रक्षाबंधन 22 अगस्त को है। रक्षाबंधन भाई – बहन के रिश्ते की सुंदरता को बयां करता है। रक्षाबंधन हिंदू धर्म के उन त्योहारों में शुमार है, जो अपने आप में पौराणिक और ऐतिहासिक महत्व को समेटे हुए हैं। यही वह दिन होता है जब भाई को बहन की और बहन को भाई की कमी खलती है। यह त्योहार दोनों के रिश्ते का प्रतीक है।
रक्षबंधन पर हर भाई की सूनी कलाई रेशमी धागे का इंतजार करती है। वहीं बहन क्यों ने दूर दराज शहरों में रहती हो लेकिन भाई के पास राखी के दिन पहुंच ही जाती है। भाई भी अपनी प्यारी बहना के पास राखी का उपहार लेकर पहुंच जाता है। इस त्योहार को लेकर कई पौराणिक और ऐतिहासिक महत्व है।
इस तरह हुई थी शुरुआत
कहते हैं राजा बलि ने यज्ञ संपन्न कर स्वर्ग पर अधिकार जमाने की कोशिश की थी। बलि की तपस्या से घबराए देवराज इंद्र ने भगवान विष्णु से प्रार्थना की। विष्णुजी वामन ब्राम्हण का रूप रखकर राजा बलि से भिक्षा अर्चन के लिए पहुंचे। गुरु शुक्राचार्य के मना करने पर भी बलि अपने संकल्प को नहीं छोड़ा और तीन पग भूमि दान कर दी। वामन भगवान ने तीन पग में आकाश-पाताल और धरती नाप कर राजा बलि को रसातल में भेज दिया। बलि भक्ति के बल पर विष्णुजी से हर समय अपने सामने रहने का वचन ले लिया। इससे लक्ष्मीजी चिंतित हो गईं। नारद के कहने पर लक्ष्मीजी बलि के पास गई और रक्षासूत्र बांधकर उसे अपना भाई बनाया और संकल्प में बलि से विष्णुजी को अपने साथ ले आईं। उसी समय से राखी बांधने का क्रम शुरु हुआ जो आज भी अनवरत जारी है।
वहीं दूसरी कहानी यह कहती है कि, जब देवों और दानवों के बीच संग्राम हुआ और दानव विजय की ओर अग्रसर थे तो यह देख कर राजा इंद्र बेहद परेशान थे। इंद्र को परेशान देखकर उनकी इंद्राणी ने भगवान की अराधना की। उनकी पूजा से प्रसन्न हो भगवान ने उन्हें मंत्रयुक्त धागा दिया। इस धागे को इंद्राणी ने इंद्र की कलाई पर बांध दिया और इंद्र को विजय मिली। इस धागे को रक्षासूत्र का नाम दिया गया और बाद में यही रक्षा सूत्र रक्षाबंधन हो गया।
इसी तरह रक्षाबंधन को लेकर कई कहानियां हैं इसमें से कौन सी कहानी सबसे सच्ची है इस मुद्दे पर अभी भी कुछ साफ नहीं हो पाया है। जो भी हो यह दिन भाई बहन के लिए काफी खास है।
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