कल मैं उज्जैन के सेवाधाम में था। इसे सुधीर गोयल 20-22 साल से चला रहे हैं। यहां लगभग 500 बच्चे, औरतें, जवान और बूढ़े रहते हैं। इनमें से कई विकलांग हैं, अंधे, बहरे, लूले-लंगड़े, लकवाग्रस्त! कुछ परित्यक्त महिलाएं और अभिशप्त लोग भी यहां रहते हैं। सुधीरजी इन सब लोगों के लिए भोजन, निवास, कपड़े, दवा, शिक्षा, खेल-कूद आदि का सारा इंतजाम करते हैं। इस आश्रम के पहले अध्यक्ष प्रसिद्ध कवि डा. शिवमंगल सिंह सुमन थे। सुमनजी के बाद सुधीर के आग्रह पर मुझे अध्यक्षता संभालनी पड़ी। उस समय सिर्फ 74 लोग यहां रहते थे लेकिन हालत इतनी खराब थी कि सुधीर की माताजी का कहना था कि इसे बंद ही क्यों नहीं कर देते? लोगों का पेट भरने के लिए रोज उधार लेना पड़ता था। जो रोगी मर जाते थे, उनकी अंत्येष्टि भी मुश्किल से हो पाती थी लेकिन फिर इंदौर के कुछ धनाढ्य लोगों की एक बैठक मैंने बुलाई और उनसे कहा कि आप सब एक बार उज्जैन के पास स्थित अंबोदिया नामक इस सेवाधाम में सिर्फ दाल-बाटी खाने पधारें।
सुधीर से मैंने कहा कि तुम किसी से दान के लिए बिल्कुल मत कहना। सब लोग आए। कमाल यह हुआ कि उन अपंग लोगों की देखभाल और सेवा देख कर लोग ऐसे रोमांचित हुए कि लाखों रु. का दान एकदम आ गया। उसके पहले तक सुधीर की पत्नी, दो बेटियां और सारे अपंग लोग वहां झोपड़ों में ही रहते थे। पहले-पहल इंद्रदेवजी आर्य ने सेवाधाम का सीमेंट का बड़ा द्वार-बनवाया था- महर्षि दयानंद द्वार- और मेरे पिता जगदीशप्रसादजी वैदिक ने एक मारुति वेन भी दे दी थी ताकि सुधीर सड़कों पर सड़ रहे लोगों को कंधों और सायकिलों पर नहीं, वेन में लिटा कर सेवाधाम ले आया करे।
आज सेवाधाम के 500 आवासी सीमेंट के पक्के भवनों में रहते हैं। सबके लिए साफ-सुथरे बिस्तर और पलंग लगे हुए हैं। सबको उत्तम भोजन मिलता है। अपंग बच्चों के लिए विशेष इलाज और कसरत का प्रबंध है। अब इस सेवाधाम को मांगे बिना ही करोड़ों रु. दान में मिलते हैं। मुंबई के गिरीश शाह और जयेश भाई का विशेष योगदान है। कश्मीर से केरल तक के लोग यहां हैं। यहां जाति और मजहब का कोई बंधन नहीं है।
सुधीरजी ऐसे लोगों की सेवा बड़े प्रेम से करते हैं, जिन्हें देखकर आप चौंक जाएं, डर जाएं, भाग जाएं, घृणा करने लगें। इसलिए मैं सुधीर को ‘फादर टेरेसा’ बोलता हूं लेकिन सुधीर सेवा की आड़ में किसी का धर्म-परिवर्तन नहीं करते। इस अर्थ में सुधीर का काम काफी ऊंचा है। मैं चाहता हूं कि कम से कम मध्यप्रदेश के हर जिले में एक सेवा-धाम खुल जाए।
डा. वेद प्रताप वैदिक
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