प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी तीन देशों के दौरे पर रवाना हो रहे हैं। इस दौरान वह तीन दिन अमेरिका का दौरा भी करेंगे। ट्रंप के अमेरिकी राष्ट्रपति बनने के बाद मोदी की पहली अमेरिकी यात्रा पर बहुत सी निगाहें टिकी हैं और इन निगाहों में उम्मीदें भी बहुत हैं। चार ऐसे बड़े मुद्दे हैं जिन पर मोदी और ट्रंप की मुलाकात के दौरान बातचीत हो सकती है। हालांकि पिछली बार जिस तरह से मोदी का स्वागत हुआ था उस तरह की उम्मीद करना इस बार शायद बेमानी होगी क्योकि वहां इस बार सरकार भी दूसरी है और सत्ता में आसीन व्यक्ति भी दूसरा है।
शनिवार 24 मई को एपीएन न्यूज के खास कार्यक्रम मुद्दा में दो अहम विषयों पर चर्चा हुई। इस अहम मुद्दे पर चर्चा के लिए विभिन्न क्षेत्रों के विशेषज्ञ शामिल थे। इन लोगों में गोविंद पंत राजू (सलाहकार संपादक एपीएन न्यूज) व जे के त्रिपाठी ( विदेश मामलों के जानकार) शामिल थे।
जे के त्रिपाठी ने कहा कि दूसरी पार्टी की सरकार आयी है। 2 साल तक ओबामा के साथ हमारे रिश्ते मजबूती के साथ बढ़े थे और हमें यह नही उम्मीद करना चाहिए कि दूसरी पार्टी की जो सरकार आयी है वह तुरंत के तुरंत उसी विरासत को आगे बढ़ायेगी। पिछली बार के भव्य कार्यक्रम की तरह इस बार कोई उम्मीद नही है। वह मोदी की पहली यात्रा थी उसमें मोदी को दिखाना था कि हम क्या है, हमारी नीतियां क्या है। चीन पर भारत के अमेरिका से मिलने का कोई खास असर नही पड़ेगा और ऐसा नही है कि रातों-रात वह हमसे डरने लगेगा ।
गोविंद पंत राजू ने कहा कि अमेरिका की जैसा राजनीतिक व्यवस्था है उसमें राजनीतिक पार्टी की जो राष्ट्रीय नीतियां है उसकी भूमिका बहुत बड़ी होती है और अक्सर देखा गया है कि जब भी सत्ता परिवर्तन होता है तो नये राष्ट्रपति की जो अपनी प्राथमिकतायें है अपनी जो उसकी पसंद-नापसंद है उस पर जो अमरीकी नीतियां है उसका असर दिखाई देता है। ट्रंप के आने के बाद भारत के प्रति अमेरिका की जो नर्म नीति थी भारत के प्रति जो दोस्ताना नीति थी वह उन मायने में और देशों के प्रति अलग देख सकते हैं। नरेन्द्र मोदी एक कुशल राजनयिक हैं और अपनी बात को वह बेहतर ढंग से रखना जानते हैं। इसलिए हमको उम्मीद करना चाहिए कि ट्रंप की तमाम कड़वाहटों के बाद भी, उनकी तमाम अविश्वसनियताओं के बावजूद भी इस समझौते में भारत सफल रहेगा।
राजनीतिक रोजा इफ्तार की राजनीति
मुद्दा के दूसरे हिस्से में रोजा इफ्तार के मसले पर चर्चा हुई। इस अहम मुद्दे पर चर्चा के लिए भी विभिन्न क्षेत्रों के विशेषज्ञ शामिल थे। इन लोगों में गोविंद पंत राजू, शलभ मणि त्रिपाठी ( प्रवक्ता,यूपी बीजेपी), शहजाद पूनावाला (नेता कांग्रेस), बुक्कल नवाब (MLC,सपा) व अतुल अंजान (नेता,सीपीआई) शामिल थे।
रमजान का महीना खत्म होने को है और इसी के साथ राजनीतिक रोजा इफ्तार पर ग्रहण के संकेत भी मिलने लगे हैं। राजनीति में रोजा इफ्तार की एक समय अहमियत काफी बढ़ गयी थी और इसे राजनीतिक गिले शिकवे भुलाने के तौर पर भी देखा जाने लगा था। हालांकि करीब चार दशक पहले शुरू हुई राजनीतिक इफ्तार की राजनीति को तुष्टिकरण की राजनीति का नाम भी दिया गया।
शलभ मणि त्रिपाठी ने कहा कि धर्म एक बहुत ही व्यक्तिगत चीज है जिसको लगता है कि उनको इफ्तार पार्टी देनी चाहिए उनको जितना हक इफ्तार पार्टी देने का है उतना ही हक उनको है जो नही देना चाहते। इससे पहले भी तमाम बार ये सवाल उठते रहे हैं कि प्रधानमंत्री आवास में होली मिलन समारोह क्यों नही दी जाती। फलहारी के कार्यक्रम क्यों नही हुए तो ये बहुत ही व्यक्तिगत सवाल हैं।
अतुल अंजान ने कहा कि बीजेपी और आरएसएस के लोग इफ्तार को धर्म से जोड़कर उन्माद की तरफ ले जाना चाहते हैं। पिछले साल इफ्तार करना आरएसएस के लिए बहुत जरुरी था इस बार आरएसएस के लिए जरुरी नही है। ये पाखंड ही नही पैदा कर रहे ये एक ऐसा धार्मिक उन्माद पैदा करने का हथियार बना रहे जो समाज और संविधान दोनों के लिए उचित नही है।
शहजाद पूनावाला ने कहा कि अखलाक को मारा जाता है तो मोदी जी एक ट्वीट नही करते जबकि यूके में कोई आतंकवादी घटना होती है तो उसको वो बोलते हैं। इफ्तार में नही गये इससे ज्यादा दिक्कत मोदी जी जो ‘सबका साथ सबका विकास’ की बात करते हैं उस पर खरे नही उतर पाते।
गोविंद पंत राजू ने कहा कि अगर यूपी की बात करुं तो राजनीतिक दलों की जितनी भी रोजा इफ्तार का सम्मेलन होता है वह नि:संदेह राजनीति से प्रेरित होता है और उनका मकसद कोई धार्मिक भाईचारा दिखाने जैसी कोई बात नही होती।