मिड डे मील मिले या न मिले उसकी गुणवत्ता चाहे जैसी हो लेकिन उत्तराखंड के नौनिहाल अब मील को ग्रहण करने के पहले भोजन मंत्र पढ़ते नजर आएंगे। त्रिवेंद्र सिंह रावत सरकार इसकी तैयारी में है। उत्तराखंड स्कूल शिक्षा विभाग से इससे संबंधित दिशा निर्देश लागू होने के बाद प्रदेश के 18,000 स्कूलों के करीब 12 लाख बच्चों को मिड-डे मील मुंह में डालने से पहले अपने मुखारविंद से भोजन मंत्र का जाप करना होगा। यह मंत्र संस्कृत में होगा जिसे सभी स्कूलों की रसोई की दीवारों पर लिखवाने की भी तैयारी है। शिक्षा मंत्री अरविंद पाण्डेय ने बाकायदा इसके निर्देश विभाग को दे दिये हैं। जिसमें भोजन मंत्र के साथ ही गायत्री मंत्र जाप करने की बात कही गई है।
हरीश रावत ने पूछा कब सुधरेगी गुणवत्ता ?
राज्य सरकार के इस फैसले पर कांग्रेस ने तंज कसे हैं।पूर्व मुख्यमंत्री और कांग्रेस नेता हरीश रावत ने पलटवार किया। त्रिवेंद्र सिंह रावत की सरकार को उत्तराखंड के खस्ताहाल स्कूलों की हालत सुधारने के साथ ही शिक्षा की गुणवत्ता पर ध्यान देने की नसीहत दी।
बीजेपी बोली, कुछ भी गलत नहीं
मंत्र जाप और सरस्वती वंदना पर कांग्रेस की बौखलाहट के जवाब में उत्तराखंड बीजेपी अध्यक्ष अजय भट्ट ने पलटवार किया। कांग्रेस को याद दिलाने में कोई कसर नहीं छोड़ी कि, देश के कई स्कूलों में दिन की शुरुआत सरस्वती वंदना से होती है।जबकि, भोजन मंत्र का जाप एक बेहतरीन शुरुआत है।
उत्तराखंड के 18,000 स्कूलों के 12 लाख बच्चों पर होगा लागू
दरअसल, जुलाई के पहले सप्ताह में शिक्षा विभाग की एक समीक्षा बैठक में उत्तराखंड के शिक्षा मंत्री अरविंद पांडेय और अन्य पदाधिकारियों ने इसके बारे में सुझाव दिये थे।शिक्षा विभाग के निदेशक आरके कुंवर के मुताबिक शिक्षा मंत्री और अन्य कई पदाधिकारियों ने शिक्षा विभाग को ये सुझाव दिया था कि मध्याह्न भोजन से पहले स्कूलों में भोजन मंत्र का जाप अवश्य हो।उस समीक्षा बैठक के दौरान कई फैसले लिए गए, जिसमें योग अभ्यास को भी दैनिक पाठ्यक्रम में शामिल करने के साथ-साथ बच्चों को देश के महान नेताओं के बारे में भी जानकारी देने की बात कही गई।
सरस्वती वंदना के भी निर्देश !
खबर तो ये भी है कि, स्कूलों में गायत्री मंत्र या सरस्वती वंदना से पढ़ाई की शुरुआत होगी। कुमाऊं और गढ़वाल क्षेत्र के स्कूलों में कुमाऊंनी और गढ़वाली भाषा में प्रार्थना किये जाने की चर्चा है। मंत्रों और वंदनाओं पर राजनीति का और बढ़ना तय है इसके जरिए बच्चे अपनी परंपरा और संस्कृति को समझेंगे।