हाल ही में केंद्र सरकार ने 2019 में लेटरल एंट्री (Lateral Entry) के जरिए नियुक्त किये गये सात अधिकारियों के कार्यकाल को और दो वर्ष के लिए बढ़ा दिया है. लेटरल एंट्री के माध्यम से अब तक 37 अधिकारी नियुक्त किए गए हैं.
संघ लोक सेवा आयोग द्वारा 2019 में 8 (एक उम्मीदवार ने ज्वाइन नहीं किया) एवं 2021 में 30 व्यक्तियों का चयन किया गया था. अभी लेटरल एंट्री वाले अधिकारी संयुक्त सचिव, निदेशक और उप सचिव के रैंक पर 21 मंत्रालयों और विभागों में विभिन्न पदों पर हैं. इनमें से 10 संयुक्त सचिव (2019 में सात और 2021 में तीन नियुक्त) हैं, जिनमें से चार राज्य सेवाओं या सार्वजनिक क्षेत्र से प्रतिनियुक्ति पर आये हैं और बाकी छह कॉर्पोरेट क्षेत्रों से हैं.
क्या है लेटरल एंट्री?
लेटरल एंट्री प्रक्रिया के तहत निजी क्षेत्र के कर्मियों का चयन सरकारी प्रशासनिक पद पर किया जाता है, भले ही वो व्यक्ति देश की नौकरशाही व्यवस्था का हिस्सा हो या न हो.
नीति आयोग की तीन वर्षीय कार्य योजना में एवं शासन से संबंधित सचिवों के क्षेत्रीय समूह (एसजीओएस) ने फरवरी, 2017 में प्रस्तुत अपनी रिपोर्ट में सरकार में मध्यम और वरिष्ठ प्रबंधन स्तर पर कार्मिकों को भर्ती करने की सिफारिश की थी. इसके आधार पर, चिन्हित मंत्रालयों/विभागों में संयुक्त सचिवों के 10 पदों तथा उप सचिव/निदेशक स्तर के 40 पदों पर गैर-सरकारी क्षेत्र के विशेषज्ञों को नियुक्त करने का निर्णय केंद्र सरकार द्वारा लिया गया था.
लेटरल एंट्री के तहत अनुबंध के आधार पर, नई प्रतिभाओं को लाने के साथ-साथ जनशक्ति की उपलब्धता बढ़ाने के दोहरे उद्देश्यों को प्राप्त करना है. क्योंकि आज के समय में प्रशासनिक मामलों के शीर्ष पर अत्यधिक कुशल और प्रेरित व्यक्तियों की आवश्यकता होती है, जिसके बिना सार्वजनिक सेवा वितरण तंत्र सुचारू रूप से कार्य नहीं करता है.
लेटरल एंट्री सरकारी क्षेत्र में मितव्ययिता (Frugality), दक्षता (Efficiency) और प्रभावशीलता (Effectiveness) के मूल्यों को बढ़ाने में मदद करती है. यह सरकारी क्षेत्र के भीतर प्रदर्शन की संस्कृति के निर्माण में मदद करेगा.
लेटरल एंट्री के माध्यम से आने वाले अधिकारियों को 3 साल के एक अनुबंध पर हस्ताक्षर करने की आवश्यकता होती है, जिसे उनके प्रदर्शन के आधार पर और 2 साल तक बढ़ाया जा सकता है.
लेटरल एंट्री के फायदे
दिन-प्रतिदिन बढ़ती हुई चुनौतियों के बीच वर्तमान में शासन व्यवस्था को चलाने के लिए विशेष कौशल की जरूरत है. इसके साथ ही सरकारी अधिकारियों से हमेशा विशेष ज्ञान के साथ अद्यतन रहने की उम्मीद नहीं की जा सकती है. इसलिये विशेष कार्यक्षेत्र में विशेष ज्ञान वाले लोगों द्वारा वर्तमान प्रशासनिक चुनौतियों की जटिलता का मार्गदर्शन लिए जाने की आवश्यकता है.
कार्मिक और प्रशिक्षण विभाग के आंकड़ों के अनुसार देश में 1,472 आईएएस अधिकारियों की कमी है. लेटरल एंट्री इस कमी को पूरा करने में मदद कर सकती है.
लेटरल एंट्री के माध्यम से सरकारी क्षेत्र की कार्य-संस्कृति के अंतर्गत नौकरशाही संस्कृति में परिवर्तन लाने में मदद मिलेगी. नौकरशाही संस्कृति की आलोचना लालफीताशाही और यथास्थितिवाद के लिये की जाती है.
लेटरल एंट्री निजी और गैर-लाभकारी क्षेत्र के हितधारकों को शासन प्रक्रिया में भाग लेने का अवसर प्रदान करती है.
लेटरल एंट्री का विरोध
विशेषज्ञ कहते हैं कि विशेषज्ञता लाने और निर्णय लेने की प्रक्रिया का हिस्सा होने के बीच में एक अंतर है. विशेषज्ञता लाने के लिये सरकार को निजी क्षेत्र के कर्मियों को रखने की आवश्यकता नहीं है. विशेषज्ञों का मत है कि हरेक मंत्रालय द्वारा उपलब्ध विशेषज्ञता का उपयोग किया जा सकता है. जैसे -विशेषज्ञ समितियां, परामर्शदाता, थिंक टैंक संलग्नक आदि.
लेटरल एंट्री की सफलता के लिये व्यवस्था की समझ और स्थायी रूप से कार्य करने की क्षमता की जरुरत होती है. अभी लेटरल एंट्री प्रक्रिया के तहत चुने गये व्यक्ति को केवल 15 दिन का प्रशिक्षण दिया जाता है. अतः इस कारण निर्णय लेने की प्रक्रिया बोझिल बनती जाती है और समस्याओं का समय से निवारण नहीं हो पाता है.
निजी क्षेत्र से आने वाले लोग लाभ के दृष्टिकोण के साथ काम करते है परंतु सरकार का उद्देश्य सार्वजनिक सेवाओं से संबंधित हैं. यह एक मौलिक या आधारभूत संक्रमण (Fundamental Transition) है जिसमें एक निजी क्षेत्र के व्यक्ति को सरकार के साथ कार्य करते समय एक बदलाव के दौर से गुजरना पड़ता है.
निजी क्षेत्र के व्यक्तियों को महत्वपूर्ण प्रशासनिक पदों पर नियुक्त किये जाने से नौकरशाही के साथ हितों के टकराव का मुद्दा उत्पन्न होता है.
द्वितीय प्रशासनिक आयोग की रिपोर्ट और लेटरल एंट्री
भारत में द्वितीय प्रशासनिक सुधार आयोग (प्रथम प्रशासनिक सुधार आयोग 1966 में) का गठन 31 अगस्त, 2005 को कर्नाटक के पूर्व मुख्यमंत्री वीरप्पा मोइली की अध्यक्षता में किया गया था. आयोग को सरकार के सभी स्तरों पर देश के लिये एक सक्रिय, प्रतिक्रियाशील, जवाबदेह, संधारणीय और कुशल प्रशासन सुनिश्चित करने के उद्देश्य से सुझाव देने की जिम्मेदारी दी गई थी.
द्वितीय प्रशासनिक सुधार आयोग द्वारा कहा गया था कि केंद्र और राज्य दोनों स्तरों पर लेटरल एंट्री के लिये एक संस्थागत, पारदर्शी प्रक्रिया स्थापित की जानी चाहिये.
देश के कई राज्यों में आईएएस अधिकारियों की कमी है और राज्य प्रतिनियुक्ति के तौर पर अधिकारियों को केंद्र में भेजे जाने के इच्छुक नहीं हैं और ऐसे में लेटरल एंट्री पर गौर किये जाने की जरूरत है.
प्रशासनिक सुधार की रिपोर्टों में उल्लेख
स्वतंत्र भारत में प्रशासन की कार्यशैली पर एन.डी. गोरेवाला की ‘लोक प्रशासन पर प्रतिवेदन’ नाम से आई. रिपोर्ट के अनुसार, कोई भी लोकतंत्र स्पष्ट, कुशल और निष्पक्ष प्रशासन के अभाव में सफल नियोजन नहीं कर सकता. इस रिपोर्ट में अनेक सुझाव दिये गये थे, लेकिन उनका क्रियान्वयन नहीं हुआ.
भारत सरकार द्वारा 1952 में केंद्र ने प्रशासनिक सुधारों पर विचार करने के लिये अमेरिकी विशेषज्ञ पॉल एपिलबी की नियुक्ति की थी. उन्होंने ‘भारत में लोक प्रशासन सर्वेक्षण का प्रतिवेदन’ प्रस्तुत किया. इस रिपोर्ट में भी अनेक महत्त्वपूर्ण सुझाव थे, लेकिन इन सुझाव पर भी किसी ने ध्यान नहीं दिया.
स्वाधीनता के 19 वर्ष बाद 1966 में पहला प्रशासनिक सुधार आयोग बना, जिसने 1970 में अपनी अंतिम रिपोर्ट पेश की.
दूसरे प्रशासनिक आयोग का गठन पहले आयोग के गठन के ठीक 39 वर्ष बाद 2005 में कर्नाटक के पूर्व मुख्यमंत्री एम वीरप्पा मोईली की किया गया था.
नौकरशाही में लेटरल एंट्री का पहला स्पष्ट प्रस्ताव 2005 में आया था; लेकिन तब इसे सिरे से खारिज कर दिया गया.
2010 में एम वीरप्पा मोईली की अध्यक्षता में गठित दूसरे प्रशासनिक सुधार आयोग की रिपोर्ट में भी लेटरल एंट्री को लेकर अनुशंसा की गई थी, लेकिन इसे आगे बढ़ाने में आ रही समस्याओं के चलते तत्कालीन सरकार ने इससे हाथ पिछे खींच लिये.
लेटरल एंट्री के माध्यम से होती रही हैं नियुक्तियां
भारत के पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह दिल्ली स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स में अर्थशास्त्र के प्रोफेसर थे. उन्हें 1971 में वाणिज्य और उद्योग मंत्रालय में आर्थिक सलाहकार के तौर पर नियुक्त किया गया था. मनमोहन सिंह को 1972 में वित्त मंत्रालय का मुख्य आर्थिक सलाहकार बनाया गया था और यह पद भारत सरकार के सचिव स्तर का ही होता है.
रघुराम राजन को प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने अपना मुख्य आर्थिक सलाहकार नियुक्त किया था और वे भी संघ लोक सेवा आयोग के माध्यम से चुनकर नहीं आए थे, लेकिन सचिव के स्तर तक पहुंच गए थे. बाद में रघुराम राजन रिजर्व बैंक के गवर्नर बनाए गए थे.
इन्फोसिस के संस्थापकों में से एक नंदन एम निलेकणी आधार कार्ड जारी करने वाली संवैधानिक संस्था UIDAI के चेयरमैन नियुक्त किये गए थे.
NTPC के संस्थापक चेयरमैन डी.वी. कपूर ऊर्जा मंत्रालय में सचिव बने थे.
BSES के CMD आर.वी. शाही भी 2002-07 तक ऊर्जा सचिव रहे.
योजना आयोग के पूर्व उपाध्यक्ष मोंटेक सिंह अहलूवालिया, शंकर आचार्य, राकेश मोहन, अरविंद विरमानी और अशोक देसाई ने भी लेटरल एंट्री के माध्यम से सरकार में जगह बनाई. इसके अलावा न जाने कितने लोगों ने सरकार में लेटरल एंट्री के जरिये अपनी जगह बनाई.