JOLLY LLB 3 REVIEW: अक्षय कुमार और अरशद वारसी स्टारर बहुप्रतीक्षित फिल्म ‘जॉली एलएलबी 3’ आखिरकार आज यानी शुक्रवार (19 सितंबर 2025) को सभी सिनेमाघरों में रिलीज हो चुकी है। सुभाष कपूर निर्देशित इस ‘जॉली एलएलबी’ फ्रेंचाइज़ी को लेकर लंबे समय से चर्चा थी, क्योंकि पहली बार दर्शकों को दोनों ‘जॉली’ – जगदीश त्यागी (अरशद वारसी) और जगदीश्वर मिश्रा (अक्षय कुमार) – एक ही फ्रेम में देखने को मिल रहे हैं। उनके बीच फंसे हुए दिखते हैं हमारे चहेते जज सुंदर लाल त्रिपाठी (सौरभ शुक्ला)। फिल्म किसानों की ज़मीन और उनके अधिकार जैसे गंभीर मुद्दे को हास्य और ड्रामा के संतुलन के साथ पेश करती है। सवाल यही था कि क्या यह तीसरा पार्ट अपने पहले दो हिस्सों की तरह दर्शकों को बांध पाएगा? आइए जानते हैं। इस रिव्यू में।
क्या है कहानी?
फिल्म की शुरुआत राजस्थान के बीकानेर के एक छोटे से गांव से होती है। यहां किसान और जन कवि राजाराम सोलंकी आत्महत्या कर लेता है क्योंकि एक बड़े प्रोजेक्ट के लिए उसकी जमीन पर एक बड़ी रियल एस्टेट कंपनी की नजर होती है। दरअसल, राजाराम अपने गांव और खेत छोड़ने को तैयार नहीं होता, लेकिन धोखाधड़ी, दबाव और नेताओं-प्रशासन की मिलीभगत में उसकी जमीन हड़प ली जाती है। राजाराम के जाने के बाद उसकी पत्नी जानकी (सीमा बिस्वास) न्याय की तलाश में दिल्ली के एक सेशन कोर्ट पहुँचती है।
यहीं पर दोनों जॉली की एंट्री होती है – अरशद वारसी वाले जगदीश त्यागी और अक्षय कुमार वाले जगदीश्वर मिश्रा। दोनों ही फिल्म में आगे चलकर अपने-अपने अंदाज में केस लड़ते हैं, आपस में नोकझोक और मारपिटाई करते हैं और जज सुंदर लाल त्रिपाठी (सौरभ शुक्ला) को परेशान कर देते हैं। फिल्म का असली ड्रामा यहीं से शुरू होता है, जब कोर्टरूम में कॉमेडी, व्यंग्य और भावनाओं का तूफान एक साथ देखने को मिलता है। बहरहाल, जानकी देवी को कोर्ट से न्याय मिलता है या नहीं? इसका जवाब तो आपको फिल्म देखकर ही मिल सकेगा।
फिल्म में किसानों की समस्याओं को प्रमुखता से उठाया गया है। इस बार कहानी केवल निचली अदालत तक सीमित नहीं रहती, बल्कि तहसीलदार कोर्ट का चित्रण भी देखने को मिलता है। अक्षय कुमार, अरशद वारसी और सौरभ शुक्ला के साथ हुमा कुरैशी और अमृता राव, दोनों वकीलों की पत्नियों की भूमिका में नजर आती हैं। वहीं गजराज राव खलनायक के रूप में प्रभावशाली प्रदर्शन करते हैं। सुकुमार तुदु और शिल्पा शुक्ला (चंचल चौटाला) जैसे प्रतिभाशाली कलाकार सीमित स्क्रीन टाइम के बावजूद अपने किरदार से गहरी छाप छोड़ने में सफल रहते हैं। अन्य सहायक कलाकारों ने भी अपने हिस्से का काम पूरी ईमानदारी से निभाया है।
एक्टिंग (Performances)
- अक्षय कुमार: उनका जॉली मिश्रा वाला अंदाज़ हल्के-फुल्के कॉमेडी पंच और गंभीर मोमेंट्स के बीच बेहतरीन संतुलन बनाता है। खासकर कोर्टरूम सीन में उनकी तीखी बहस और गांव के मुद्दों पर सवाल उठाने की शैली दर्शकों को प्रभावित करती है।
- अरशद वारसी: पहले पार्ट के जॉली के रूप में उन्होंने फिर साबित किया कि क्यों उन्हें इस रोल का ओरिजिनल ‘मालिक’ कहा जाता है। उनका ह्यूमर और नैचुरल डायलॉग डिलीवरी कई सीन में तालियां बटोरती है।
- सौरभ शुक्ला: जज त्रिपाठी के रूप में वे इस सीरीज़ की जान हैं। इस बार उनका किरदार और भी मज़बूत और कॉमिक है। दोनों जॉली के बीच फंसा जज दर्शकों को हंसी के ठहाकों में डुबो देता है। बीवी की मृत्यु के बाद अपनी डेटिंग लाइफ और किरदार की फ्रस्टेशन से शुक्ला ने दर्शकों को हंसाकार मेला ही लूट लिया। अक्षय, अरशद के बाद उन्हें इस फिल्म का स्टार कहना गलत नहीं होगा।
- हुमा कुरैशी और अमृता राव: हुमा कुरैशी और अमृता राव, दोनों ने सीमित स्क्रीन टाइम के बावजूद अपनी उपस्थिति को प्रभावशाली बनाया है। अमृता राव अपने किरदार में गरिमा और सहजता लाती हैं। पत्नी और एनजीओ कार्यकर्ता की दोहरी भूमिका में वह न केवल पति के संघर्षों में चट्टान की तरह खड़ी दिखाई देती हैं, बल्कि समाज में बदलाव लाने वाली संवेदनशील आवाज़ भी बनती हैं। उनकी परफॉर्मेंस सादगी और दृढ़ता का बेहतरीन संतुलन पेश करती है। वहीं, हुमा कुरैशी एक बुटीक मालिक और बॉसी वाइफ के रोल में फिल्म को हल्का-फुल्का और रिलेटेबल स्पर्श देती हैं। उनका किरदार अपने पति के साथ प्यार और तकरार, दोनों में बराबरी से खड़ा है। हुमा ने इस रोल को अपनी स्वाभाविक कॉमिक टाइमिंग और दमदार स्क्रीन प्रेज़ेंस से जीवंत कर दिया है। कुल मिलाकर, दोनों ही अभिनेत्रियों के योगदान ने फिल्म के भावनात्मक और मनोरंजक पहलुओं में संतुलन बनाए रखा।
- सीमा बिस्वास (जानकी): सीमा बिस्वास (जानकी) का अभिनय फिल्म की सबसे मजबूत कड़ियों में से एक है। एक किसान की पत्नी के रूप में उनका दर्द और गुस्सा बेहद सधी हुई परफॉर्मेंस के साथ सामने आता है। उन्होंने चरित्र की चुप्पी और दबे हुए आक्रोश को इतनी गहराई से निभाया है कि दर्शक उनके हर हाव-भाव से जुड़ जाते हैं। आंसुओं के जरिए सच्चाई और पीड़ा को उभारने का उनका अंदाज फिल्म को भावनात्मक स्तर पर नई ऊंचाई देता है। यह परफॉर्मेंस साबित करती है कि सीमा बिस्वास अब भी हर किरदार में जान डालने की क्षमता रखती हैं और उनकी मौजूदगी स्क्रीन पर कहानी को और प्रामाणिक बना देती है।
निर्देशन और पटकथा
सुभाष कपूर ने हमेशा की तरह कोर्टरूम ड्रामा को केवल कानूनी बहस तक सीमित नहीं रखा, बल्कि उसमें समाज का आईना भी दिखाया। ‘जॉली एलएलबी 3’ में किसानों की आत्महत्या और जमीन हड़पने जैसे गंभीर मुद्दे को हल्के-फुल्के अंदाज़ में समेटना आसान काम नहीं रहा होगा। इस नाजुक और संवेदनशील मुद्दे पर फिल्म की पटकथा में ह्यूमर और इमोशन का संतुलन बखूबी नजर आता है। निर्देशक का फिल्म को लेकर सीधा और सरल सा संदेश है, “मेरी जमीन, मेरा अधिकार” (“My Land, My Choice”)—यह संदेश साफ तौर पर बताता है कि विकास की आड़ में किसानों से उनकी जमीन छीनना न्यायसंगत नहीं हो सकता।
हालांकि, यह कहना गलत नहीं होगा कि बीच-बीच में कहानी थोड़ी लंबी खिंचती है, लेकिन दर्शकों से पूरी तरह कनेक्शन नहीं टूटता है। वहीं कोर्टरूम के तीखे तर्क-वितर्क और मजाकिया बहस दर्शकों का ध्यान बनाए रखते हैं।
म्यूज़िक और टेक्निकल पहलू
फिल्म का बैकग्राउंड स्कोर कोर्टरूम ड्रामा को जीवंत बनाता है। कॉमेडी सीन में हल्के-फुल्के म्यूज़िक का इस्तेमाल और गंभीर पलों में भावनात्मक टोन सही बैलेंस बनाता है। सिनेमैटोग्राफी में राजस्थान के ग्रामीण इलाकों और दिल्ली कोर्ट के दृश्य दमदार हैं।
फिल्म की खूबियां
दोनों जॉली का साथ में नजर आना दर्शकों के लिए किसी ट्रीट से कम नहीं है। उनकी कॉमिक टाइमिंग बेहतरीन है और दोनों एक-दूसरे को पूरी तरह कॉम्प्लीमेंट करते हैं। किसानों से जुड़ा मुद्दा दर्शकों में भावनात्मक जुड़ाव पैदा करता है। फिल्म ने कोर्टरूम ड्रामा और कॉमेडी के बीच संतुलन बनाए रखने में अच्छा काम किया है। जॉली के अलावा सौरभ शुक्ला और सीमा बिस्वास ने भी शानदार अभिनय से कहानी को मजबूती दी है।
कमजोरियां
फिल्म की लंबाई थोड़ी कम की जा सकती थी और कुछ सीन अनुमानित लगते हैं। साइड कैरेक्टर्स जैसे राजाराम सोलंकी और जानकी की बहू की कहानी/किरदार को और गहराई दी जाती तो प्रभाव बढ़ जाता। वहीं, विलेन के किरदार (हरिभाई खेतान) को भी और ज्यादा प्रभावशाली बनाया जा सकता था। एक्टर राम कपूर ने विपक्षी वकील (एडवोकेट विक्रम) के तौर पर अच्छा प्रयास किया है, लेकिन उनके किरदार से थोड़ी और उम्मीद थी। दर्शक उनके रोल की तुलना पिछली दोनों फिल्मों के दमदार विरोधी वकीलों से करेंगे—‘जॉली एलएलबी 2’ में अनु कपूर और पहली फिल्म में बोमन ईरानी—जिनके मुकाबले राम कपूर का रोल थोड़ा फीका नजर आ सकता है।
‘जॉली एलएलबी 3’ न सिर्फ हंसी और मनोरंजन देती है, बल्कि समाज के सबसे गंभीर मुद्दों में से एक – किसानों की आत्महत्या और उनकी जमीनों के अवैध अधिग्रहण – को भी सामने लाती है। यह फिल्म दर्शकों को हंसाते-हंसाते सोचने पर मजबूर करती है। अक्षय कुमार और अरशद वारसी की जोड़ी, साथ में सौरभ शुक्ला का जज वाला किरदार, इस फिल्म को “मस्ट वॉच कोर्टरूम ड्रामा कॉमेडी” बनाता है।
अगर आपने पिछली दो फिल्में देखी हैं तो यह फिल्म जरूर देखें। और अगर नहीं भी देखी तो भी ‘जॉली एलएलबी 3’ अपने दमदार विषय और शानदार एक्टिंग की वजह से आपको निराश नहीं करेगी।
रेटिंग: ⭐⭐⭐⭐ (4/5)