माघ माह की शुक्ल पंचमी को बसंत पंचमी कहते हैं और इसी दिन से बसंत ऋतु की शुरुआत हो जाती है। बसंत पंचमी को मां सरस्वती का दिन माना जाता है। इस दिन ज्ञान की देवी मां सरस्वती की विशेष पूजा अर्चना भी की जाती है। इस बार बसंत पंचमी का पर्व 16 फरवरी को मनाया जा रहा है। तरह-तरह के फूलों से धरती सज जाती है। खेतों में सरसों के पीले फूलों की चादर बिछी होती है। चारो तरफ का रंग पीला ही दिखता है।
बसंत पंचमी को विद्या और बुद्धि की देवी मां सरस्वती की पूजा की जाती है। पुराणों में वर्णित एक कथा के मुताबिक भगवान श्रीकृष्ण ने देवी सरस्वती से खुश होकर उन्हें वरदान दिया था कि बसंत पंचमी के दिन तुम्हारी आराधना की जाएगी।
बसंत पंचमी में विवाह, निर्माण और अन्य शुभ कार्य किए जा सकते हैं। ऋतुओं के इस संधिकाल में ज्ञान और विज्ञान दोनों का वरदान मिलता है। संगीत कला और आध्यात्म का आशीर्वाद भी इस काल में लिया जा सकता है।
सरस्वती वंदना

या कुन्देन्दुतुषारहारधवला
या शुभ्रवस्त्रावृता
या वीणावरदण्डमण्डितकरा
या श्वेतपद्मासना।
या ब्रह्माच्युतशंकरप्रभृतिभिर्देवैः सदा वन्दिता
सा मां पातु सरस्वती भगवती निःशेषजाड्यापहा ॥
सरस्वती वंदना गीत

वर दे, वीणावादिनि वर दे !
प्रिय स्वतंत्र-रव अमृत-मंत्र नव
भारत में भर दे !
काट अंध-उर के बंधन-स्तर
बहा जननि, ज्योतिर्मय निर्झर;
कलुष-भेद-तम हर प्रकाश भर
जगमग जग कर दे !
नव गति, नव लय, ताल-छंद नव
नवल कंठ, नव जलद-मन्द्ररव;
नव नभ के नव विहग-वृंद को
नव पर, नव स्वर दे !
वर दे, वीणावादिनि वर दे।
– सूर्यकांत त्रिपाठी “निराला”
मां सरस्वती की आरती
ॐ जय सरस्वती माता, जय जय सरस्वती माता।
सद्गुण वैभव शालिनी, त्रिभुवन विख्याता॥ ॐ जय..
चंद्रवदनि पद्मासिनी, ध्रुति मंगलकारी।
सोहें शुभ हंस सवारी, अतुल तेजधारी ॥ ॐ जय..
बाएं कर में वीणा, दाएं कर में माला।
शीश मुकुट मणी सोहें, गल मोतियन माला ॥ ॐ जय..
देवी शरण जो आएं, उनका उद्धार किया।
पैठी मंथरा दासी, रावण संहार किया ॥ ॐ जय..
विद्या ज्ञान प्रदायिनी, ज्ञान प्रकाश भरो।
मोह, अज्ञान, तिमिर का जग से नाश करो ॥ ॐ जय..
धूप, दीप, फल, मेवा मां स्वीकार करो।
ज्ञानचक्षु दे माता, जग निस्तार करो ॥ ॐ जय..
मां सरस्वती की आरती जो कोई जन गावें।
हितकारी, सुखकारी, ज्ञान भक्ती पावें ॥ ॐ जय..
जय सरस्वती माता, जय जय सरस्वती माता।
सद्गुण वैभव शालिनी, त्रिभुवन विख्याता॥ ॐ जय..
ॐ जय सरस्वती माता, जय जय सरस्वती माता ।
सद्गुण वैभव शालिनी, त्रिभुवन विख्याता॥ ॐ जय..