छत्तीसगढ़ के सुकमा में शहीद हुए जवानों को देश भर में नम आँखों से श्रधांजलि दी जा रही है। हर तरफ नक्सलियों के इस कायराना हमले की निंदा हो रही है। लोग सोशल मीडिया सहित अन्य माध्यमों से जवानों की वीरता को सलाम कर रहे हैं। साथ ही सरकार से नक्सलियों से सख्ती से निपटने की मांग भी की जा रही है लेकिन सत्ता और राजनीति के लिए इस शहादत के मायने शायद काफी अलग हैं।
राजनीति के ऐसे ही एक घटनाक्रम में पटना एयरपोर्ट पर केन्द्रीय मंत्री रामकृपाल यादव पहुंचे। यहाँ रामकृपाल यादव ने जवानों को श्रद्धांजलि दी और नीतीश सरकार पर हमला बोलते हुए कहा कि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के काफिले की वजह से जवानों के शव ले जा रहे ट्रक को रोका दिया गया। यह शहीदों का अपमान है। रामकृपाल ने नीतीश सरकार को संवेदनहीन सरकार बताते हुए कहा कि यह परंपरा रही है कि राज्य के किसी शहीद का शव आने पर मुख्यमंत्री श्रधांजलि अर्पित करते हैं लेकिन नीतीश कुमार फिल्म देखने में व्यस्त रहे उन्हें इतनी भी फुर्सत नहीं मिली की जवानों की शहादत पर उनके प्रति श्रद्धा सुमन अर्पित कर सकें। आपको बता दें कि यह घटना तब की है जब पटना एयरपोर्ट से जवानों के शव को लेकर जा रहे ट्रक को नीतीश के काफिले की वजह से 15 मिनट तक पटेल चौक पर रोक दिया गया था।
एक तरफ नक्सली हमले के बाद देश के गृह मंत्री राजनाथ सिंह जवानों को श्रधांजलि देने गृह राज्य मंत्री हंसराज अहीर और छतीसगढ़ के मुख्यमंत्री रमण सिंह के साथ रायपुर पहुँच जाते हैं। दूसरी तरफ कई राज्य अपने राज्य के शहीद जवानों के लिए आर्थिक मदद और राजकीय सम्मान के साथ उनके अंतिम संस्कार की बात कहते हैं। लेकिन बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के लिए शायद इससे बड़ा आयोजन किसी सरकारी संस्थान का स्थापना दिवस था। यही वजह है कि जिस वक़्त बिहार के छः शहीदों के शव एयरपोर्ट पहुंचे। उस समय नीतीश कुमार और उप-मुख्यमंत्री तेजस्वी यादव दोनों महज 100 मीटर की दूरी पर थे लेकिन दोनों में से कोई भी नेता शहीदों को श्रधांजलि तक देने नहीं पहुंचे और तो और उनके मंत्रिमंडल का कोई भी मंत्री एयरपोर्ट नहीं पहुंचा। हालांकि नीतीश ने शहीद जवानों के परिवार को 5-5 लाख रुपये के मुआवजे की घोषणा और साथ ही राजकीय सम्मान के साथ अंतिम संस्कार की बात भी कही थी। लेकिन इन्ही दो घोषणाओं के साथ शायद शहीदों के प्रति नीतीश के कर्तव्यों की इति श्री हो गई और उन्होंने या उनके किसी भी मंत्री ने श्रधांजलि देना उचित नहीं समझा। शहीदों के प्रति राजनीतिक दलों और नेताओं का यह रवैया वाकई शर्मनाक है।