जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में हुए आतंकवादी हमले ने पाकिस्तान के शेयर बाजार को जबरदस्त झटका दिया है। पाकिस्तान स्टॉक एक्सचेंज के KSE-100 इंडेक्स में लगभग 4 प्रतिशत की गिरावट आई है, वहीं भारत के सेंसेक्स में 1.5 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई है। यह स्थिति यह दिखाती है कि दोनों देशों के बीच तनाव का आर्थिक प्रभाव स्पष्ट रूप से दोनों देशों की शेयर बाजारों पर दिख रहा है और निवेशकों का विश्वास किस दिशा में बढ़ा है।
पाकिस्तान के शेयर बाजार की स्थिति
22 अप्रैल को पहलगाम में हुए आतंकी हमले में 26 निर्दोष लोग मारे गए थे, जिनमें अधिकांश सैलानी थे। इस हमले के लिए पाकिस्तान को जिम्मेदार ठहराया जा रहा है। इकोनॉमिक टाइम्स के मुताबिक, इस हमले के बाद से पाकिस्तान के कराची स्टॉक एक्सचेंज के KSE-100 इंडेक्स में 23 अप्रैल से 5 मई के बीच 3.7 प्रतिशत तक की गिरावट देखी गई।
30 अप्रैल को और अधिक गिरावट
30 अप्रैल को पाकिस्तान के शेयर बाजार की हालत और भी खराब हो गई, जब एक दिन में 3,545 अंकों की गिरावट आई और यह 111,326.57 पर बंद हुआ। इस दिन LUCK, ENGROH, UBL, PPL, और FFC जैसी प्रमुख कंपनियों के शेयरों में भारी बिकवाली देखने को मिली। इन कंपनियों के शेयरों में गिरावट ने KSE-100 इंडेक्स को 1,100 अंक तक नीचे खींच लिया।
2 मई को थोड़ी रिकवरी
2 मई को बाजार में 2.5 प्रतिशत की थोड़ी बहुत रिकवरी देखने को मिली, लेकिन विशेषज्ञों का मानना है कि यह सुधार अस्थायी है और जल्दी ही समाप्त हो सकता है। उनका कहना है कि जब तक सीमा पर तनाव में कमी नहीं आती, तब तक बाजार में स्थिरता की कोई उम्मीद नहीं है।
भारत के शेयर बाजार की स्थिति
इसके विपरीत, भारत का BSE सेंसेक्स भू-राजनीतिक तनाव के बावजूद 1.5 प्रतिशत बढ़ा है। ब्रोकरेज फर्म आनंद राठी का कहना है कि 2001 में संसद पर हुए हमले के अलावा, पाकिस्तान के साथ तनाव के दौरान भारतीय शेयर बाजार में कभी भी 2 प्रतिशत से ज्यादा की गिरावट नहीं आई। उनका यह भी कहना है कि अगर स्थिति और बिगड़ती है, तो भी निफ्टी 50 में 5 से 10 प्रतिशत से ज्यादा की गिरावट की संभावना नहीं है।
पाकिस्तान की आर्थिक स्थिति पर चेतावनी
ग्लोबल रेटिंग एजेंसी मूडीज ने भी पाकिस्तान को चेतावनी दी है कि भारत के साथ टकराव पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था पर नकारात्मक प्रभाव डाल सकता है। मूडीज का कहना है कि अगर तनाव लंबे समय तक जारी रहता है, तो पाकिस्तान को मिलने वाली विदेशी सहायता में रुकावट आ सकती है, जिससे उसके विदेशी मुद्रा भंडार पर दबाव बढ़ सकता है।