‘हिंदी’ के विरोध में उद्धव और राज ठाकरे आए साथ, महाराष्ट्र के स्कूलों में 3 Language Formula के हैं खिलाफ

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शिवसेना (यूबीटी) नेता संजय राउत ने कहा है कि लंबे समय से अलग हो चुके चचेरे भाई उद्धव ठाकरे और राज ठाकरे ने महाराष्ट्र के स्कूल पाठ्यक्रम में हिंदी को “थोपे जाने” के खिलाफ एक साथ आने का फैसला किया है। कई दिनों की अलग-अलग घोषणाओं के बाद अब शिवसेना (यूबीटी) और महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (मनसे) संयुक्त रूप से मुंबई में एक मार्च का नेतृत्व करेंगे, ताकि राज्य सरकार के त्रिभाषा सूत्र (थ्री लैंग्वेज फॉर्मूला) का विरोध किया जा सके, जिसमें प्राथमिक कक्षाओं के छात्रों के लिए हिंदी को तीसरी अनिवार्य भाषा के रूप में शामिल किया गया है।

संजय राउत ने आज एक्स (X) पर एक पोस्ट के जरिए इस घटनाक्रम की पुष्टि करते हुए लिखा,”महाराष्ट्र में स्कूलों में हिंदी थोपे जाने के खिलाफ एक संयुक्त मोर्चा निकाला जाएगा। जय महाराष्ट्र!” उनकी पोस्ट में उद्धव और राज ठाकरे की एक पुरानी तस्वीर भी थी, जिसमें वे दोनों बाल ठाकरे के चित्र के सामने खड़े नजर आ रहे हैं। बीएमसी चुनाव नजदीक होने के चलते इस कदम को केवल एक सांस्कृतिक विरोध नहीं, बल्कि चुनावों से पहले एक रणनीतिक राजनीतिक गठजोड़ के रूप में भी देखा जा रहा है।

मनसे प्रमुख राज ठाकरे ने मूल रूप से 6 जुलाई को एक प्रदर्शन की घोषणा की थी, लेकिन यह तिथि आषाढ़ी एकादशी जैसे धार्मिक अवसर से टकरा रही थी, इसलिए उन्होंने इसे 5 जुलाई कर दिया।

राज ठाकरे ने अपने सोशल मीडिया पोस्ट में लिखा:”सादर नमस्कार, जय महाराष्ट्र। आज सुबह, मराठी भाषा, महाराष्ट्र और मराठी जनता के लिए 6 जुलाई को एक मोर्चे की घोषणा की गई थी। उस योजना में थोड़ा बदलाव किया गया है; अब यह मोर्चा शनिवार, 5 जुलाई को सुबह 10 बजे गिरगांव से आज़ाद मैदान तक निकलेगा। स्थान और अन्य सभी विवरण यथावत रहेंगे। इसलिए मीडिया और महाराष्ट्र की जनता इस बदलाव को नोट करें।”

उधर, उद्धव ठाकरे ने त्रिभाषा सूत्र विरोधी मुंबई समन्वय समिति द्वारा शुरू किए गए 7 जुलाई के मोर्चे को समर्थन दिया है। उन्होंने कहा:”हम महाराष्ट्र में कक्षा 1 से 5 तक की मराठी और अंग्रेजी माध्यम की स्कूलों में तीसरी भाषा के रूप में हिंदी को थोपे जाने की इजाजत नहीं देंगे। यह सिर्फ शैक्षणिक मुद्दा नहीं है; यह सांस्कृतिक अतिक्रमण है।”

उद्धव ठाकरे ने इस नीति के संवैधानिक आधार और इसके पीछे की राजनीतिक मंशा पर भी सवाल उठाया, और बीजेपी अध्यक्ष जे.पी. नड्डा की टिप्पणियों का हवाला देते हुए राज्य की शिक्षा प्रणाली की जांच की मांग की।

शिवसेना (यूबीटी) नेता आदित्य ठाकरे ने कहा:”किसी भी भाषा को जबरदस्ती नहीं थोपा जाना चाहिए। जो हम अब तक पढ़ते आ रहे हैं, वह जारी रहना चाहिए। शिक्षा को बेहतर बनाया जाए, लेकिन बोझ न बढ़ाया जाए। केवल हिंदी क्यों? जो पहले से है, उसे बेहतर क्यों नहीं बनाया जा सकता?”

शरद पवार का समर्थन

एनसीपी प्रमुख शरद पवार ने भी हाल ही में इसी तरह की राय व्यक्त की। शरद पवार ने कहा,”मेरा मानना है कि प्राथमिक शिक्षा में हिंदी को अनिवार्य नहीं बनाया जाना चाहिए। कक्षा 5 के बाद बच्चे हिंदी सीखें, इसमें कोई आपत्ति नहीं है। लेकिन हमें यह समझना होगा कि एक निश्चित उम्र का बच्चा कितनी भाषाएं वास्तव में सीख सकता है, और इससे उस पर कितना बोझ पड़ता है” ।