इलाहाबाद हाईकोर्ट ने मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ, महेश खेमका और कई अन्य के विरुद्ध अभियोग चलाने के आदेश को सत्र न्यायालय गोरखपुर द्वारा रद्द करने के खिलाफ दायर याचिका पर अपना फैसला सुरक्षित रख लिया है।
न्यायमूर्ति वी के नारायण ने रशीद खान और अन्य की याचिका पर सुनवाई की। महाधिवक्ता राघवेंद्र सिंह ने याचिका की पोषणीयता पर आपत्ती जताई और कहा कि पुलिस की चार्जशीट दाखिल होने के बाद शिकायतकर्ता को कोई अधिकार नही है।
बता दें कि योगी आदित्यनाथ और 6 अन्य पर 2007 में गोरखपुर दंगे के दौरान लोगों को भड़काने और दरगाह जलाने का आरोप लगाया गया है। दरगाह के मैनेजर राशिद खान ने याचिका दाखिल की है। 28 जनवरी 2007 को गोरखपुर में प्राथमिकी दर्ज करायी गयी जिसमें उस वक्त के सांसद योगी आदित्यनाथ और 6 अन्य पर दरगाह जलाने के साथ कैश लूटने का भी आरोप लगाया गया है।
पुलिस ने चार्जशीट दाखिल की और 22 दिसंबर 2009 को सीजेएम ने इसका संज्ञान लिया और योगी आदित्यनाथ और 6 अन्य के खिलाफ ट्रायल चलाने का आदेश दिया। इस आदेश को मामले में एक आरोपी महेश खेमका ने एडीजे गोरखपुर की अदालत में चुनौती दी। एडीजे ने मजिस्ट्रेट के ट्रायल चलाने आदेश को रद्द कर दिया। इसी आदेश के खिलाफ हाईकोर्ट में याचिका दायर की गई है।
सीएम योगी के खिलाफ दंगा भड़काने, भीड़ को उकसाने और धार्मिक स्थल पर तोड़फोड़ कराने की साजिश रचने का आरोप है और उनके खिलाफ दो मामले हैं। साम्प्रदायिक आधार पर समाज को बांटने के लिए आईपीसी की धारा 153 A भी लगाई गई है। इस धारा के तहत किसी के खिलाफ भी केस चलाने के लिए सरकार की मंजूरी जरुरी होती है। सरकार ने मुकदमा चलाने की मंजूरी नहीं दी है। योगी सरकार ने इसी साल मई महीने में मुकदमा चलाने की मांग ठुकरा दी थी। इसके खिलाफ दो अलग-अलग अर्जियां इलाहाबाद हाईकोर्ट में दाखिल की गईं हैं।