है केरल के एक खूबसूरत गांव में बने होमस्टे तक, जहां उसकी मुलाकात होती है सुंदरी (जाह्नवी कपूर) से। शुरुआत नोकझोंक और तकरार से होती है, मगर धीरे-धीरे यह सफर बदल जाता है एक प्यारी प्रेमकहानी में।
लेकिन ठीक तभी कहानी में आता है बड़ा ट्विस्ट—परम को पता चलता है कि सुंदरी की शादी कुछ ही दिनों में उसके बचपन के दोस्त वेणु से होने वाली है। यहीं से कहानी अटक जाती है उस मोड़ पर कि क्या सुंदरी परम के प्यार को समझ पाएगी और क्या दोनों मिल पाएंगे?
किरदार और अभिनय
परम के किरदार में सिद्धार्थ मल्होत्रा ठीक-ठाक नज़र आते हैं। अमीर पिता की औलाद, ओवर कॉन्फिडेंट और स्टाइलिश बिजनेसमैन के रूप में वह फिट तो बैठते हैं, लेकिन उनका किरदार हमेशा पॉज़िटिव और हल्का-फुल्का बना रहना थोड़ी सतही छाप छोड़ता है। सिद्धार्थ की चॉकलेट बॉय इमेज इस बार कमजोर पड़ी है, हालांकि उनके रोमांटिक एक्सप्रेशंस और स्क्रीन प्रेज़ेंस कहानी को संभाल लेते हैं।
सुंदरी के रोल में जान्हवी कपूर ज्यादा प्रभावी हैं। जाह्नवी की कॉमिक टाइमिंग में पिछली फिल्मों से बेहतर नज़र आती है और साड़ियों, घाघरे और केरल की पारंपरिक वेशभूषा में उनकी ऑन-स्क्रीन उपस्थिति बेहद आकर्षक लगती है। उनका किरदार इंडिपेंडेंट लड़की का है, जो माता-पिता की मौत के बाद होम स्टे संभालती है और अपनी बहन का ध्यान रखती है. सुंदरी का केवल एक ही जुनून है – केरल का पारंपरिक नृत्य शैली ‘मोहिनीअट्टम’। उसके पास सबके लिए समय है, बस खुद के लिए टाइम नहीं है—प्यार को वह किसी एल्गोरिद्म का खेल नहीं, बल्कि दिल से महसूस करने वाली भावना मानती हैं।
सपोर्टिंग कास्ट ने फिल्म को मजबूती दी है। मनजोत सिंह की कॉमिक टाइमिंग हंसी के पल देती है, जबकि संजय कपूर ने बिगड़ैल अमीर बेटे के पंजाबी पिता का रोल मज़ेदार अंदाज़ में निभाया। सिद्धार्थ शंकर (वेणु नायर) और रेंजी पाणिकर (भार्गवन नायर) और अभिषेक बनर्जी जैसे कलाकारों ने भी अपने हिस्से का काम बखूबी किया है।
निर्देशन और तकनीकी पहलू
तुषार जलोटा ने फिल्म को जल्दी-जल्दी आगे बढ़ाने के बजाय इसमें एहसास और वास्तविकता भरी है। संवाद सरल और असरदार हैं। हालांकि फिल्म में स्लो मोशन तकनीक का काफी इस्तेमाल नजर आता है, जिसपर खुद फिल्म के भीतर डायलॉग भी है कि ‘ये साउथ में हर कोई स्लो मोशन में क्यों आता है’।
इसके अलावा, दिल्ली की चहल-पहल और केरल की शांति, दोनों का सुंदर संतुलन फिल्म में दिखाई देता है। सिनेमैटोग्राफी फिल्म के मूड को सपोर्ट करती है—केरल के नज़ारे, पारंपरिक त्योहार, कलारीपयट्टू और वल्लम काली (बोट रेस) के दृश्य बेहद खूबसूरती से शूट किए गए हैं।
हालांकि, एडिटिंग के स्तर पर कुछ कमियां खटकती हैं। इंटरवल से पहले फिल्म की रफ्तार धीमी पड़ जाती है और चर्च वाला लंबा सीन दर्शकों से कनेक्शन तोड़ देता है। इंटरवल के बाद फिल्म बेहतर पेस से चली, लेकिन क्लाइमेक्स उम्मीद के मुताबिक ड्रामा-कॉमेडी नहीं छोड़ पाया।
फिल्म की खासियत और कमियां
परम सुंदरी की सबसे बड़ी खूबी इसका हल्का-फुल्का अंदाज़ और साफ-सुथरा हास्य है, जिसमें कहीं भी डबल मीनिंग का सहारा नहीं लिया गया। फिल्म का असर उन पलों में और गहरा हो जाता है जब यह सिनेमा की अविश्वसनीय, लेकिन मजेदार दुनिया को पूरे दिल से अपनाती है। रोमांटिक गाने और हल्के-फुल्के सीक्वेंस कहानी में ताजगी भरते हैं और दर्शकों को बांधे रखते हैं। खास बात यह है कि फिल्म में सुपरस्टार शाहरुख खान की फिल्मों के डायलॉग और कुछ गानों को ट्रिब्यूट भी दिया गया है, जो किंग खान के फैंस के लिए एक खास तोहफ़े जैसा है। शायद यही वजह है कि परम सुंदरी को कई जगहों पर चेन्नई एक्सप्रेस से जोड़ा और उसकी तुलना भी की जा रही है।
कहानी अच्छी लगती है लेकिन दर्शकों को इमोशनल तौर पर पूरी तरह पकड़ नहीं पाती। उदाहरण के लिए सुंदरी की बैकस्टोरी और उसके जीवन संघर्ष को अगर थोड़ा और गहराई से दिखाया जाता तो कहानी और असरदार बन सकती थी। फिल्म में नेगेटिव किरदार (ANTAGONIST) या कहें विलेन कैरेक्टर की कमी खली। बीच-बीच में कुछ साइड ट्रैक जोड़े गए हैं, लेकिन वो रोमांस में ज्यादा रंग नहीं भर पाते। आखिर में फिल्म एक प्यारी सी रोमांटिक कॉमेडी तो है, मगर ऐसा मजबूत कॉन्फ्लिक्ट नहीं दिखाती जो कहानी को थोड़ा और दिलचस्प बना दे।
कुल मिलाकर परम सुंदरी एक ठीक-ठाक और मजेदार रोमांटिक कॉमेडी है, जिसमें खूबसूरत लोकेशन्स, आकर्षक संगीत और कुछ अच्छे लोक नृत्य-कलाओं का संगम है। सिद्धार्थ और जान्हवी की केमिस्ट्री बेहतर हो सकती थी, लेकिन उनकी स्क्रीन उपस्थिति कहानी को देखने लायक बनाती है। यह फिल्म गहरी भावनाओं से भले न जोड़ पाए, लेकिन हल्का-फुल्का मनोरंजन चाहने वालों को निराश नहीं करती।
रेटिंग: ⭐⭐⭐ (3/5)