राजीव रंजन, मुंबई।
Maharashtra Politics: शिवसेना की स्थापना को 56 साल पूरे हो गए हैं लेकिन जहां शिवसेना राजनीतिक दल को पूरे परिपक्व तौर पर महाराष्ट्र की सीमाओं से आगे निकाल कर देश की राजनीतिक पृष्ठभूमि पर राजनीति करना चाहती थी। वह अब अपनी ही जमीन पर नियंत्रण खो रही है क्योंकि अब पार्टी को निष्ठावान कार्यकर्ता छोड़ कर जा रहे हैं।
शिवसेना में विखंडन का चौथा अध्याय एकनाथ शिंदे के जरिए लिखा गया था जो शिवसेना के उस बुढ़ापे को उजागर कर गया, जो पुत्रमोह में पड़कर सही और गलत का फैसला नहीं कर सका। एकनाथ शिंदे पार्टी से तो निकल गए और उन्होंने पार्टी छोड़ने के बाद कई कारण जनता को बताएं, जैसे विधानसभा में विश्वास मत के दौरान उद्धव ठाकरे के कार्यकाल में हो रहे पक्षपात को तो उजागर किया लेकिन हिन्दू हृदय सम्राट बाला साहेब ठाकरे को याद करते हुए कुछ भी उजागर करना उचित नहीं समझा।
Maharashtra Politics: पूर्व मुख्यमंत्री के चिरंजीवी जो पहली बार में बने विधायक
लेकिन सभी जानते हैं कि यह सभी बातें छुपने वाली नहीं हैं, किसी न किसी तरीकों से यह सभी के सामने आती रहेंगी। हाल ही में एक ऐसा ही तथ्य सामने आया है। पूर्व मुख्यमंत्री के चिरंजीवी जो पहली ही बार में विधायक बने और मंत्रीपद का भी कार्यभार संभाल लिया। यह बात एकनाथ शिंदे गुट के नेताओं के जरिए सामने लाई गई है। चिरंजीवी शिवसेना के उनमंत्रियों के कार्यक्षेत्र में दखल देते थे, जिनका खुद का जनाधार था। जो वास्तव में जनता के हित में काम कर रहे थे। उनकी जनता और संगठन के बीच पहुंच बढ़ रही थी।
एकनाथ शिंदे मुबई से समीप ठाणे जिले के कोपरी पांचपखाडी से चौथी बार विधानसभा में पहुंचे हैं। वह आनंद दिघे के परम शिष्य के रूप में जाने जाते हैं। उन्होंने ठाणे और समीपवर्ती जिले पालघर, रायगढ, कल्याण में पार्टी को बढानें में भरपूर सहयोग दिया है लेकिन चिंरजीवी का हस्तक्षेप निश्चय ही बाला साहेब और आनंद दिघे को आदर्श मानने वाले शिष्य को नागवारा गुजरा और नतीजा सामने आया कि विधायकों का एक बड़ा खेमा सामने से निकल कर चल दिया।
क्या उद्धव ठाकरे बूढ़े राजा की भांति पुत्र मोह में काम करते रहें?
विधायकों की नाराजगी को मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे समझ नहीं सके, या समझते हुए एक बूढ़े राजा की भांति अपने पुत्र मोह में काम करते रहें। यहीं से पार्टी का बुढ़ापा सामने आने लगा जब पार्टी में सक्षम, समर्थवान और पार्टी के प्रति निष्ठा रखने वाले कार्यकर्ताओं को दरकिनार करके उनको आगे किया गया जो बुजुर्ग और बीमार हो रहे राजा के आगे अपनी भलाई दिखाते रहे और जो भले ही पार्टी के हित में ना हो।
विखंडन का चौथा चरण और मूक दर्शक शिव सेना अध्यक्ष
एकनाथ शिंदे का पार्टी से अलग होना शिवसेना के कार्यकाल में तब तक हुआ, जब शिवसेना दशकों से प्रयासरत रहकर मुख्यमंत्री का पद अपने पाले में कर चुकी थी, यानी महाराष्ट्र के शीर्ष सत्ता पर काबिज थी। इससे पहले छगन भुजबल (Chhagan Bhujbal ) 1991 के दिसंबर महीने में मनोहर जोशी के पार्टी में बढ़ते वर्चस्व से नाराज होकर 17 विधायकों का साथ लेकर पार्टी को छोड़ा और शिवसेना (भुजबल) की स्थापना करने के लिए तत्कालिक विधानसभा अध्यक्ष को पत्र भी दे दिया।
जब शिवसेना के 60 विधायकों में से 40 को नारायण राणे लेकर निकल गए
लेकिन कुछ विधायकों को वापस जाने पर बाला साहेब के कड़े रुख और भुजबल का पार्टी विरोधी गतिविधियों में शामिल होने से निकाले जाने से छगन भुजबल को एनसीपी का दामन छोड़ना पड़ा। दूसरा विखंडन नारायण राणे के जरिए साल जुलाई 2005 में किया गया। तब 60 विधायकों में 40 को लेकर नारायण राणे निकल गए। तब कारण था कि बाला साहेब ठाकरे के जरिए उद्धव ठाकरे को बढ़ावा दिया जा रहा था। हालांकि बाला साहेब के कारण पार्टी में 28 विधायक वापस और महज 12 विधायक ही नारायण राणे के जरिए कांग्रेस में शामिल हुए थे। इन दोनों घटनाओं के दौरान शिवसेना और शिवसैनिकों का उग्र रुप कई बार मुंबई सहित सेना छोड़कर बाहर निकले इलाकों में देखा भी गया। उस समय शिव सेना को युवा और उग्र रुप माना गया था।
साल 2006 में जब राज ठाकरे अपनी महत्वाकांक्षा पूरा ना होते देख पार्टी से निकले तो शिव सैनिकों में कोई उग्रता नहीं थी। बल्कि एक संवेदना ही साथ रही, राज ठाकरे ने पार्टी से किसी विधायक या नेता को साथ नहीं लिया। हालांकि कलांतर में कई शिव सैनिक दल छोड़कर राज ठाकरे की महाराष्ट्र नव निर्माण सेना में शामिल हुए लेकिन शिव सैनिकों का कोई उग्र रूप पार्टी छोड़ने वालों के लिए नहीं आया।
बागी विधायकों को लेकर शिव सैनिकों में नहीं दिखी कोई उत्तेजना
हाल में जब एकनाथ शिंदे के साथ जाने वाले विधायकों को पहले धमकी तो दी गई। लेकिन शिव सैनिकों की तरफ से ना ही कोई उत्तेजना दिखाई दी गई ना ही कोई उग्रता। शिवसेना अध्यक्ष ने जरूर जिला अध्यक्षों को बुलाकर आगे के लिए अपने कार्यक्रमों की रुपरेखा तय की। लेकिन शिव सेना के वरिष्ठ नेता के मुताबिक- “अब वो वक्त नहीं है कि सड़कों पर उतरा जाए, अब शिव सेना का स्वरुप पहले वाला नहीं है।”
Maharashtra politics: शिवसेना बस लाज बचाने के लिए बयानों का ले रही है सहारा
आखिर 56 साल हो गए हैं, इस दल के, कार्यकर्ताओं की भी उम्र हो गई है जिससे ये सब शोभा नहीं देती। “जाहिर है भले ही पार्टी के लोग कुछ साफ- साफ नहीं कह सके हैं लेकिन यह स्पष्ट हो गया है कि अब शिवसेना कुछ विशेष करने के बजाए महज बस अपनी लाज बचाने के लिए बयानों का सहारा ले रही है ताकि शायद इससे वह आगे कुछ कर सके। लेकिन इस संगठन की एक शाखा युवा सेना भी है, पर युवा सेना भी शांति से राजनीति के हर कदम को महज एक दर्शक की भांति देख रही है।
Maharashtra politics: बागी विधायकों से आदित्य ठाकरे का सवाल- आप तो हमारे घर पर आते रहे हैं खाना भी खाते रहे तो?
मुंबई जहां की महानगरपालिका पर शिवसेना दो- तीन दशक से ज्यादा समय से काबिज है। मुंबई के विधायकों ने भी शिवसेना से बाहर निकल कर एकनाथ शिदे को साथ देने में कोई संकोच नहीं किया। विशेष अधिवेशन के दौरान मागोठाणे के विधायक प्रकाश सुर्वे से आमना सामना होने पर आदित्य ठाकरे ने पूछ ही लिया कि – “आप तो हमेशा से साथ रहे हैं, हमारे घर पर आते रहे हैं खाना भी खाते रहे हैं, हमने आपके विधान सभा क्षेत्र के लिए फंड भी मुहैया कराई, लेकिन आप क्यों साथ छोड़ गए, ये ठीक नही किया।” हलांकि प्रकाश सुर्वे इस बात पर कुछ नहीं बोल सकें। तभी एकनाथ शिंदे गुट भी सामने आया। शिवसेना के कद्दावर नेता प्रताप सरनाईक उद्धव ठाकरे गुट के जरिए बाहर निकले शिव सैनिकों को अलग- अलग नाम से बुलाए जाने पर नाराजगी जाहिर की गई।
Maharashtra politics: बागी विधायकों से मिलने पर शिव सैनिकों ने लगाए रिक्शेवाला के नारे
एकनाथ शिंदे को रिक्शेवाला, गुलाब राव पाटिल को पान वाला कहे जाने पर प्रताप सरनाइक ने विरोध जताते हुए कहा कि – “अफसोस होता है कि इस दल के साथ मैंने अपने 22 साल दिए, शिवसेना की खीझ अब सामने आ रही है इसलिए मुख्यमंत्री को रिक्शेवाला और अन्य सदस्य को इस तरह की नामकरण किया जा रहा है। अब असली शिवसेना उद्धव ठाकरे के पास ना होकर एकनाथ शिंदे के साथ है और रहेगी। हमने बाला साहब ठाकरे के आदेशों को माना है आनंत दिघे के बताए रास्ते पर चले हैं और आगे भी चलेंगे। अब उद्धव गुट जो अपने आप को शिव सेना कह रही है उसमें अब वो बल नहीं रहा, वह हाथ से सब कुछ निकलता देख झुझलाहट में हैं।
शिवसेना में एक और बिखराव आएगा?
इन सभी बतों ने ये तो जाहिर कर दिया है कि शिवसेना में ना तो वो धार है और ना ही वो तीव्रता जिससे अपने बिछड़ों को वापस लाया जा सके। हालांकि विश्वास मतदान के दौरान शिवसेना से कई नेताओं ने बागी नेताओं पर अपने शब्द बाण को चलाया। लेकिन अब यह भी चर्चा हो रही है कि शिवसेना में एक और बिखराव आएगा, जिसे झेलना शिवसेना के लिए बड़ा मुश्किल होगा। क्योंकि उनका अपने आप को राष्ट्रीय पार्टी के रूप में स्थापित करने का मंसूबा भी बिखरता नजर आ रहा है।
अब आगे की लड़ाई शिव सेना पर काबिज होने के लिए दोनों गुटों में है, जिसका फैसला यथा शीघ्र नजर नहीं आने वाला। मौजूदा अध्यक्ष कहीं पार्टी की पहचान और निशान भी न खो दें ये डर उन्हें बराबार सता रहा है। शिव सेना को डर है कि सरकार में सहयोगी रही कांग्रेस पार्टी से साथ हो चुके 1969 में कांग्रेस कामराज दल और कांग्रेस इंदिरा दल की तरह ना हो जाए। सालों से गर्व कर रहे शिवसेना को अपने चुनाव और पार्टी के निशान तीर धनुष पर भी ग्रहण नजर आने लगे हैं।
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