राजनेताओं की उपेक्षा झेल रहे सहारनपुर की बेहट विधानसभा के दो गांवों ने एक बार फिर चुनाव बहिष्कार का मन बना लिया है। दोनों गांव के ग्रामीणों ने पंचायत कर न सिर्फ चुनाव बहिष्कार का फैसला लिया है, बल्कि वोट की आस से आने वाले नेताओ के गांव में घुसने पर भी प्रतिबंध लगा दिया है। ग्रामीणों का आरोप है, कि नेता चुनाव के समय में वोट मांगने तो आते हैं लेकिन चुनाव के बाद कोई भी नेता विकास पर ध्यान नहीं देता है। गांव और आस-पास के क्षेत्र की टूटी हुई सड़के इसका जीता जागता उदहारण है। इसी वजह से ग्रामीणों ने ” विकास नहीं तो ,वोट नहीं ” का फैसला लिया है। 2014 में बेहट विधानसभा के दो गांव पहले भी चुनाव का बहिष्कार कर चुके हैं। जिसके चलते कांग्रेस प्रत्याशी को महज 350 वोट से हार का मुँह देखना पड़ा था। यही वजह है कि एक बार फिर गांव के लोगों ने चुनाव बहिष्कार का मन बनाया है।
इसे कुदरत की नियति कहे या फिर राजनेताओ की उपेक्षा। बहरहाल जो भी हो, बेहट विधानसभा क्षेत्र के दो गांव नरकीय जीवन जीने को मजबूर हैं। हुसैन मलकपुर और शाहपुर दो गांव बरसाती नदियों से घिरे हुए है। इन दोनों गावों के चारों ओर नादियां गुजरती है। बरसात के मौसम में पानी का भराव इतना हो जाता है,कि दोनो गाँवो का सम्पर्क तहसील बेहट और जिला मुख्यालय से कट जाता है। ग्रामीणों के मुताबिक वे कई बार नदी पर पुल बनवाने और गांव में विकास कराने की मांग को लेकर जनप्रतिनिधियों से मिल चुके हैं, लेकिन उनकी मांग पूरी नहीं की जाती है।
फ़िरोज़ाबाद के सिरसागंज विधानसभा क्षेत्र में भी ग्रामीण विधानसभा चुनाव का बहिष्कार कर रहे है। आजादी से बाद इस गाँव में विकास के नाम पर एक ईंट भी नहीं रखवाई गयी है। यह तो सिर्फ उदाहरण है। उत्तर प्रदेश के ऐसे कई क्षेत्र है, जहाँ सरकार का कोई भी प्रतिनिधि जीतने के बाद जाना उचित नहीं समझता। यही वजह है कि 2017 विधानसभा चुनाव में यूपी के कई क्षेत्रों ने चुनाव बहिष्कार का फैसला लिया है।