चालू वित्त वर्ष 2023-24 की दूसरी तिमाही (जुलाई- सितंबर 2023) में देश की अर्थव्यवस्था ने शानदार बढ़त दिखाई है। दूसरी तिमाही में भारत की जीडीपी ग्रोथ रेट 7.6 फीसदी रही है। आइए जानते हैं कि यह जीडीपी क्या है, जिसे लेकर इतनी चर्चा हो रही है?
जीडीपी यानी ग्रॉस डोमेस्टिक प्रोडक्ट, जिसे हिंदी में सकल घरेलू उत्पाद कहा जाता है, बताती है कि किसी देश की अर्थव्यवस्था का सूरत ए हाल क्या है। यह कारोबार जगत को यह तय करने में मदद करता है कि कब कारोबार बढ़ाना है और अधिक लोगों को नौकरी पर रखना है और सरकार को यह पता लगाने में मदद करती है कि वह कितना टैक्स जमा कर सकती है और खर्च कर सकती है।
जीडीपी क्या है?
जीडीपी किसी देश में कंपनियों, सरकार और लोगों की सभी गतिविधियों का माप है। अमूमन तिमाही के हिसाब से जीडीपी के आंकड़े जारी किए जाते हैं। जब कोई अर्थव्यवस्था बढ़ रही होती है, तो प्रत्येक तिमाही जीडीपी का आंकड़ा पिछली तिमाही की तुलना में थोड़ा बड़ा होता है। अधिकांश अर्थशास्त्री, राजनेता और कारोबारी लगातार बढ़ती जीडीपी को सही मानते हैं क्योंकि आमतौर पर इसका मतलब है कि लोग अधिक खर्च कर रहे हैं, ज्यादा नौकरियां पैदा हो रही हैं, अधिक टैक्स का भुगतान किया जाता है और लोगों को बेहतर वेतन मिल रहा है।
जब जीडीपी गिरती है, तो इसका मतलब है कि अर्थव्यवस्था कमजोर है – जो कारोबारी और नौकरी पेशा लोगों के लिए बुरी खबर है। यदि जीडीपी लगातार दो तिमाहियों में गिरती है, तो इसे मंदी कहा जाता है।
जीडीपी आम आदमी पर कैसे असर डालती है?
सरकार बढ़ती जीडीपी को सबूत के तौर पर इस्तेमाल कर सकती है कि वह अर्थव्यवस्था के प्रबंधन में अच्छा काम कर रही है। इसी तरह, अगर जीडीपी गिरती है, तो विपक्षी राजनेता कहते हैं कि सरकार इसे बुरी तरह से चला रही है। लेकिन यह सरकार के आर्थिक प्रदर्शन पर एक रिपोर्ट कार्ड से कहीं अधिक है।
यदि जीडीपी लगातार बढ़ रही है, तो लोग टैक्स अधिक भर रहे हैं क्योंकि वे कमा रहे हैं और अधिक खर्च कर रहे हैं। इसका मतलब है कि सरकार सार्वजनिक क्षेत्र में अच्छे से खर्च कर सकती है। सरकारें इस बात पर भी नज़र रखती हैं कि वे अर्थव्यवस्था के आकार के मुताबिक कितना उधार ले सकती हैं।
जीडीपी कैसे मापी जाती है?
जीडीपी को तीन तरीकों से मापा जा सकता है:
आउटपुट: अर्थव्यवस्था के सभी क्षेत्रों – कृषि, विनिर्माण, ऊर्जा, निर्माण, सेवा क्षेत्र और सरकार द्वारा उत्पादित वस्तुओं और सेवाओं का कुल मूल्य
व्यय: आम लोगों और सरकार द्वारा खरीदी गई वस्तुओं और सेवाओं का मूल्य, मशीनरी और इमारतों में निवेश – इसमें निर्यात का मूल्य, घटा आयात भी शामिल रहता है
आय: आय का मूल्य, अधिकतर लाभ और मजदूरी के संदर्भ में।
जीडीपी आंकड़े की सीमाएं क्या हैं?
जीडीपी अर्थव्यवस्था की पूरी कहानी नहीं बताती है। देश की अर्थव्यवस्था का कुछ हिस्सा छिपा भी होता है। मसलन अवैतनिक काम को आधिकारिक आंकड़ों में शामिल नहीं किया जाता है। सकल घरेलू उत्पाद की वृद्धि यह नहीं दिखाती है कि जनसंख्या के बीच आय कैसे विभाजित है। जीडीपी बढ़ रही है, इसका मतलब यह नहीं है कि किसी व्यक्ति के जीवन स्तर में सुधार हो रहा है। यदि किसी देश की जनसंख्या बढ़ती है, तो यह जीडीपी को बढ़ाती है, क्योंकि अधिक लोग अधिक पैसा खर्च करते हैं। लेकिन उस देश के लोग शायद अमीर नहीं हो रहे हों। जीडीपी बढ़ने के बावजूद वे औसतन गरीब हो रहे हों। कुछ आलोचकों का यह भी तर्क है कि जीडीपी इस बात पर ध्यान नहीं देती है कि जिस आर्थिक विकास का आकलन वह करती है वह टिकाऊ है या नहीं।